Karak (Case)(कारक)

 (3)करण कारक (Instrument case):- जिस वस्तु की सहायता से या जिसके द्वारा कोई काम किया जाता है, उसे करण कारक कहते है।

दूसरे शब्दों में- वाक्य में जिस शब्द से क्रिया के सम्बन्ध का बोध हो, उसे करण कारक कहते है।
इसकी विभक्ति 'से' है।
जैसे- ''हम आँखों से देखते है।''
इस वाक्य में देखने की क्रिया करने के लिए आँख की सहायता ली गयी है। इसलिए आँखों से करण कारक है ।

करणकारक के सबसे अधिक प्रत्ययचिह्न हैं। 'ने' भी करणकारक का ऐसा चिह्न है, जो करणकारक के रूप में संस्कृत में आये कर्ता के लिए 'एन' के रूप में, कर्मवाच्य और भाववाच्य में आता है। किन्तु, हिन्दी की प्रकृति 'ने' को सप्रत्यय कर्ताकारक का ही चिह्न मानती है।

हिन्दी में करणकारक के अन्य चिह्न है- से, द्वारा, के द्वारा, के जरिए, के साथ, के बिना इत्यादि। इन चिह्नों में अधिकतर प्रचलित से', 'द्वारा', 'के द्वारा' 'के जरिए' इत्यादि ही है। 'के साथ', के बिना' आदि साधनात्मक योग-वियोग जतानेवाले अव्ययों के कारण, साधनात्मक योग बतानेवाले 'के द्वारा' की ही तरह के करणकारक के चिह्न हैं। 'करन' का अर्थ है 'साधन'। अतः 'से' चिह्न वहीं करणकारक का चिह्न है जहाँ यह 'साधन' के अर्थ में प्रयुक्त हो।
जैसे- मुझसे यह काम न सधेगा। यहाँ 'मुझसे' का अर्थ है 'मेरे द्वारा', 'मुझ साधनभूत के द्वारा' या 'मुझ-जैसे साधन के द्वारा। अतः 'साधन' को इंगित करने के कारण यहाँ 'मुझसे' का 'से' करण का विभक्तिचिह्न है। अपादान का भी विभक्तिचिह्न 'से' है।

'अपादान' का अर्थ है 'अलगाव की प्राप्ति' । अतः अपादान का 'से' चिह्न अलगाव के संकेत का प्रतीक है, जबकि करन का, अपादान के विपरीत, साधना का, साधनभूत लगाव का। 'पेड़ से फल गिरा', 'मैं घर से चला' आदि वाक्यों में 'से' प्रत्यय 'पेड़' को या घर को 'साधन' नहीं सिद्ध करता, बल्कि इन दोनों से बिलगाव सिद्ध करता है। अतः इन दोनों वाक्यों में 'घर' और 'पेड़' के आगे प्रयुक्त 'से' विभक्तिचिह्न अपादानकारक का है और इन दोनों शब्दों में लगाकर इन्हे अपादानकारक का 'पद' बनाता है।

करणकारक का क्षेत्र अन्य सभी कारकों से विस्तृत है। इस कारण में अन्य समस्त कारकों से छूटे हुए प्रत्यय या वे पद जो अन्य किसी कारक में आने से बच गए हों, आ जाते है।
अतः इसकी कुछ सामान्य पहचान और नियम जान लेना आवश्यक है-

(i) 'से' करन और अपादान दोनों विभक्तियों का चिह्न है, किन्तु साधनभूत का प्रत्यय होने पर करण माना जायेगा, जबकि अलगाव का प्रत्यय होने पर अपादान।

जैसे- वह कुल्हाड़ी से वृक्ष काटता है।
मुझे अपनी कमाई से खाना मिलता है।
साधुओं की संगति से बुद्धि सुधरती है।
यह तीनों करण है।
पेड़ से फल गिरा।
घर से लौटा हुआ लड़का।
छत से उतरी हुई लता।
यह तीनों अपादान है।

(ii) 'ने' सप्रत्यय कर्ताकारक का चिह्न है। किन्तु, 'से', 'के द्वारा' और 'के जरिये' हिन्दी में प्रधानतः करणकारक के ही प्रत्यय माने जाते है; क्योंकि ये सारे प्रत्यय 'साधन' अर्थ की ओर इंगित करते हैं।

जैसे-
मुझसे यह काम न सधेगा।
उसके द्वारा यह कथा सुनी थी।
आपके जरिये ही घर का पता चला।
तीर से बाघ मार दिया गया।
मेरे द्वारा मकान ढहाया गया था।

(iii) भूख, प्यास, जाड़ा, आँख, कान, पाँव इत्यादि शब्द यदि एकवचन करणकारक में सप्रत्यय रहते है, तो एकवचन होते है और अप्रत्यय रहते है, तो बहुवचन।

जैसे- वह भूख से बेचैन है;............ वह भूखों बेचैन है;
लड़का प्यास से मर रहा है;............ लड़का प्यासों मर रहा है।
स्त्री जाड़े से काँप रही है;............. स्त्री जाड़ों काँप रही है।
मैंने अपनी आँख से यह घटना देखी;........ मैंने अपनी आँखों यह घटना देखी।
कान से सुनी बात पर विश्र्वास नहीं करना चाहिए;.......... कानों सुनी बात पर विश्र्वास नहीं करना चाहिए
लड़का अब अपने पाँव से चलता है;............. लड़का अब अपने पाँवों चलता है।

(4)सम्प्रदान कारक (Dative case):- 

जिसके लिए कोई क्रिया (काम )की जाती है,
उसे सम्प्रदान कारक कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिसके लिए कुछ किया जाय या जिसको कुछ दिया जाय, इसका बोध करानेवाले शब्द के रूप को सम्प्रदान कारक कहते है।
इसकी विभक्ति 'को' और 'के लिए' है।

जैसे- शिष्य ने अपने गुरु के लिए सब कुछ किया। गरीब को धन दीजिए।
''वह अरुण के लिए मिठाई लाया।''
इस वाक्य में लाने का काम 'अरुण के लिए' हुआ। इसलिए 'अरुण के लिए' सम्प्रदान कारक है।

(i)कर्म और सम्प्रदान का एक ही विभक्तिप्रत्यय है 'को', पर दोनों के अर्थो में अन्तर है। सम्प्रदान का 'को', 'के लिए' अव्यय के स्थान पर या उसके अर्थ में प्रयुक्त होता है, जबकि कर्म के 'को' का 'के लिए' अर्थ से कोई सम्बन्ध नहीं है।

नीचे लिखे वाक्यों पर ध्यान दीजिए-
कर्म- हरि मोहन को मारता है।......... सम्प्रदान- हरि मोहन को रुपये देता है।
कर्म- उसके लड़के को बुलाया।.......... सम्प्रदान- उसने लड़के को मिठाइयाँ दी।
कर्म- माँ ने बच्चे को खेलते देखा।....... सम्प्रदान- माँ ने बच्चे को खिलौने खरीदे।

(ii) साधारणतः जिसे कुछ दिया जाता है या जिसके लिए कोई काम किया जाता है, वह पद सम्प्रदानकारक का होता है।
जैसे- भूखों को अत्र देना चाहिए और प्यासों को जल। गुरु ही शिष्य को ज्ञान देता है।

(iii) 'के हित', 'के वास्ते', 'के निर्मित' आदि प्रत्ययवाले अव्यय भी सम्प्रदानकारक के प्रत्यय है। जैसे-
राम के हित लक्ष्मण वन गये थे।
तुलसी के वास्ते ही जैसे राम ने अवतार लिया।
मेरे निर्मित ही ईश्र्वर की कोई कृपा नहीं।

(5)अपादान कारक(Ablative case):-जिससे किसी वस्तु का अलग होना पाया जाता है,
उसे अपादान कारक कहते है।
दूसरे शब्दों में- संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का भाव प्रकट होता है, उसे
अपादान कारक कहते है।

इसकी विभक्ति 'से' है।
जैसे- ''दूल्हा घोड़े से गिर पड़ा।''
इस वाक्य में 'गिरने' की क्रिया 'घोड़े से' हुई अथवा गिरकर दूल्हा घोड़े से अलग हो गया। इसलिए 'घोड़े से' अपादान कारक है।

जिस शब्द में अपादान की विभक्ति लगती है, उससे किसी दूसरी वस्तु के पृथक होने का बोध होता है। जैसे-
हिमालय से गंगा निकलती है।
मोहन ने घड़े से पानी ढाला।
बिल्ली छत से कूद पड़ी
चूहा बिल से बाहर निकला।
करण और अपादान के 'से' प्रत्यय में अर्थ का अन्तर करणवाचक के प्रसंग में बताया जा चुका है।

(6)सम्बन्ध कारक (Gentive case):-शब्द के जिस रूप से संज्ञा या सर्वनाम के संबध का ज्ञान हो, उसे सम्बन्ध कारक कहते है।
दूसरे शब्दों में- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी अन्य शब्द के साथ सम्बन्ध या लगाव प्रतीत हो, उसे सम्बन्धकारक कहते है।

इसकी विभक्ति 'का', 'की', और 'के' हैं।
जैसे- ''सीता का भाई आया है।''
इस वाक्य में गीता तथा भाई दोनों शब्द संज्ञा है। भाई से गीता का संबध दिखाया गया है। वह किसका भाई है ? गीता का। इसलिए गीता का संबध कारक है ।

रहीम का मकान छोटा है। संबंध का लिंग-वचन संबद्ध वस्तु के अनुसार होता है। जैसे- रहीम की कोठरी, रहीम के बेटे। सर्वनाम में संबंध में 'का', 'की', 'के' प्रत्यय का रूप 'रा', 'री', 'रे' या 'ना', 'नी', 'ने' भी होता है। जैसे- मेरा लड़का, मेरी लड़की, मेरे लड़के या अपना लड़का, अपनी लड़की, अपने लड़के।

(i) सम्बन्धकारक का विभक्तिचिह्न 'का' है। वचन और लिंग के अनुसार इसकी विकृति 'के' और 'की' है। इस कारक से अधिकतर कर्तृत्व, कार्य-कारण, मोल-भाव, परिमाण इत्यादि का बोध होता है।

जैसे-
अधिकतर- राम की किताब, श्याम का घर।
कर्तृत्व- प्रेमचन्द्र के उपन्यास, भारतेन्दु के नाटक।
कार्य-करण- चाँदी की थाली, सोने का गहना।
मोल-भाव- एक रुपए का चावल, पाँच रुपए का घी।
परिमाण- चार भर का हार, सौ मील की दूरी, पाँच हाथ की लाठी।

द्रष्टव्य- बहुधा सम्बन्धकारक की विभक्ति के स्थान में 'वाला' प्रत्यय भी लगता है। जैसे- रामवाली किताब, श्यामवाला घर, प्रेमचन्दवाले उपन्यास, चाँदीवाली थाली इत्यादि।

(ii) सम्बन्धकारक की विभक्तियों द्वारा कुछ मुहावरेदार प्रयोग भी होते है। जैसे-
(अ) दिन के दिन, महीने के महीने, होली की होली, दीवाली की दीवाली, रात की रात, दोपहर के दोपहर इत्यादि।
(आ) कान का कच्चा, बात का पक्का, आँख का अन्धा, गाँठ का पूरा, बात का धनी, दिल का सच्चा इत्यादि।
(इ) वह अब आने का नहीं, मैं अब जाने का नहीं, वह टिकने का नहीं इत्यादि।

(iii) दूसरे कारकों के अर्थ में भी सम्बन्धकारक की विभक्ति लगती है। जैसे- जन्म का भिखारी= जन्म से भिखारी (करण), हिमालय का चढ़ना= हिमालय पर चढ़ना (अधिकरण)।

(iv) सम्बन्ध, अधिकार और देने के अर्थ में बहुधा सम्बन्धकारक की विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे- हरि को बाल-बच्चा नहीं हैं। राम के बहन हुई है। राजा के आँखें नहीं होती, केवल कान होते हैं। रावण ने विभीषण के लात मारी। ब्राह्मण को दक्षिणा दो।

(v) सर्वनाम की स्थिति में सम्बन्धकारक का प्रत्यय रा-रे-री और ना-ने-नी हो जाता है। जैसे- मेरा लड़का, मेरी लड़की, तुम्हारा घर, तुम्हारी पगड़ी, अपना भरोसा, अपनी रोजी।

(7)अधिकरण कारक (Locative case):-शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का ज्ञान होता है, उसे अधिकरण कारक कहते है।
दूसरे शब्दों में- क्रिया या आधार को सूचित करनेवाली संज्ञा या सर्वनाम के स्वरूप को अधिकरण कारक कहते है।

इसकी विभक्ति 'में' और 'पर' हैं।
जैसे-
मोहन मैदान में खेल रहा है। इस वाक्य में 'खेलने' की क्रिया किस स्थान पर हो रही है ?
मैदान पर। इसलिए मैदान पर अधिकरण कारक है।
दूसरा उदाहरण-''मनमोहन छत पर खेल रहा है।'' इस वाक्य में 'खेलने' की क्रिया किस स्थान पर हो रही है?
'छत पर' । इसलिए 'छत पर' अधिकरण कारक है।

(i) कभी-कभी 'में' के अर्थ में 'पर' और 'पर' के अर्थ में 'में' का प्रयोग होता है। जैसे- तुम्हारे घर पर चार आदमी हैं=घर में। दूकान पर कोई नहीं था =दूकान में। नाव जल में तैरती है =जल पर।

(ii) कभी-कभी अधिकरणकारक की विभक्तियों का लोप भी हो जाता है। जैसे-
इन दिनों वह पटने है।
वह सन्ध्या समय गंगा-किनारे जाता है।
वह द्वार-द्वार भीख माँगता चलता है।
लड़के दरवाजे-दरवाजे घूम रहे हैं।
जिस समय वह आया था, उस समय मैं नहीं था।
उस जगह एक सभा होने जा रही है।

(iii) किनारे, आसरे और दिनों जैसे पद स्वयं सप्रत्यय अधिकरणकारक के है और यहाँ, वहाँ, समय आदि पदों का अर्थ सप्रत्यय अधिकरणकारक का है। अतः इन पदों की स्थिति में अधिकरणकारक का प्रत्यय नहीं लगता।

(8)संबोधन कारक(Vocative case):-जिन शब्दों का प्रयोग किसी को बुलाने या पुकारने में किया जाता है, उसे संबोधन कारक कहते है।
दूसरे शब्दों में-संज्ञा के जिस रूप से किसी के पुकारने या संकेत करने का भाव पाया जाता है, उसे सम्बोधन कारक कहते है।

इसकी विभक्ति 'अरे', 'हे' आदि है।
जैसे-
'हे भगवान' से पुकारने का बोध होता है। सम्बोधनकारक की कोई विभक्ति नहीं होती है। इसे प्रकट करने के लिए 'हे', 'अरे', 'रे' आदि शब्दों का प्रयोग होता है।
दूसरा उदाहरण-हे श्याम !इधर आओ । अरे! तुम क्या कर रहे हो ? उपयुक्त्त वाक्यों में 'हे श्याम!, अरे!' संबोधन कारक है।