Lokokti (proverbs) लोकोक्तियाँ
लोकोक्तियाँ की परिभाषा
किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को 'लोकोक्ति' कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है।
उदाहरण- 'उस दिन बात-ही-बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इन पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' । यहाँ 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है 'एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता' ।
'लोकोक्ति' शब्द 'लोक + उक्ति' शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है- लोक में प्रचलित उक्ति या कथन'। संस्कृत में 'लोकोक्ति' अलंकार का एक भेद भी है तथा सामान्य अर्थ में लोकोक्ति को 'कहावत' कहा जाता है।
चूँकि लोकोक्ति का जन्म व्यक्ति द्वारा न होकर लोक द्वारा होता है अतः लोकोक्ति के रचनाकार का पता नहीं होता। इसलिए अँग्रेजी में इसकी परिभाषा दी गई है- ' A proverb is a saying without an author' अर्थात लोकोक्ति ऐसी उक्ति है जिसका कोई रचनाकार नहीं होता।
वृहद् हिंदी कोश में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई है-
'विभिन्न प्रकार के अनुभवों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं कथाओं, प्राकृतिक नियमों और लोक विश्वासों आदि पर आधारित चुटीली, सारगर्भित, संक्षिप्त, लोकप्रचलित ऐसी उक्तियों को लोकोक्ति कहते हैं, जिनका प्रयोग किसी बात की पुष्टि, विरोध, सीख तथा भविष्य-कथन आदि के लिए किया जाता है।
'लोकोक्ति' के लिए यद्यपि सबसे अधिक मान्य पर्याय 'कहावत' ही है पर कुछ विद्वानों की राय है कि 'कहावत' शब्द 'कथावृत्त' शब्द से विकसित हुआ है अर्थात कथा पर आधारित वृत्त, अतः 'कहावत' उन्हीं लोकोक्तियों को कहा जाना चाहिए जिनके मूल में कोई कथा रही हो। जैसे 'नाच न जाने आँगन टेढ़ा' या 'अंगूर खट्टे होना' कथाओं पर आधारित लोकोक्तियाँ हैं। फिर भी आज हिंदी में लोकोक्ति तथा 'कहावत' शब्द परस्पर समानार्थी शब्दों के रूप में ही प्रचलित हो गए हैं।
लोकोक्ति किसी घटना पर आधारित होती है। इसके प्रयोग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये भाषा के सौन्दर्य में वृद्धि करती है। लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है। उससे निकली बात बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती है, तब 'लोकोक्ति' हो जाती है।
लोकोक्ति : प्रमुख अभिलक्षण
(1) लोकोक्तियाँ ऐसे कथन या वाक्य हैं जिनके स्वरूप में समय के अंतराल के बाद भी परिवर्तन नहीं होता और न ही लोकोक्ति व्याकरण के नियमों से प्रभावित होती है। अर्थात लिंग, वचन, काल आदि का प्रभाव लोकोक्ति पर नहीं पड़ता। इसके विपरीत मुहावरों की संरचना में परिवर्तन देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए 'अपना-सा मुँह लेकर रह जाना' मुहावरे की संरचना लिंग, वचन आदि व्याकरणिक कोटि से प्रभावित होती है; जैसे-
(i) लड़का अपना सा मुँह लेकर रह गया।
(ii) लड़की अपना-सा मुँह लेकर रह गई।
जबकि लोकोक्ति में ऐसा नहीं होता। उदाहरण के लिए 'यह मुँह मसूर की दाल' लोकोक्ति का प्रयोग प्रत्येक स्थिति में यथावत बना रहता है; जैसे-
(iii) है तो चपरासी पर कहता है कि लंबी गाड़ी खरीदूँगा। यह मुँह और मसूर की दाल।
(2) लोकोक्ति एक स्वतः पूर्ण रचना है अतः यह एक पूरे कथन के रूप में सामने आती है। भले ही लोकोक्ति वाक्य संरचना के सभी नियमों को पूरा न करे पर अपने में वह एक पूर्ण उक्ति होती है; जैसे- 'जाको राखे साइयाँ, मारि सके न कोय'।
(3) लोकोक्ति एक संक्षिप्त रचना है। लोकोक्ति अपने में पूर्ण होने के साथ-साथ संक्षिप्त भी होती है। आप लोकोक्ति में से एक शब्द भी इधर-उधर नहीं कर सकते। इसलिए लोकोक्तियों को विद्वानों ने 'गागर में सागर' भरने वाली उक्तियाँ कहा है।
(4) लोकोक्ति सारगर्भित एवं साभिप्राय होती है। इन्हीं गुणों के कारण लोकोक्तियाँ लोक प्रचलित होती हैं।
(5) लोकोक्तियाँ जीवन अनुभवों पर आधारित होती है तथा ये जीवन-अनुभव देश काल की सीमाओं से मुक्त होते हैं। जीवन के जो अनुभव भारतीय समाज में रहने वाले व्यक्ति को होते हैं वे ही अनुभव योरोपीय समाज में रहने वाले व्यक्ति को भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित लोकोक्तियों में अनुभूति लगभग समान है-
(i) एक पंथ दो काज- To kill two birds with one stone.
(ii) नया नौ दिन पुराना सौ दिन- Old is gold.
(6) लोकोक्ति का एक और प्रमुख गुण है उनकी सजीवता। इसलिए वे आम आदमी की जुबान पर चढ़ी होती है।
(7) लोकोक्ति जीवन के किसी-न-किसी सत्य को उद्घाटित करती है जिससे समाज का हर व्यक्ति परिचित होता है।
(8) सामाजिक मान्यताओं एवं विश्वासों से जुड़े होने के कारण अधिकांश लोकोक्तियाँ लोकप्रिय होती है।
(9) चुटीलापन भी लोकोक्ति की प्रमुख विशेषता है। उनमें एक पैनापन होता है। इसलिए व्यक्ति अपनी बात की पुष्टि के लिए लोकोक्ति का सहारा लेता है।
मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर
मुहावरे | लोकोक्तियाँ |
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(1) मुहावरे वाक्यांश होते हैं, पूर्ण वाक्य नहीं; जैसे- अपना उल्लू सीधा करना, कलम तोड़ना आदि। जब वाक्य में इनका प्रयोग होता तब ये संरचनागत पूर्णता प्राप्त करती है। | (1) लोकोक्तियाँ पूर्ण वाक्य होती हैं। इनमें कुछ घटाया-बढ़ाया नहीं जा सकता। भाषा में प्रयोग की दृष्टि से विद्यमान रहती है; जैसे- चार दिन की चाँदनी फेर अँधेरी रात। |
(2) मुहावरा वाक्य का अंश होता है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है; उनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है। | (2) लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है। |
(3) मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं। | (3) लोकोक्तियाँ वाक्यों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं। |
(4) वाक्य में प्रयुक्त होने के बाद मुहावरों के रूप में लिंग, वचन, काल आदि व्याकरणिक कोटियों के कारण परिवर्तन होता है; जैसे- आँखें पथरा जाना। प्रयोग- पति का इंतजार करते-करते माला की आँखें पथरा गयीं। | (4) लोकोक्तियों में प्रयोग के बाद में कोई परिवर्तन नहीं होता; जैसे- अधजल गगरी छलकत जाए। प्रयोग- वह अपनी योग्यता की डींगे मारता रहता है जबकि वह कितना योग्य है सब जानते हैं। उसके लिए तो यही कहावत उपयुक्त है कि 'अधजल गगरी छलकत जाए। |
(5) मुहावरों का अंत प्रायः इनफीनीटिव 'ना' युक्त क्रियाओं के साथ होता है; जैसे- हवा हो जाना, होश उड़ जाना, सिर पर चढ़ना, हाथ फैलाना आदि। | (5) लोकोक्तियों के लिए यह शर्त जरूरी नहीं है। चूँकि लोकोक्तियाँ स्वतः पूर्ण वाक्य हैं अतः उनका अंत क्रिया के किसी भी रूप से हो सकता है; जैसे- अधजल गगरी छलकत जाए, अंधी पीसे कुत्ता खाए, आ बैल मुझे मार, इस हाथ दे, उस हाथ ले, अकेली मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। |
(6) मुहावरे किसी स्थिति या क्रिया की ओर संकेत करते हैं; जैसे हाथ मलना, मुँह फुलाना? | (6) लोकोक्तियाँ जीवन के भोगे हुए यथार्थ को व्यंजित करती हैं; जैसे- न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी, ओस चाटे से प्यास नहीं बुझती, नाच न जाने आँगन टेढ़ा। |
(7) मुहावरे किसी क्रिया को पूरा करने का काम करते हैं। | (7) लोकोक्ति का प्रयोग किसी कथन के खंडन या मंडन में प्रयुक्त किया जाता है। |
(8) मुहावरों से निकलने वाला अर्थ लक्ष्यार्थ होता है जो लक्षणा शक्ति से निकलता है। | (8) लोकोक्तियों के अर्थ व्यंजना शक्ति से निकलने के कारण व्यंग्यार्थ के स्तर के होते हैं। |
(9) मुहावरे 'तर्क' पर आधारित नहीं होते अतः उनके वाच्यार्थ या मुख्यार्थ को स्वीकार नहीं किया जा सकता; जैसे- ओखली में सिर देना, घाव पर नमक छिड़कना, छाती पर मूँग दलना। | (9) लोकोक्तियाँ प्रायः तर्कपूर्ण उक्तियाँ होती हैं। कुछ लोकोक्तियाँ तर्कशून्य भी हो सकती हैं; जैसे- तर्कपूर्ण : (i) काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती। (ii) एक हाथ से ताली नहीं बजती। (iii) आम के आम गुठलियों के दाम। तर्कशून्य : (i) छछूंदर के सिर में चमेली का तेल। |
(10) मुहावरे अतिशय पूर्ण नहीं होते। | (10) लोकोक्तियाँ अतिशयोक्तियाँ बन जाती हैं। |
यहाँ कुछ लोकोक्तियाँ व उनके अर्थ तथा प्रयोग दिये जा रहे हैं-
( अ )
अन्धों में काना राजा= (मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति)
प्रयोग- मेरे गाँव में कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति तो है नही; इसलिए गाँववाले पण्डित अनोखेराम को ही सब कुछ समझते हैं। ठीक ही कहा गया है, अन्धों में काना राजा।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता= (अकेला आदमी बिना दूसरों के सहयोग के कोई बड़ा काम नहीं कर सकता।)
प्रयोग- मैं जानता हूँ कि 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता' फिर भी जो काम अपने करने का है, वह जरूर करूँगा।
अधजल गगरी छलकत जाय= (जिसके पास थोड़ा ज्ञान होता हैं, वह उसका प्रदर्शन या आडम्बर करता है।)
प्रयोग- रमेश बारहवीं पास करके स्वयं को बहुत बड़ा विद्वान समझ रहा है। ये तो वही बात हुई कि अधजल गगरी छलकत जाय।
अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत= (समय निकल जाने के पश्चात् पछताना व्यर्थ होता है)
प्रयोग- सारे साल तुम मस्ती मारते रहे, अध्यापकों और अभिभावक की एक न सुनी। अब बैठकर रो रहे हो। ठीक ही कहा गया है- अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।
अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को दे= (अधिकार पाने पर स्वार्थी मनुष्य केवल अपनों को ही लाभ पहुँचाते हैं।)
प्रयोग- मालिक आगरा का है, इसलिए उसने आगरावासी को ही नियुक्त कर लिया। ये तो वही बात हुई कि अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को दे।
अन्धा क्या चाहे दो आँखें= (मनचाही बात हो जाना)
प्रयोग- अभी मैं विद्यालय से अवकाश लेने की सोच ही रही थी कि मेघा ने मुझे बताया कि कल विद्यालय में अवकाश है। यह तो वही हुआ- अन्धा क्या चाहे दो आँखें।
अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना= (मूर्खों को सदुपदेश देना या अच्छी बात बताना व्यर्थ है।)
प्रयोग- मुन्ना को समझाना तो अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना वाली बात है।
अंधी पीसे, कुत्ते खायें= (मूर्खों की कमाई व्यर्थ में नष्ट हो जाती है।)
प्रयोग- रजनी अपने आपको बुद्धिमान समझती है, किन्तु उसका काम अंधी पीसे, कुत्ते खायें वाला है।
अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा= (जहाँ मालिक मूर्ख हो वहाँ सद्गुणों का आदर नहीं होता।)
प्रयोग- मनोज की कंपनी में चपरासी और मैनेजर का वेतन बराबर है, वहाँ तो कहावत चरितार्थ होती है कि अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा।
अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे= (बुद्धिहीन, किन्तु धनवान)
प्रयोग- सेठ जी तो अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे हैं।
अक्ल बड़ी या भैंस= (बुद्धि शारीरिक शक्ति से अधिक श्रेष्ठ होती है।
प्रयोग- ये कहानी तो सबने पढ़ी ही होगी कि खरगोश ने अपनी अक्ल से शेर को कुएँ में कुदा दिया था। यह कहावत मशहूर है कि अक्ल बड़ी या भैंस।
अति सर्वत्र वर्जयेत्= (किसी भी काम में हमें मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
प्रयोग- अधिकांश बच्चे परीक्षा के समय रात-दिन पढ़ते हैं और बाद में फिर बीमार पड़ जाते हैं, यह कहावत सही है- अति सर्वत्र वर्जयेत्।
अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग=(कोई काम नियम-कायदे से न करना)
प्रयोग- इस ऑफिस में तो जो जिसके मन में आता, वह करता है। इसी को कहते हैं- अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है= (अपने घर या गली-मोहल्ले में बहादुरी दिखाना)
प्रयोग- तुम अपने मोहल्ले में बहादुरी दिखा रहे हो। अरे, अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है।
अपनी पगड़ी अपने हाथ= (अपनी इज्जत अपने हाथ होती है।)
प्रयोग- विवेक ने श्रीनाथ जी से कहा- आप यहाँ से चले जाइए, क्योंकि अपनी पगड़ी अपने हाथ होती है।
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू= (अपनी बड़ाई या प्रशंसा स्वयं करने वाला)
प्रयोग-रामू हमेशा अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनता है।
अमानत में खयानत= (किसी के पास अमानत के रूप में रखी कोई वस्तु खर्च कर देना)
प्रयोग- अध्यापक ने हमें बताया कि अमानत में खयानत करना अच्छी बात नहीं होती।
अस्सी की आमद, चौरासी खर्च= (आमदनी से अधिक खर्च)
प्रयोग-राजू के तो अस्सी की आमद, चौरासी खर्च हैं। इसलिए उसके वेतन में घर का खर्च नहीं चलता।
अपनी करनी पार उतरनी= (मनुष्य को अपने कर्म के अनुसार ही फल मिलता है)
प्रयोग- आज अपना प्रवचन करते हुए स्वामी जी समझाया था कि जो जैसा करता है वैसा ही उसे उसका परिणाम मिलता है। इस संसार सागर से पार जाने के लिए अपने कर्मो को शुद्ध करो क्योंकि अपनी करनी पार उतरनी वाली बात ही जीवन में सत्य होती है।
अशर्फियाँ लुटें, कोयलों पर मुहर = (एक तरफ फिजूलखर्ची, दूसरी ओर एक-एक पैसे पर रोक लगाना)
प्रयोग- सत्येंद्र रोज होटलों में दारू और जुए पर हजारों रुपये उड़ा देता है लेकिन बेचारे कामगारों को उनका मेहनताना देने की बात आती है तो आनाकानी और बहानेबाजी करता है। इसे कहते हैं कि एक ओर तो अशर्फियाँ लुटें, दूसरी ओर कोयलों पर मुहर।
अन्त भला तो सब भला= (परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ माना जाता है।)
प्रयोग- भारतीय क्रिकेट टीम कशमकश के पश्चात पाकिस्तान दौरे पर गई और विजयी रही, सच है अन्त भला तो सब भला।
अंधे की लकड़ी= (बेसहारे का सहारा)
प्रयोग- राजकुमार पिता की अंधे की लकड़ी है।
अपना हाथ जगन्नाथ= (स्वयं का काम स्वयं करना अच्छा होता हैं।)
प्रयोग- लाला जी ने पहले खाना बनाने के लिए महाराज रखा हुआ था, लेकिन वह अच्छा खाना नहीं बनाता था, ऊपर से सामान चुरा लेता था। अब लालजी स्वयं खाना बना रहे हैं। सच कहावत है, अपना हाथ जगन्नाथ।
अटकेगा सो भटकेगा= (दुविधा या सोच विचार में प्रोगे तो काम नहीं होगा)
प्रयोग- मैं तैयारी करूँगा, चयन होगा या नहीं भूलकर तैयारी करो। कहावत है, जो अटकेगा सो भटकेगा।
अपना रख पराया चख= (निजी वस्तु की रक्षा एवं अन्य वस्तु का उपभोग)
प्रयोग- अपना रख पराया चख अब तो संजय की प्रकृति हो गई है।
अच्छी मति जो चाहो बूढ़े पूछन जाओ= (बड़े बूढ़ों की सलाह से कार्य सिद्ध हो सकते हैं।)
प्रयोग- मैं सदैव अपने बाबा से किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य को करने से पहले सलाह लेता हूँ और कार्य सफल होता है। सच है अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी= (दोनों साथियों में एक से अवगुण)
प्रयोग- शोभित में निर्णय लेने की क्षमता नहीं हैं, पत्नी भी बुद्धिमान है। अतः दोनों मिलकर कोई कार्य सही नहीं कर पाते। सच है अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी।
अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है= (कटु वचन सत्य होने पर भी बुरा लगता है।)
प्रयोग- लाला जी परचून की दुकान करते हैं और सब चीजों में मिलावट करते हैं। जब कोई ग्राहक उनसे मिलावटी कह देता है, तो वे भड़क उठते हैं। इसलिए कहावत है अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है।
अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता= (अपनी चीज को कोई बुरा नहीं बताता)
प्रयोग- सब्जी वाला खराब और बासी सब्जियों को भी ताजी और अच्छी सब्जियाँ बनाकर बेच जाता है, कोई कहे भी तो मानता नहीं है। सच है अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता है।
अपनी चिलम भरने को मेरा झोंपड़ा जलाते हो= (अपने अल्प लाभ के लिए दूसरे की भारी हानि करते हो।)
प्रयोग- आज ऐसा समय आ गया है अधिकांश व्यक्ति अपनी चिलम भरने के लिए दूसरे का झोंपड़ा जलाने में गुरेज नहीं करते।
अभी दिल्ली दूर है= (अभी कसर है)
प्रयोग- गयासुद्दीन तुगलक सूफी निजामुद्दीन औलिया को दण्ड देना चाहता था और तेजी से दिल्ली की ओर बढ़ रहा था। इस पर औलिया ने कहा अभी दिल्ली दूर है।
अब की अब, जब की जब के साथ= (सदा वर्तमान की ही चिन्ता करनी चाहिए)
प्रयोग- भगवान महावीर ने वर्तमान को अच्छा बनाने का उपदेश दिया, भविष्य अपने आप सुधर जाएगा। सच है अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना= (पूर्ण स्वतंत्र होना)
प्रयोग- मैं अपने कार्य में किसी का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करता। कहावत है अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
अपने झोपड़े की खैर मनाओ= (अपनी कुशल देखो)
प्रयोग- मुझे क्या धमकी दे रहे हो अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
अपनी टांग उघारिये आपहि मरिए लाज= (अपने घर की बात दूसरों से कहने पर बदनामी होती है।)
प्रयोग- पहले तो तुमने अपने घर की बातें दूसरे से बता दीं, अब तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं। कहावत भी है, अपनी टांग उघारिये आपहि मरिए लाज।
अटका बनिया देय उधार= (स्वार्थी और मजबूर व्यक्ति अनचाहा कार्य भी करता है।)
प्रयोग- कारखाने में श्रमिकों की हड़ताल होने से कारखाना मालिक अकुशल श्रमिकों को भी दुगुनी-तिगुनी मजदूरी दे रहा है। कहावत सही है- अटका बनिया देय उधार।
अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष= (हममें ही कमजोरी हो तो बताने वालों का क्या दोष)
प्रयोग- लड़का बेरोजगार है, सारा दिन आवारागर्दी करता है, लोग ताना न मारें तो क्या करें। जब अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष।
अढ़ाई दिन की बादशाहत= (थोड़े दिन की शान-शौकत)
प्रयोग- शत्रुध्न सिन्हा मन्त्री पद से हटा दिए गए, अढ़ाई दिन की बादशाह भी समाप्त हो गई।
अपना ढेंढर न देखे और दूसरे की फूली निहारे= (अपना दोष न देखकर दूसरों का दोष देखना)
( आ )
ओखली में सिर दिया, तो मूसलों से क्या डर= (काम करने पर उतारू होना)
प्रयोग- जब मैनें देशसेवा का व्रत ले लिया, तब जेल जाने से क्यों डरें? जब ओखली में सिर दिया, तब मूसलों से क्या डर।
आ बैल मुझे मार= (स्वयं मुसीबत मोल लेना)
प्रयोग- लोग तुम्हारी जान के पीछे पड़े हुए हैं और तुम आधी-आधी रात तक अकेले बाहर घूमते रहते हो। यह तो वही बात हुई- आ बैल मुझे मार।
आँखों के अन्धे नाम नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना)
प्रयोग- उसका नाम तो करोड़ीमल है परन्तु वह पैसे-पैसे के लिए मारा-मारा फिरता है। इसे कहते है- आँखों के अन्धे नाम नयनसुख।
आँख का अन्धा नाम नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना।)
प्रयोग- एक मियाँजी का नाम था शेरमार खाँ। वे अपने दोस्तों से गप मार रहे थे। इतने में घर के भीतर बिल्लियाँ म्याऊँ-म्याऊँ करती हुई लड़ पड़ी। सुनते ही शेरमार खाँ थर-थर काँपने लगे। यह देख एक दोस्त ठठाकर हँस पड़ा और बोला कि वाह जी शेरमार खाँ, आपके लिए तो यह कहावत बहुत ठीक है कि आँख का अन्धा नाम नयनमुख।
आँख के अन्धे गाँठ के पूरे= (मूर्ख किन्तु धनवान)
प्रयोग- आप इस मकान का बहुत दाम मांग रहे हैं। इसे तो वह खरीदेगा जो आँख के अन्धे और गाँठ के पूरे होगा।
आग लगन्ते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ= नुकसान होते-होते जो कुछ बच जाय, वही बहुत है।
प्रयोग- किसी के घर चोरी हुई। चोर नकद और जेवर कुल उठा ले गये। बरतनों पर जब हाथ साफ करने लगे, तब उनकी झनझनाहट सुनकर घर के लोग जाग उठे। देखा तो कीमती माल सब गायब। घर के मालिकों ने बरतनों पर आँखें डालकर अफसोस करते हुए कहा कि खैर हुई, जो ये बरतन बच गये। आग लगन्ते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ। यदि ये भी चले गये होते, तो कल पत्तों पर ही खाना पड़ता।
आगे नाथ न पीछे पगहा= (किसी तरह की जिम्मेवारी का न होना)
प्रयोग- अरे, तुम चक्कर न मारोगे तो और कौन मारेगा? आगे नाथ न पीछे पगहा। बस, मौज किये जाओ।
आम के आम गुठलियों के दाम= (अधिक लाभ)
प्रयोग- सब प्रकार की पुस्तकें 'साहित्य भवन' से खरीदें और पास होने पर आधे दामों पर बेचें। 'आम के आम गुठलियों के दाम' इसी को कहते हैं।
आगे कुआँ, पीछे खाई= (दोनों तरफ विपत्ति या परेशानी होना)
प्रयोग- सुरेश के सामने तब आगे कुआँ, पीछे खाई वाली बात हो गई जब बदमाशों ने कहा कि या तो वह गोली खाए या सारा सामान उनको दे दे।
आई मौज फकीर को, दिया झोंपड़ा फूँक= (वैरागी स्वभाव के पुरुष मनमौजी होते हैं।)
प्रयोग- उस वैरागी स्वभाव के मनुष्य ने जब अपनी सारी सम्पत्ति गरीबों को दे दी, तब उसकी प्रशंसा करते हुए लोगों ने कहा- आई मौज फकीर को, दिया झोंपड़ा फूँक।
आई तो रोजी नहीं तो रोजा= (कमाया तो खाया नहीं तो भूखे)
प्रयोग- फेरी वाले का क्या, यदि कुछ माल बिक जाता है तो खाना खा लेता है वरना भूखा सो जाता है। सच है, आई तो रोजी नहीं तो रोजा।
आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ= (आजीवन किसी चीज से पिण्ड न छूटना)
प्रयोग- दमे की बीमारी के विषय में कहा जाता है आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ।
आज हमारी, कल तुम्हारी= (जीवन में विपत्ति सब पर आती है।)
प्रयोग- यह नहीं भूलना चाहिए कि समय सदा बदलता रहता है- आज हमारी, कल तुम्हारी।
आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे= (अधिक लालच करना बुरा होता है)
प्रयोग- अधिक वेतन के चक्कर में रामू ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अब उसकी वो नौकरी भी छूट गई; ये तो वही कहावत हो गई कि 'आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे'।
आप काज, महा काज= (अपना काम स्वयं करने से ठीक होता है।)
प्रयोग- राजू अपना काम दूसरों पर नहीं छोड़ता। उसे स्वयं करता है, क्योंकि उसका विश्वास है कि 'आप काज, महा काज'।
आये थे हरि-भजन को, ओटन लगे कपास= (आवश्यक कार्य को छोड़कर अनावश्यक कार्य में लग जाना)
प्रयोग- सेठ हेमचंद अपने परिवार को लेकर गए तो थे मसूरी प्रकृति का आनंद उठाने। पर लालच ने पीछा न छोड़ा और वहाँ जाकर भी सारा समय होटल में बैठे रहे और फोन पर धंधे की बातों में ही लगे रहे। ऐसे लोगों के लिए ही कहा गया है आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास।
आप भला तो जग भला= (दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाए तो दूसरे भी अच्छा व्यवहार करेंगे)
प्रयोग- तुम्हारे पिताजी बहुत ईमानदार हैं इसलिए सबको ईमानदार समझते हैं। इसलिए कहा जाता है- आप भले तो जग भला।
आसमान पर थूका मुँह पर आता है= (बड़े लोगों की निन्दा करने से अपनी ही बदनामी होती हैं।)
प्रयोग- महात्मा गाँधी की बुराई करना आसमान पर थूकना है।
आसमान से गिरे खजूर में अटके= (एक मुसीबत खत्म न हो उससे पहले दूसरी मुसीबत आ जाए)
प्रयोग- पिछले माह सेठ रामरतन को पुलिस ने काला बाजारी के जुर्म में पकड़ा था। अभी उस झंझट से मुक्त भी नहीं हो पाए थे कि कल उनके यहाँ इनकम टैक्स वालों की रेड पड़ गई, अब बेचारे सेठजी का क्या होगा क्योंकि उनकी हालत तो आसमान से गिरे खजूर में अटके वाली है।
आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आँखें फूटे= (जिधर जाएँ उधर ही मुसीबत)
प्रयोग- जरदारी आतंकवाद को समाप्त करते हैं, तो कट्टरपंथी उन्हें चैन नहीं लेने देंगे और नहीं करते तो अमेरिका नहीं बैठने देगा। कहावत भी है आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आँखें फूटे।
आप न जावै सासुरे औरों को सिख देत= (कोई कार्य स्वयं तो न करे पर दूसरों को सीख दे।)
प्रयोग- नेताजी कार्यकर्ताओं से जेल जाने की पुरजोर अपील कर रहे थे लेकिन स्वयं नहीं जा रहे थे। इस पर एक कार्यकर्ता ने कहा नेता जी यह तो आप न जावै सासुरे औरों को सिख देत वाली बात हो गई।
आदमी पानी का बुलबुला है= (मनुष्य जीवन नाशवान है।)
प्रयोग- आदमी का जीवन तो पानी का बुलबुला है जाने कब फूट जाए।
आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या काम= (अपने मतलब की बात करो)
प्रयोग- राम ने अजय को दस हजार रुपये माँगने पर उधार दिए तो वह पूछने लगा कि तुम्हारे पास ये पैसे कहाँ से आए। इस पर राम ने कहा तुम आम खाओ पेड़ गिनने से क्या काम।
आदमी की दवा आदमी है= (मनुष्य ही मनुष्य की सहायता कर सकता है।)
प्रयोग- भोला ने नदी में डूबते आदमी को बचाया तो सभी कहने लगे, आदमी की दवा आदमी है।
आ पड़ोसन लड़ें= (बिना बात झगड़ा करना)
प्रयोग- रीना से ज्यादा बातचीत ठीक नहीं, उसकी आदत तो आ पड़ोसन लड़ें वाली हैं।
आठ कनौजिये नौ चूल्हे= (अलगाव की स्थिति)
प्रयोग- पूँजीवादी व्यवस्था में समाज इतना स्वार्थी हो गया है कि आठ कनौजिये नौ चूल्हे वाली स्थिति दिखाई देती है।
आप डूबे जग डूबा= (जो स्वयं बुरा होता है, दूसरों को भी बुरा समझता है।)
आग लगाकर जमालो दूर खड़ी= (झगड़ा लगाकर अलग हो जाना)
आधा तीतर आधा बटेर= (बेमेल स्थिति)
ओछे की प्रीत बालू की भीत=(नीचों का प्रेम क्षणिक)
ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती= (अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता)
( इ, ई )
इतनी-सी जान, गज भर की जुबान= (बहुत बढ़-बढ़ कर बातें करना)
प्रयोग- चार साल की बच्ची जब बड़ी-बड़ी बातें करने लगी तो दादाजी बोले- इतनी सी जान, गज भर की जुबान।
इधर कुआँ और उधर खाई= (हर तरफ विपत्ति होना)
प्रयोग- न बोलने में भी बुराई है और बोलने में भी; ऐसे में मेरे सामने इधर कुआँ और उधर खाई है।
इन तिलों में तेल नहीं निकलता= कंजूसों से कुछ प्राप्त नहीं हो सकता।
प्रयोग- तुम यहाँ व्यर्थ ही आए हो मित्र! ये तुम्हें कुछ नहीं देंगे- इन तिलों में से तेल नहीं निकलेगा।
ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया= (ईश्वर की बातें विचित्र हैं।)
प्रयोग- कई बेचारे फुटपाथ पर ही रातें गुजारते हैं और कई भव्य बंगलों में आनन्द करते हैं। सच है ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।
ईंट की लेनी, पत्थर की देनी= (बदला चुकाना)
प्रयोग- अशोक ईंट की लेनी, पत्थर की देनी वाले स्वभाव का आदमी है।
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया= (संसार में सभी एक जैसे नहीं हैं- कोई अमीर है, कोई गरीब)
प्रयोग- अमीर-गरीब हर जगह होते हैं। सब ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया है।
इस हाथ दे, उस हाथ ले= (लेने का देना)
प्रयोग- प्रिंसीपल ने मेरे पिता जी से कहा, 'आप मेरे भाई को अपने ऑफिस में, नौकरी पर रख लीजिए; मैं आपके बेटे को अपने स्कूल में एडमीशन दे दूँगा।' इसे कहते हैं इस हाथ दे, उस हाथ ले।
इतना खाएँ जितना पचे= (सीमा के अन्दर कार्य करना चाहिए)
प्रयोग- तुम सभी लोगों से पैसे उधार लेते रहते हो और खर्च कर देते हो। इससे तो तुम कर्ज में डूब जाओगे। सच है, इतना खाएँ जितना पचे।
इसके पेट में दाढ़ी है= (उम्र कम बुद्धि अधिक)
प्रयोग- अक्षित की बात क्या करनी उसके तो पेट में दाढ़ी है।
इधर न उधर, यह बला किधर= (अचानक विपत्ति आ जाना)
प्रयोग- गाड़ी से अलीगढ़ जा रहे थे कि रास्ते में जाम लगा पाया और लोगों ने घेर लिया, तब पिताजी को कहना पड़ा- इधर न उधर, यह बला किधर।
इमली के पात पर दण्ड पेलना= (सीमित साधनों से बड़ा कार्य करने का प्रयास करना)
प्रयोग- लाला जी को कोई जानता नहीं और सांसद बनने के लिए खड़े हो रहे हैं। वे नहीं जानते कि इमली के पात पर दण्ड पेल रहे हैं।
( उ )
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे= (अपराधी निरपराध को डाँटेे)
प्रयोग- एक तो पूरे वर्ष पढ़ाई नहीं की और अब परीक्षा में कम अंक आने पर अध्यापिका को दोष दे रहे हैं। यह तो वही बात हो गई- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।
उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई= (इज्जत जाने पर डर किसका?)
प्रयोग- जब लोगों ने उसे बिरादरी से ख़ारिज कर दिया है अब वह खुलेआम आवारागर्दी कर रहा है- 'उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई'।
उल्टे बांस बरेली को= (जहाँ जिस वस्तु की आवश्यकता न हो, उसे वहां ले जाना)
प्रयोग- जब राजू अनाज शहर से गाँव ले जाने लगा तो उसके पिताजी ने कहा कि ये तो उल्टे बांस बरेली वाली बात है। यहाँ क्या अनाज की कोई कमी है।
उसी का जूता उसी का सिर= (किसी को उसी की युक्ति या चाल से बेवकूफ बनाना)
प्रयोग- जब चोर पुलिस की बेल्ट से पुलिस को ही मारने लगा तो सबने यही कहा कि ये तो उसी का जूता उसी का सिर वाली बात हो गई।
उद्योगिन्न पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी= (उद्योगी को ही धन मिलता है।)
उगले तो अंधा, खाए तो कोढ़ी= (दुविधा में पड़ना)
प्रयोग- बीमारी में दफ्तर जाओ तो बीमारी बढ़ने का भय, ना जाओ तो छुट्टी होने का भय। सच है उगले तो अंधा, खाए तो कोढ़ी।
( ऊ )
ऊँची दुकान फीके पकवान= (जिसका नाम अधिक हो, पर गुण कम हो)
प्रयोग- उस कंपनी का नाम ही नाम है, गुण तो कुछ भी नहीं है। बस 'ऊँची दुकान फीके पकवान' है।
ऊँट के मुँह में जीरा= (जरूरत के अनुसार चीज न होना)
प्रयोग- विद्यालय के ट्रिप में जाने के लिए 2,500 रुपये चाहिए थे, परंतु पिता जी ने 1,000 रुपये ही दिए। यह तो ऊँट के मुँह में जीरे वाली बात हुई।
ऊधो का लेना न माधो का देना= (केवल अपने काम से काम रखना)
प्रयोग- प्रोफेसर साहब तो बस अध्ययन और अध्यापन में लगे रहते हैं। गुटबन्दी से उन्हें कोई लेना-देना नहीं- ऊधो का लेना न माधो का देना।
ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी= (बाहर से अच्छा, भीतर से बुरा)
ऊँचे चढ़ के देखा, तो घर-घर एकै लेखा= (सभी एक समान)
ऊँट किस करवट बैठता है= (किसकी जीत होती है।)
ऊँट बहे और गदहा पूछे कितना पानी= (जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों का क्या कहना)
( ए )
एक पन्थ दो काज= (एक काम से दूसरा काम हो जाना)
प्रयोग- दिल्ली जाने से एक पन्थ दो काज होंगे। कवि-सम्मेलन में कविता-पाठ भी करेंगे और साथ ही वहाँ की ऐतिहासिक इमारतों को भी देखेंगे।
एक हाथ से ताली नहीं बजती= (झगड़ा एक ओर से नहीं होता।)
प्रयोग- आपसी लड़ाई में राम और श्याम-दोनों स्वयं को निर्दोष बता रहे थे, परंतु यह सही नहीं हो सकता, क्योंकि ताली एक हाथ से नहीं बजती।
एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा= (कुटिल स्वभाव वाले मनुष्य बुरी संगत में पड़ कर और बिगड़ जाते है।)
प्रयोग- कालू तो पहले से ही बिगड़ा हुआ था अब उसने आवारा लोगों का साथ और कर लिया है- एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा।
एक तो चोरी, दूसरे सीनाज़ोरी= (गलत काम करके आँख दिखाना)
प्रयोग- एक तो उसने मेरी किताब चुरा ली, ऊपर से आँखें दिखा रहा है। इसी को कहते हैं- 'एक तो चोरी, दूसरे सीनाज़ोरी।'
एक अनार सौ बीमार= (जिस चीज के बहुत चाहने वाले हों)
प्रयोग- अभिषेक जहाँ कम्प्यूटर सीखता है वहाँ कम्प्यूटर एक है और सीखने वाले बीस हैं- ये तो वही बात हुई कि एक अनार सौ बीमार।
एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है= (एक खराब चीज सारी चीजों को खराब कर देती है।)
प्रयोग- मेरी कक्षा में नानक नामक एक छात्र था जो छात्रों की किताबें चुरा लेता था। इससे पूरी कक्षा बदनाम हो गई। कहते भी हैं- 'एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है।'
एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं= (एक वस्तु के दो समान अधिकारी नहीं हो सकते)
प्रयोग- किशनलाल ने दो शादियाँ की थी। दोनों पत्नियाँ में रोज झगड़ा होता था। तंग आकर किशनलाल एक दिन घर छोड़कर चला गया। बेचारा क्या करता एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती, यह बात उसे कौन बताता?
एक अकेला, दो ग्यारह= (संगठन में शक्ति होती है)
प्रयोग- पिताजी ने दोनों बेटों को समझाते हुए कहा, यदि तुम दोनों मिलकर व्यापार करोगे तो दिन-दूनी रात चौगुनी उन्नति होगी। हमेशा याद रखना, 'एक अकेला, और दो ग्यारह' होते हैं।
एक तंदुरुस्ती, हजार नियामत= (स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है)
प्रयोग- आप सभी को रोज प्राणायाम करना चाहिए, प्राणायाम करते रहोगे तो सेहत अच्छी रहेगी। सेहत अच्छी होगी तो जीवन में कुछ भी कर सकोगे, एक तंदुरुस्ती, हजार नियामत।
एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय= (किसी कार्य को संपन्न कराने के लिए किसी एक समर्थ व्यक्ति का सहारा लेना अच्छा है बजाए अनेक लोगों के पीछे भागने के)
प्रयोग- अगर प्रमोशन चाहिए तो मंत्रीजी को पकड़ लो, इन अधिकारियों के पीछे भागने से कोई लाभ नहीं। किसी ने ठीक कहा है एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय'।
एक ही थैली के चट्टे-बट्टे= (एक ही प्रवृत्ति के लोग)
प्रयोग- अरे भाई, रोहन और मोहन पर विश्वास मत करना। दोनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। समझ लो एक नागनाथ है, तो दूसरा साँपनाथ।
( ऐ )
ऐरा-गैरा नत्थू खैरा= (मामूली आदमी)
प्रयोग- कोई 'ऐरा-गैरा नत्थू खैरा' महेश के ऑंफिस के अन्दर नहीं जा सकता।
ऐरे गैरे पंच कल्याण= (ऐसे लोग जिनके कहीं कोई इज्जत न हो)
प्रयोग- पंचों की सभा में ऐरे गैरे पंच कल्याण का क्या काम!
'ऐसो को प्रकट्यो जगमाँही, प्रभुता पाय जाहि मदनाहीं'= (जिसके पास धन-संपत्ति होती है, वह अहंकारी होता है)
प्रयोग- रमाकांत की जबसे एक करोड़ की लॉटरी लगी है, धन के नशे में किसी को कुछ समझता ही नहीं। ऐसे लोगों के लिए ही तुलसीदास ने कहा है- 'ऐसो को प्रकट्यो जगमाँही, प्रभुता पाय जाहि मदनाहीं।'
( ओ )
ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर= (कष्ट सहने के लिए तैयार व्यक्ति को कष्ट का डर नहीं रहता।)
प्रयोग- बेचारी शांति देवी ने जब ओखली में सिर दे ही दिया है तब मूसलों से डरकर भी क्या कर लेगी!
ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती= (किसी को इतनी कम चीज मिलना कि उससे उसकी तृप्ति न हो।)
प्रयोग- किसी के देने से कब तक गुजर होगी, तुम्हें यह जानना चाहिए कि 'ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती'।
ओछे की प्रीति, बालू की भीति= (दुष्ट का प्रेम अस्थिर होता है)
प्रयोग- भई शंकर! दयाराम जैसे घटिया आदमी से अब भी तुम्हारी पटती है?' शंकर बोला, 'नहीं चाचाजी! मैंने उसका साथ छोड़ दिया। अब मैं समझ चुका हूँ कि ओछे की प्रीति, बालू की भीति के समान होती है'।
( क )
कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली= (उच्च और साधारण की तुलना कैसी)
प्रयोग- तुम सेठ करोड़ीमल के बेटे हो। मैं एक मजदूर का बेटा। तुम्हारा और मेरा मेल कैसा ? कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली।
कंगाली में आटा गीला= (परेशानी पर परेशानी आना)
प्रयोग- पिता जी की बीमारी की वजह से घर में वैसे ही आर्थिक तंगी चल रही है, ऊपर से बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी बढ़ गया। इसे कहते हैं- कंगाली में आटा गीला।
कोयले की दलाली में मुँह काला= (बुरों के साथ बुराई ही मिलती है)
प्रयोग- तुम्हें हजार बार समझाया चोरी मत करो, एक दिन पकड़े जाओगे। अब भुगतो। कोयले की दलाली में हमेशा मुँह काला ही होता है।
कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा= (बेमेल वस्तुओं को एक जगह एकत्र करना)
प्रयोग- शर्मा जी ने ऐसी किताब लिखी है कि किताब में कहीं कुछ मेल नहीं खाता। उन्होंने तो वही हाल किया है- 'कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा'।
काला अक्षर भैंस बराबर= (बिल्कुल अनपढ़ व्यक्ति)
प्रयोग- कालू तो अख़बार भी नहीं पढ़ सकता, वह तो काला अक्षर भैंस बराबर है।
कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना= (जो मिल जाए उसी में संतुष्ट रहना)
प्रयोग- वह सच्चा साधु है; जो कुछ पाता है वही खाकर संतुष्ट हो जाता है- कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना।
करे कोई, भरे कोई= (अपराध कोई करे, दण्ड किसी और को मिले)
प्रयोग- चोरी रामू ने की और पकड़ा गया राजू। इसी को कहते हैं- 'करे कोई, भरे कोई'।
कागा चले हंस की चाल= (गुणहीन व्यक्ति का गुणवान व्यक्ति की भांति व्यवहार करना)
प्रयोग- राजू गँवार है, परन्तु जब सूटबूट पहन कर निकलता है तो जैंटलमैन लगता है। इसी को कहते हैं- 'कागा चले हंस की चाल'।
काम को काम सिखाता है= (कोई भी काम करने से ही आता है।)
प्रयोग- मित्र, तुम क्यों चिन्ता करते हो- सब सीख जाओगे। कहावत भी मशहूर है- 'काम को काम सिखाता है'कै हंसा मोती चुगे, कै लंघन मर जाय
कुत्ता भी अपनी गली में शेर होता है= (अपने घर में निर्बल भी बलवान या बहादुर होता है।)
प्रयोग- जब रवि ने कालू को अपनी गली में मारा तो उसने कहा कि कुत्ता भी अपनी गली में शेर होता है, तू मेरे मोहल्ले में आना।
कुत्तों के भौंकने से हाथी नहीं डरते= (विद्वान लोग मूर्खों और ओछों की बातों की परवाह नहीं करते)
प्रयोग- लोगों ने गाँधीजी की कटु आलोचनाएँ कीं, पर वे अपने सिद्धांत पर अटल रहे, डरे नहीं। कहावत भी है- ' कुत्तों के भौंकने से हाथी नहीं डरते'।
कै हंसा मोती चुगे, कै लंघन मर जाय= (प्रतिष्ठित और विद्वान व्यक्ति अपने अनुकूल प्रतिष्ठा के साथ ही जाना ठीक समझता है।)
प्रयोग- रवि ने माता-पिता से कहा कि वह एम.ए. करके चपरासी की नौकरी नहीं करेगा- 'कै हंसा मोती चुगे, कै लंघन मर जाय'।
कुत्ता भी दम हिलाकर बैठता है= (सफाई सबको पसन्द होती है)
प्रयोग- तुम्हारी कुर्सी पर कितनी धूल जमी है। कैसे आदमी हो तुम,कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है।
कोयले की दलाली में हाथ काले= (बुरी संगत का बुरा असर)
प्रयोग- कालू बुरी संगत में पड़ गया है, सब कहते हैं कि यह बुरी संगत छोड़ दे, क्योंकि कोयले की दलाली में हाथ काले हो ही जाते हैं।
कबहुँ निरामिष होय न कागा= (दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता)
प्रयोग- रमन ने कहा था कि यह इंजीनियर उसका जानने वाला है अतः बिना कुछ लिए दिए नक्शा पास कर देगा पर वह तो पचास हजार माँग रहा है। मुझे तो अब इस कहावत पर विश्वास हो गया है कि 'कबहुँ निरामिष होय न कागा'।
काठ की हाँड़ी बार-बार नहीं चढ़ती= (चालाकी से एक ही बार काम निकलता है)
प्रयोग- एक बार तो मुझसे झूठ बोल कर कर्जा ले गए लेकिन हर बार तुम मुझे मुर्ख नहीं बना सकते। ध्यान रखो, 'काठ की हाँड़ी बार-बार नहीं चढ़ती'।
का वर्षा जब कृषि सुखाने= (समय निकल जाने पर मदद करना व्यर्थ है)
प्रयोग- मुझे रुपयों की जरूरत तो परसों थी और तुम देने आए हो आज। अब मैं इनका क्या करूँगा, अब तो प्लॉंट बुक नहीं कर सकता। अंतिम तिथि निकल गई। किसी ने सच ही कहा है कि 'का वर्षा जब कृषि सुखाने'।
कहे से धोबी गधे पर नहीं चढ़ता=(मूर्ख पर समझाने का असर नहीं होता)
प्रयोग- पूरे दिन सुशील बाँसुरी बजाता रहता है लेकिन यदि उससे कभी कोई फरमाइश करे तो नखरे करता है। किसी ने सच कहा है कि 'कहे से धोबी गधे पर नहीं चढ़ता'।
काम का न काज का, दुश्मन अनाज का= (किसी मतलब का न होना)
प्रयोग- सूरजभान कोई काम-वाम तो करता नहीं, बड़े भाई के यहाँ पड़े-पड़े टाइम पास कर रहा है। ऐसे लोग तो 'काम का न काज का, दुश्मन अनाज के' होते है।
कौड़ी न हो पास तो मेला लगे उदास= (धन के अभाव में जीवन में कोई आकर्षण नहीं)
प्रयोग- करीम मियाँ की जबसे नौकरी छूटी है, हमेशा जेब खाली रहती है। इसलिए वे कहीं आते-जाते तक नहीं। कहीं भी उनका मन नहीं लगता। किसी ने सच कहा है, 'कौड़ी न हो पास तो मेला लगे उदास'।
कबीरदास की उल्टी बानी, बरसे कंबल भींगे पानी= (उल्टी बात कहना)
प्रयोग- जब भी तुमसे कोई बात कही जाती है तो तुम कबीरदास की उल्टी बानी, बरसे कम्बल भीगे पानी वाली कहावत चरितार्थ कर देते हो।
कहे खेत की, सुने खलिहान की= (कहा कुछ गया और समझा कुछ गया)
प्रयोग- (तुम भी बिल्कुल नमूने हो, कहे खेत की, सुनते हो खलिहान की।
कर सेवा खा मेवा= (अच्छे कार्य का फल अच्छा मिलता है)
प्रयोग- सुनील ने अजय से कहा, ''मेहनत से प्रकाशन में कार्य करो तरक्की पा जाओगे'' कहावत सच है कर सेवा खा मेवा।
कब्र में पाँव लटकाए बैठा है= (मरने वाला है)
प्रयोग- वो कब्र में पाँव लटकाए बैठे हैं, लेकिन मजाक भद्दी करते हैं।
कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता= (ऊपरी वेशभूषा से किसी के अवगुण नहीं छिप जाते)
प्रयोग- विवेक साइकिल चोर है लेकिन सूट-बूट में रहता है। लोग उसे जानते है इसलिए उससे कतराते हैं। सच है कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता।
कोयला होय न उजला सौ मन साबुन धोय= (दुष्ट व्यक्ति की प्रकृति में कोई परिवर्तन नहीं होता उसे चाहे कितनी ही सीख दी जाए)
प्रयोग- संजय को मैंने बहुत समझाया कि शराब और जुआ छोड़ दे पर वह नहीं माना। सच है कोयला होय न उजला सौ मन साबुन धोय।
कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी चलता जाता है= (महान व्यक्ति छोटी-सी नुक्ता-चीनी पर ध्यान नहीं देता है।)
प्रयोग- साधु महराज पर सड़क पर गुजरते समय कुछ लोग छींटाकशी कर रहे थे, लेकिन वे निरन्तर बढ़ते जा रहे। वहाँ ये कहावत चरितार्थ हो रही थी कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी चलता रहता है।
कोठी वाला रोवे छप्पर वाला सोवै= (अधिक धन चिन्ता का कारण होता है)
प्रयोग- सेठ रामलाल सारी रात जागते रहते हैं, चोरों के भय से उन्हें नींद नहीं आती। सच है कोठी वाला रोवे छप्पर वाला सोवे।
कोऊ नृप होय हमें का हानी= (किसी के पद, धन या अधिकार मिलने से हम पर कोई प्रभाव नहीं होता)
प्रयोग- कांग्रेस की सरकार आए या भाजपा की इससे हमें क्या फर्क पड़ता है। हमारे लिए तो कोऊ नृप होय हमें का हानि वाली कहावत चरितार्थ होती है।
कौआ चला हंस की चाल= (दूसरों की नकल पर चलने से असलियत नहीं छिपती तथा हानि उठानी पड़ती है)
प्रयोग- छोटे से प्रेस मालिक ने बड़े प्रकाशकों की नकल करते हुए मॉडल पेपर निकाल दिए लेकिन वे नहीं बिके जिससे भारी नुकसान उठाना पड़ा। जिनके पैसे डूब गए उन्हें कहना पड़ा कौआ चला हंस की चाल।
कुएँ की मिट्टी कुएँ में ही लगती हैं= (लाभ जहाँ से होता है, वहीं खर्च हो जाता है।)
प्रयोग- आशीष की नौकरी दिल्ली में लगी वहाँ पर मकान तथा अन्य खर्चेइतने अधिक हैं कि बचत नहीं हो पाती। सच है कुएँ की मिट्टी कुएँ में ही लगती हैं।
कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता=(कोई अपने माल को खराब नहीं कहता)
प्रयोग- सब्जी वाले बासी सब्जी को भी ताजी बताकर बेचते हैं। कहावत सच है कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता।
किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान= (स्वाभिमान की रक्षा नौकरी में नहीं हो सकती)
प्रयोग- सेठ ने डाँट दिया तो क्या नौकरी छोड़ दोगे, किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान।
कखरी लरका गाँव गोहार= (वस्तु के पास होने पर दूर-दूर उसकी तलाश करना)
प्रयोग- अच्छी संगति पार्टी के लिए शर्मा जी दिल्ली तक गए, लेकिन मेरठ में ही कम पैसों में अच्छी संगीत पार्टी मिल गई, तब मित्र बोले कि कखरी लरका गाँव गोहार।
कानी के ब्याह को सौ जोखो= (पग-पग पर बाधाएँ)
प्रयोग- लोकेश के चुगली करने पर राधा का रिश्ता टूट गया, इस पर रामकली बोली, ''बड़ी मुश्किल से रिश्ता हुआ था, सच कहावत है- कानी के ब्याह को सौ जोखो।
काबुल में क्या गदहे नहीं होते= (अच्छे बुरे सभी जगह हैं।)
किसी का घर जले, कोई तापे= (दूसरे का दुःख में देखकर अपने को सुखी मानना)
( ख )
खोदा पहाड़ निकली चुहिया= (बहुत कठिन परिश्रम का थोड़ा लाभ)
प्रयोग- बच्चा बेचारा दिन भर लाल बत्ती पर अख़बार बेचता रहा, परंतु उसे कमाई मात्र बीस रुपये की हुई। यह वही बात है- खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे= (किसी बात पर लज्जित होकर क्रोध करना)
प्रयोग- दस लोगों के सामने जब मोहन की बात किसी ने नहीं सुनी, तो उसकी हालत उसी तरह हो गई ; जैसे खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है= एक को देखकर दूसरा बालक या व्यक्ति भी बिगड़ जाता है।
प्रयोग- रोहन अन्य बालकों को देखकर बिगड़ गया है। सच ही है- 'खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है'।
खरी मजूरी चोखा काम= (मजदूरी के तुरन्त बाद नकद पैसे मिलना)
प्रयोग- रवि ने मालिक से कहा कि उसे अपनी मजदूरी के पैसे तुरन्त चाहिए- 'खरी मजूरी चोखा काम'।
खाली दिमाग शैतान का घर= (बेकार बैठने से तरह-तरह की खुराफातें सूझती हैं।)
प्रयोग- राजू बोला कि मैं कभी खाली नहीं रहता हूँ, क्योंकि 'खाली दिमाग शैतान का घर' होता है।
खुदा गंजे को नाख़ून न दे= (नाकाबिल को कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए)
प्रयोग- अशोक ने कहा कि यदि मैं तहसीलदार बन जाऊँ तो तुम्हारा चबूतरा खुदवा डालूँगा। उसके पड़ोसी ने कहा कि 'खुदा गंजे को नाख़ून न दे'।
खुशामद से ही आमद होती है= (बड़े आदमियों (धनी या बड़े पद वालों) की खुशामद करने से धन, यश और पद प्राप्त होता है।)
प्रयोग- मित्र, आजकल खुशामद करना सीखना होगा, क्योंकि 'खुशामद से ही आमद होती है।'
खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी= (एक ही प्रकार के दो मनुष्यों का साथ)
प्रयोग- महेश और नरेश दोनों घनिष्ठ मित्र हैं और दोनों ही अपाहिज हैं। उन्हें देख कर गोपाल ने कहा- 'खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी'।
खरा खेल फर्रुखावादी= (स्पष्टवक्ता सदा सुखी होता है)
प्रयोग- भैया, अपना तो खरा खेल फर्रुखावादी है। जो कुछ कहना होता है मुँह पर कह देता हूँ, कोई भला माने या बुरा। कम-से-कम मुझे तो अपराध बोध नहीं होता कि मैंने सच को छुपाया।
खग जाने खग ही की भाषा=(साथी की बात साथी समझ लेता है)
प्रयोग- मैं जब भी परेशान होता हूँ मेरा दोस्त विकास पता नहीं कैसे समझ लेता है। सच बात है कि 'खग जाने खग ही की भाषा'।
खून सिर चढ़कर बोलता हैै= (पाप स्वतः सामने आ जाता है)
प्रयोग- तुम चिंता मत करो। रामेश्वर धूर्त और मक्कार है और उसकी मक्कारी और धूर्तता, उसके कामों से सब लोगों के सामने आ जाएगी। कब तक इसकी काली करतूतें छुपेंगी। एक-न-एक दिन तो 'खून सिर पर चढ़कर बोलेगा'।
खेत खाए गदहा, मारा जाए जुलाहा = (अपराध करे कोई, दण्ड मिले किसी और को)
प्रयोग- जब किसी व्यक्ति के अपराध पर दण्ड किसी अन्य को मिलता है तब यह कहावत चरितार्थ होती हैं।
खाक डाले चाँद नहीं छिपता= (अच्छे आदमी की निंदा करने से कुछ नहीं बिगड़ता)
प्रयोग- महात्मा गाँधी की निंदा करना अनुचित है। खाक डाले चाँद नहीं छिपता।
खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती= (कोई नहीं जानता कि भगवान कब, कैसे, क्यों दण्ड देता है)
प्रयोग- तुम गरीबों का घोर शोषण करते हो, जानते नहीं खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती।
खेती, खसम लेती है= (कोई काम अपने हाथ से करने पर ही ठीक होता है)
प्रयोग- रोज घर जल्दी चले आते हो, ऐसे तो व्यापार ठप्प हो जाएगा। जानते हो खेती, खसम लेती है।
खूँटे के बल बछड़ा कूदे= (किसी की शह पाकर ही आदमी अकड़ दिखाता है)
प्रयोग- मैं जानता हूँ तुम किस खूँटे के बल कूद रहे हो, मैं उसे भी देख लूँगा।
( ग )
गागर में सागर भरना= (कम शब्दों में बहुत कुछ कहना)
प्रयोग- बिहारी कवि ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया है।
गया वक्त फिर हाथ नहीं आता= (जो समय बीत जाता है, वह वापस नहीं आता)
प्रयोग- अध्यापक ने बताया कि हमें अपना समय व्यर्थ नहीं खोना चाहिए, क्योंकि गया वक्त फिर हाथ नहीं आता।
गरज पड़ने पर गधे को भी बाप कहना पड़ता है= (मुसीबत में हमें छोटे-छोटे लोगों की भी खुशामद करनी पड़ती है।)
प्रयोग- मनीष के पास टिकट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे तो उसने एक चपरासी से अनुनय-विनय करके पैसे इकट्ठे किए। कहावत भी है कि 'गरज पड़ने पर गधे को भी बाप कहना पड़ता है'।
गरजने वाले बादल बरसते नहीं हैं= (जो बहुत बढ़-बढ़ कर बातें करते हैं, वे काम कम करते हैं।)
प्रयोग- बड़बोले रवि से श्याम ने कहा कि गरजने वाले बादल बरसते नहीं हैं।
गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त= (जिसका काम हो वह परवाह न करे, बल्कि दूसरा आदमी तत्परता दिखाए)
प्रयोग- लालू को अपनी लड़की को स्कूल में दाखिला दिलाना था, पर जब वह नहीं चलेंगे तो कोई क्या करेगा; ये तो वही हुआ- गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त।
गीदड़ की शामत आए तो वह शहर की तरफ भागता है= (जब विपत्ति आती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है।)
प्रयोग- एक तो गौरव की कंपनी के मैनेजर ने मजदूरों को रविवार की छुट्टी नहीं दी; इसके अलावा उनकी मजदूरी भी काटनी शुरू कर दी। फलतः हड़ताल हो गई और मैनेजर को इस्तीफा देना पड़ा। सच ही कहा है- 'गीदड़ की शामत आती है तो वह शहर की तरफ भागता है'।
गुरु गुड़ ही रहा, चेला शक़्कर हो गया= (शिष्य का गुरु से अधिक उन्नति करना)
प्रयोग- उसने मुझसे अंग्रेजी पढ़ना सीखा और आज वह मुझसे अच्छी अंग्रेजी बोलता है, यह तो वही मिसाल हुई- 'गुरु गुड़ ही रहा और चेला शक़्कर हो गया'।
गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है= (अपराधियों के साथ निर्दोष व्यक्ति भी दण्ड पाते हैं।)
प्रयोग- मैंने कालू से कहा था कि चोर-डाकुओं के साथ मत रहो। लेकिन उसने मेरी एक न सुनी। इसी कारण आज जेल काट रहा है। कहावत भी है- 'गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है'।
गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज= (कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से बचना)
प्रयोग- वैसे तो रमानाथ चोरी, डाका सब डाल लेता है पर कल जब मैंने कहा कि मेरे साथ अदालत चलकर मेरे हक में गवाही दे दो तो कहने लगा कि मैं झूठी गवाही नहीं देता। वाह गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज।
गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास= (जो व्यक्ति सामने आए उसकी प्रशंसा करना)
प्रयोग- कुछ लोगों की आदत होती है कि उनके सामने जो व्यक्ति आता है उसी की प्रशंसा करने लगते हैं, ऐसे लोगों के लिए ही कहा जाता है- गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास।
गरीब की जोरू, सबकी भाभी= (कमजोर पर सब अधिकार जताते हैं)
प्रयोग- सारे परिवार में सुबोध ही कम पैसेवाला है, इसलिए परिवार के सारे सदस्य उसी पर हुक्म चलाते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि गरीब की जोरू, सबकी भाभी होती है।
गुड़ न दे तो गुड़ की सी बात तो कहे= (भले ही किसी को कुछ न दें पर मधुर व्यवहार करें)
प्रयोग- अरे भैया आप उस बेचारे की मदद नहीं करना चाहते तो मत करो पर उसे डाँटो-फटकारो तो मत। उससे बात तो ठीक से करो। यदि किसी को गुड़ न दो तो गुड़ की सी बात तो कहो।
गाँठ का पूरा आँख का अंधा= (पैसे वाला तो है पर है मूर्ख)
प्रयोग- आज के युग में गाँठ का पुरा आँख का अंधे की तलाश किसे नहीं है।
गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचे= (भला करने वाले के साथ दुष्टता करना)
प्रयोग- आजकल बहुत बुरा समय आ गया है। लोग गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचते हैं।
गए रोजे छुड़ाने नमाज गले पड़ी= (अपनी मुसीबत से पीछा छुड़ाने की इच्छा से प्रयत्न करते-करते नई विपत्ति का आ जाना)
प्रयोग- शर्मा जी मेहमान आने के भय से घूमने गए। वहाँ उनके समधी मिल गए और उनका स्वागत करना पड़ा। गए रोजे छुड़ाने नमाज गले पड़ी।
गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता है= (किसी भी उपाय से स्वभाव नहीं बदलता)
प्रयोग- उससे तुम्हारा विवाह नहीं हुआ अच्छा हुआ। वो तो बहुत अहंकारी औरत है। कहावत है गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता।
गरजै सो बरसै नहीं= (डींग हाँकने वाले काम नहीं करते)
प्रयोग- राजेश ने कहा था कि वह आई.ए.एस.बनके दिखाएगा। इस पर मित्र ने कहा, जो गरजै सो बरसै नहीं।
गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध= (बाहर के व्यक्तियों का सम्मान, पर अपने यहाँ के व्यक्तियों की कद्र नहीं)
गोद में छोरा नगर में ढिंढोरा= (पास की वस्तु का दूर जाकर ढूँढना)
गाछे कटहल, ओठे तेल= (काम होने के पहले ही फल पाने की इच्छा)
गुड़ गुड़, चेला चीनी= (गुरु से शिष्य का ज्यादा काबिल हो जाना)
( घ )
घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध= (जो मनुष्य बहुत निकटस्थ या परिचित होता है उसकी योग्यता को न देखकर बाहर वाले की योग्यता देखना)
प्रयोग- यहाँ स्वामी विवेकानंद को लोग इतना नहीं मानते जितना अमेरिका में मानते हैं। सच ही है- 'घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध'।
घर की मुर्गी दाल बराबर= (घर की वस्तु या व्यक्ति को कोई महत्व न देना)
प्रयोग- पं. दीनदयाल हमारे गाँव के बड़े प्रकांड पंडित हैं। बाहर उनका बड़ा सम्मान होता है, परन्तु गाँव के लोग उनका जरा भी आदर नहीं करते। लोकोक्ति प्रसिद्ध है- 'घर की मुर्गी दाल बराबर'।
घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने= (झूठा दिखावा करना)
प्रयोग- रामू निर्धन है फिर भी ऐसा बन-ठन कर निकलता है जैसे लखपति हो। ऐसे ही लोगों के लिए कहते हैं- 'घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने'।
घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या= (मेहनताना या पारिश्रमिक माँगने में संकोच नहीं करना चाहिए।)
प्रयोग- भाई, मैंने दो महीने काम किया है। संकोच में तनख्वाह न माँगू तो क्या करूँ- 'घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या'?
घर का भेदी लंका ढाए= (आपस की फूट से हानि होती है।)
प्रयोग- तस्करी के सोने पर तीनों दोस्तों में झगड़ा हो गया। एक ने पुलिस को खबर दे दी और पुलिस सारे सोने समेत तीनों को पकड़ कर ले गई। सच है, घर का भेदी लंका ढाए।
घोड़ों को घर कितनी दूर= (पुरुषार्थी के लिए सफलता सरल है)
प्रयोग- आशीष रात में कार चलाकर नैनी से लखनऊ आया तो ससुर साहब ने चिन्ता जतायी। इस पर आशीष ने कहा घोड़ों को घर कितनी दूर।
घोड़े को लात, आदमी को बात= (दुष्ट से कठोरता का और सज्जन से नम्रता का व्यवहार करें)
प्रयोग- सुनील घोड़े को लात, आदमी को बात वाली नीति में विश्वास करता है।
घायल की गति घायल जाने= (जो कष्ट भोगता है वही दूसरे के कष्ट को समझ सकता है)
प्रयोग- गरीब आदमी कैसे अभाव में अपना जीवन गुजारता है। यह गरीब व्यक्ति ही समझ सकता है। सच है घायल की गति घायल जाने।
घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते= (घर में आने वाले का सत्कार करना चाहिए)
प्रयोग- शिवानी जाओ चाय नाश्ता ले जाओ। भले ही यह व्यक्ति हमारा विरोधी है। जानती नहीं घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते।
घोड़े की दम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा= (उन्नति करके आदमी अपना ही भला करता है)
प्रयोग- कल तक नेताजी पर साइकिल नहीं थी। विधायक होते ही उन पर ऐश-ओ-आराम की सभी वस्तुएँ आ गई। कहावत भी है घोड़े की दुम बढ़ेगी, तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा।
घर खीर तो बाहर भी खीर= (सम्पन्नता में सर्वत्र प्रतिष्ठा मिलती है।)
प्रयोग- इतना जान लो कि जब तुम्हारा पेट भरा रहेगा तभी दूसरे लोग खाने के लिए पूछेंगे। सच ''घर खीर तो बाहर भी खीर।''
घड़ी में घर जले, नौ घड़ी भद्रा= (हानि के समय सुअवसर-कुअवसर पर ध्यान न देना)
घर पर फूस नहीं, नाम धनपत= (गुण कुछ नहीं, पर गुणी कहलाना)
घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना= (दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना)
घी का लड्डू टेढ़ा भला = (लाभदायक वस्तु किसी तरह की क्यों न हो।)
( च )
चिराग तले अँधेरा= (अपनी बुराई नहीं दीखती)
प्रयोग- मेरे समधी सुरेशप्रसादजी तो तिलक-दहेज न लेने का उपदेश देते फिरते है; पर अपने बेटे के ब्याह में दहेज के लिए ठाने हुए हैं। उनके लिए यही कहावत लागू है कि 'चिराग तले अँधेरा।'
चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात= (सुख के कुछ दिनों के बाद दुख का आना)
प्रयोग- आज पैसा आने पर ज्यादा मत उछलो, क्या पता कब कैसे दिन देखने पड़ें ? सही बात है- चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।
चोर की दाढ़ी में तिनका= (अपने आप से डरना)
प्रयोग- विद्यालय से गायब होने पर पिता जी को बुलाने की बात सुनते ही कमल का चेहरा फीका पड़ गया। उसकी स्थिति चोर की दाढ़ी में तिनके के समान हो गई।
चोर पर मोर= (एक दूसरे से ज्यादा धूर्त)
प्रयोग-मृदुल और करन दोनों को कम मत समझो। ये दोनों ही चोर पर मोर हैं।
चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय= (अत्यधिक कंजूसी करना)
प्रयोग- जेबकतरे ने सौ रुपए उड़ा लिए तो कुछ नहीं, पर मुन्ना ने मुझे पाँच रुपए उधार नहीं दिए। ये तो वही बात हुई कि चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय।
चिकने घड़े पर पानी नहीं ठरहता= (बेशर्म आदमी पर किसी बात का कोई असर नहीं होता)
प्रयोग- रामू बहुत निर्लज्ज आदमी है। मैंने उसे बहुत समझाया, परन्तु उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। कहावत भी है कि 'चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता'।
चित भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का= (हर तरह से लाभ चाहना)
प्रयोग- दादाजी के साथ सबसे बड़ी मुसीबत यही है कि वे हरदम अपनी बात ही बड़ी रखते हैं। ये तो वही बात हुई- चित भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का।
चील के घोंसले में मांस कहाँ= (किसी व्यक्ति से ऐसी वस्तु की प्राप्त करने की आशा करना, जो उसके पास न हो।)
प्रयोग- मैंने सोचा था कि राजू के घर लड्डू खाने को मिलेंगे, पर चील के घोंसले में मांस कहाँ से मिलता।
चोर के पैर नहीं होते= (चोर चोरी करते वक्त जरा-सी आहट से डरकर भाग जाता है।)
प्रयोग- जब चोरों ने देखा कि घरवाले जाग गए हैं, तब वे बिना कुछ चुराए ही उसके घर से भाग गए, क्योंकि 'चोर के पैर नहीं होते'।
चोर-चोर मौसेरे भाई= (एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्दी मेल हो जाता है।)
प्रयोग- राजनीति में कुछ असामाजिक तत्वों के कारण अपराध और राजनीति दोनों चोर-चोर मौसेरे भाई लगते हैं।
चोरी चोरी से जाय, पर हेरा-फेरी से न जाय= (किसी की प्रकृति में पूर्ण परिवर्तन न होना)
प्रयोग- रामू ने चोरी करना तो छोड़ दिया हैं, पर अब वह कभी- कभी हेरा-फेरी तो कर ही लेता है, ये कहावत ठीक ही है कि चोरी चोरी से जाय, पर हेरा-फेरी से न जाय।
चोरी और सीना जोरी= (अपराध करके अकड़ना)
प्रयोग- रवि एक तो स्कूल देर से पहुँचा, ऊपर से बहस भी करने लगा; यह चोरी और सीना जोरी करने पर अध्यापक ने उसे हाथ ऊपर करके खड़े होने की सजा दी।
चलती का नाम गाड़ी= (हस्ती समाप्त होने के बाद भी धाक जमी रहना)
प्रयोग- हमारे देश में एक से एक गाड़ियाँ बन रही हैं, फिर भी लोगों को विदेशी गाड़ियाँ खरीदने की लगी रहती है। क्या कहा जाए चलती का नाम गाड़ी है।
चाँद पर थूका, मुँह पर गिरा= (सज्जन की बुराई करने से अपनी ही बेइज्जती होती है)
प्रयोग- भले लोगों की बुराई करोगे तो तुम खुद ही बदनाम होगे। जो चाँद पर थूकता है, थूक उसी के मुँह पर गिरता है।
चौबे गए छब्बे बनने, दूबे बनकर आए= (लाभ के बदले हानि)
प्रयोग- जब कोई व्यक्ति लाभ की आशा से कोई कार्य करता है और उसमें हानि हो जाती है, तब यह कहावत चरितार्थ होती है।
चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी= (शाम होते ही सोने लगना)
प्रयोग- अब राज के घर जाना बेकार है वह तो चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी वालों में है।
चूहों की मौत बिल्ली का खेल= (किसी को कष्ट देकर मौज करना)
प्रयोग- कालाबाजारियों को अधिक से अधिक लाभ से मतलब है चाहे कितने ही लोग भूख से मर जाएँ। कहावत है चूहों की मौत बिल्ली का खेल।
चींटी की मौत आती है तो पर निकलते हैं= (घमण्ड करने से नाश होता है)
प्रयोग- सुबोध तुम्हें घमण्ड हो गया। यह मत भूलो चींटी की मौत आती है तो पर निकलते हैं।
चूहे का बच्चा बिल खोदता है= (जाति स्वभाव में परिवर्तन नहीं होता)
प्रयोग- बबलू लकड़ी का मकान बनाता है, उसके पिता बिल्डर हैं। सच है चूहे का बच्चा बिल खोदता है।
चपड़ी और दो-दो= (अच्छी चीज और वह भी बहुतायत में)
प्रयोग- राज का पी.सी.एस. में चयन हो गया और उसे पोस्टिंग भी मुजप्फरनगर में मिल गई। यही तो है चुपड़ी और दो-दो।
चोरी का माल मोरी में= गलत ढंग से कमाया धन यों ही बर्बाद होता है)
प्रयोग- परचून की दुकान वाले ने मिलावट करके लाखों रुपया कमाया लेकिन कुछ पैसा बीमारी में लग गया बाकी चोर चोरी करके चले गए, तब पड़ोसी बोले चोरी का माल मोरी में।
चूहे घर में दण्ड पेलते हैं= (आभाव-ही-आभाव)
( छ )
छछूंदर के सिर में चमेली का तेल= (किसी व्यक्ति के पास ऐसी वस्तु हो जो कि उसके योग्य न हो।)
प्रयोग- रामू मिडिल पास है फिर भी उसकी सरकारी नौकरी लग गई, इसी को कहते हैं- 'छछूंदर के सिर में चमेली का तेल'।
छोटा बड़ा खोटा= (नाटा आदमी बड़ा तेज-तर्रार होता है।)
प्रयोग- रामू नाटा है इसलिए वह बड़ा काइयाँ हैं, कहते भी हैं- 'छोटा बड़ा खोटा'।
छोटा मुँह बड़ी बात= (कम उम्र या अनुभव वाले मनुष्य का लम्बी-चौड़ी बातें करना)
प्रयोग- किशन तो हमेशा छोटा मुँह बड़ी बात करता है।
छोटे मियां तो छोटे मियां, बड़े मियां सुभान अल्लाह= (जब बड़ा छोटे से अधिक शैतान हो)
प्रयोग- राजू का छोटा भाई तो गाली देकर चुप हो गया, लेकिन राजू तो लड़ने को तैयार हो गया। उसे देखकर मुझे यही कहना पड़ा- 'छोटे मियां तो छोटे मियां, बड़े मियां सुभान अल्लाह'।
( ज )
जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ= (परिश्रम का फल अवश्य मिलता है)
प्रयोग- एक लड़का, जो बड़ा आलसी था, बार-बार फेल करता था और दूसरा, जो परिश्रमी था, पहली बार परीक्षा में उतीर्ण हो गया। जब आलसी ने उससे पूछा कि भाई, तुम कैसे एक ही बार में पास कर गये, तब उसने जवाब दिया कि 'जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ'।
जैसी करनी वैसी भरनी= (कर्म के अनुसार फल मिलता है)
प्रयोग- राधा ने समय पर प्रोजेक्ट नहीं दिखाया और उसे उसमें शून्य अंक प्राप्त हुए। ठीक ही हुआ- जैसी करनी वैसी भरनी।
जिसकी लाठी उसकी भैंस= (बलवान की ही जीत होती है)
प्रयोग- सरपंच ने जिसे चाहा उसे बीज दिया। बेचारे किसान कुछ न कर पाए। इसे कहते हैं- जिसकी लाठी उसकी भैंस।
जंगल में मोर नाचा, किसने देखा= (ऐसे स्थान में कोई अपना गुण दिखाए जहाँ कोई देखने वाला न हो।)
प्रयोग- रवि ने रामू से कहा कि आप चलकर शहर में रहिए, यहाँ गाँव में आपकी विद्या की कोई कद्र नहीं- 'जंगल में मोर नाचा, किसने देखा'।
जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना= (जब कोई कष्ट सहने के लिए तैयार हो तो डर कैसा)
प्रयोग- जब रमेश ने नई दुकान खोल ही ली है तो अब कष्ट तो झेलने ही होंगे, कहावत भी है- 'जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना'।
जब चने थे तब दांत न थे, जब दांत हुए तब चने नहीं= (जब धन था तब बच्चे न थे, जब बच्चे हुए तब धन नहीं है।)
प्रयोग- रामू काका कहते हैं कि हम पहले बड़े अमीर थे, पर उस समय खाने वाला कोई नहीं था और अब खाने वाले हुए तब धन नहीं है। ये तो वही बात हुई- 'जब चने थे तब दांत न थे, जब दांत हुए तब चने नहीं'।
जब तक जीना, तब तक सीना= (जब तक मनुष्य जीवित है तब तक उसे कुछ न कुछ काम तो करना ही पड़ता है।)
प्रयोग- मेरी माँ हमेशा कहती हैं कि वे जब तक जिंदा हैं तब तक काम करेंगी। उनका तो यही सिद्धांत है- 'जब तक जीना, तब तक सीना'।
जब तक सांस तब तक आस= (जब तक मनुष्य जीवित है तब तक आशा बनी रहती है।)
प्रयोग- रामू काका ने अपने जीवन में आखिरी दम तक हिम्मत नहीं हारी; कहावत भी है- ' जब तक सांस तब तक आस'।
जर, जोरू, जमीन जोर की, नहीं तो और की= (धन, स्त्री और जमीन बलवान अपने बल से प्राप्त कर सकता है, निर्बल व्यक्ति नहीं)
प्रयोग- राजू काका सच कहते हैं- 'जर, जोरू, जमीन जोर की, नहीं तो और की'
जल्दी का काम शैतान का, देर का काम रहमान का= (जल्दी करने से काम बिगड़ जाता है और शांति से काम ठीक होता है।)
प्रयोग- तुम मुझसे हर काम को जल्दी करने को कहते हो। जानते नहीं हो- 'जल्दी का काम शैतान का, देर का काम रहमान का' होता हैं।
जहाँ का पीवे पानी, वहाँ की बोले बानी= (जिस व्यक्ति का खाए, उसी की-सी बातें करनी चाहिए)
प्रयोग- मैं उनका नमक खाता हूँ, तो उनकी जैसी कहूँगा। मनुष्य को चाहिए- ' जहाँ का पीवे पानी, वहाँ की बोले बानी'।
जहाँ चाह, वहाँ राह= (जब किसी काम को करने की व्यक्ति की इच्छा होती है तो उसे उसका साधन भी मिल ही जाता है।)
प्रयोग- रामेश्वर फ़िल्म बनाना चाहता था तो उसे प्रोड्यूसर और डायरेक्टर मिल ही गए; कहते भी हैं- 'जहाँ चाह, वहाँ राह'।
जहाँ जाए भूखा, वहाँ पड़े सूखा= (अभागे मनुष्य को हर जगह दुःख ही दुःख मिलता है।)
प्रयोग- बेचारा गरीब राजू दावत में तब पहुँचा, जब भोज समाप्त हो गया। इसी को कहते हैं- 'जहाँ जाए भूखा, वहाँ पड़े सूखा'।
जाका कोड़ा, ताका घोड़ा= (जिसके पास शक्ति होती है, उसी की जीत होती है।)
प्रयोग- मंत्री जी अपने सारे निजी काम सत्ता के बल पर कराते हैं, कहते भी हैं- 'जाका कोड़ा, ताका घोड़ा'।
जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई= (जिस मनुष्य पर कभी दुःख न पड़ा हो, वह दूसरों का दुःख क्या समझे)
प्रयोग- दादी ने मुझसे कहा- बेटा, तुम पुरुष हो। नारी के दुःख को तुम कभी समझ ही न सकोगे। 'जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई'।
जागेगा सो पावेगा, सोवेगा सो खोवेगा= (जो हर क्षण सावधान रहता है, उसे ही लाभ होता है।)
प्रयोग- रामू बहुत सतर्क रहता है, इसलिए उसको कभी हानि नहीं होती और तुमको बराबर हानि ही हानि होती है। कहते भी हैं- 'जागेगा सो पावेगा, सोवेगा सो खोवेगा'।
जान न पहचान, बड़ी बुआ सलाम= (बिना जान-पहचान के किसी से भी संबंध जोड़कर बातचीत करना)
प्रयोग- मेरे पास एक आदमी आकर जब जबरदस्ती खुद को मेरा मित्र बताने लगा तो मैंने उससे कहा- 'जान न पहचान, बड़ी बुआ सलाम'।
जान मारे बनिया, पहचान मारे चोर= (बनिया परिचित व्यक्ति को ठगता है और चोर भेद मिलने से चोरी करता है।)
प्रयोग- सेठ जी वैसे तो मेरे मित्र हैं, लेकिन कपड़े के दाम बड़े महंगे लिए। मैं भी मुलाहिजे में कुछ न कह सका। ये कहावत ठीक ही है- 'जान मारे बनिया, पहचान मारे चोर'।
जान है तो जहान है= (संसार में जान सबसे प्यारी वस्तु है।)
प्रयोग- रामू काका ने मुझसे कहा कि ' जान है तो जहान है'। मैं पहले अपना स्वास्थ्य देखूँ, काम बाद में होता रहेगा।
जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा= जितना अधिक रुपया खर्च करेंगे, उतनी ही अच्छी वस्तु मिलेगी)
प्रयोग- विवेक ने कम पैसों के चक्कर में घटिया पंखा ले लिया, वह चार दिन भी नहीं चला। कहावत भी है- ' जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा'।
जितनी चादर हो, उतने ही पैर फैलाओ= (आदमी को अपनी सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार ही कोई काम करना चाहिए)
प्रयोग- रोहन हमेशा आमदनी से अधिक खर्च करता है और बाद में पैसे उधार लेता फिरता है। इस पर माँ ने कहा कि आदमी की जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाने चाहिए।
जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना= (जिस व्यक्ति के आश्रय में रहना, उसी को हानि पहुँचाना)
प्रयोग- शांति जिस थाली में खा रही है, उसी में छेद कर रही है। जिसने उसकी सहायता की, उसी को छल रही है।
जिसका काम उसी को छाजै, और करे तो डंडा बाजै= (जिसको जिस काम का अभ्यास और अनुभव होता है, वह उसे सरलता से कर लेता है। गैर-अनुभवी आदमी उसे नहीं कर सकता)
प्रयोग- जब राहुल ने खुद दीवार बनानी शुरू की तो वह गिर पड़ी। वह नहीं जानता था- 'जिसका काम उसी को छाजै, और करे तो डंडा बाजै'।
जिसकी जूती, उसी का सिर= (किसी व्यक्ति की चीज से उसी को हानि पहुँचाना)
प्रयोग- चोर ने पुलिस की बेंत से ही पुलिस को मारना शुरू कर दिया, ये तो वही बात हुई- 'जिसकी जूती, उसी का सिर'।
जिसकी बिल्ली, उसी से म्याऊँ= (जब किसी के द्वारा पाला-पोसा हुआ व्यक्ति उसी को आँखें दिखाए)
प्रयोग- ये क्या पता था कि राजू कभी उन्हीं को आँख दिखाएगा जिसने उसे पाला है। ये तो वही बात हुई- 'जिसकी बिल्ली, उसी से म्याऊँ'।
जैसा दाम, वैसा काम= (जितनी अच्छी मजदूरी दी जाएगी, उतना ही अच्छा काम होगा)
प्रयोग- जब मालिक ने बढ़ई से कहा कि वह सामान ठीक से नहीं बना रहा है तो बढ़ई ने उत्तर दिया- बाबू जी, जैसा दाम वैसा काम, आप मुझे भी तो बहुत कम दे रहे है।
जैसा देश, वैसा वेश= (जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों-नीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए)
प्रयोग- सफलता उसे ही प्राप्त होती है जो समय के साथ चलता है। कहते भी हैं- ' जैसा देश, वैसा वेश'।
जो करेगा, सो भरेगा= (जो जैसा काम करेगा वैसा फल पाएगा)
प्रयोग- छोड़ो मित्र, जो करेगा, सो भरेगा, तुम्हें क्या?
जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं= (जो लोग बहुत शेखी बघारते हैं, वे बहुत अधिक काम नहीं करते)
प्रयोग- अशोक जब बड़ी-बड़ी डींग हाँकने लगा तो सुनील बोल पड़ा- 'जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं'।
जल में रहकर मगरमच्छ से बैर= (जिसके सहारे रहे, उसी से दुश्मनी करना)
प्रयोग- जिस स्कूल में नौकरी करती हो, उसी स्कूल के डायरेक्टर का विरोध करती हो। किसी भी दिन नौकरी से निकाल देगा। ध्यान रखो। जल में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता।
जाको राखै साइयाँ, मारि सकै ना कोय= (जिसका रक्षक ईश्वर है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता)
प्रयोग- कैसा चमत्कार हुआ। बस खड्डे में जा गिरी पर किसी मुसाफिर को चोट तक न आई। सच है, 'जाको राखै साइयाँ, मारि सकै ना कोय'।
जो किसी को कुआँ खोदता है, उसको खाई तैयार रहती है= (जैसे को तैसा)
प्रयोग- पंडित रामनाथ बेचारे रामधन को नौकरी से निकलवाने पर तुले थे क्योंकि ऑफिस इंचार्ज उनका रिश्तेदार था। किस्मत का करिश्मा देखो, इंचार्ज का ट्रांसफर हो गया और उसकी जगह एक ईमानदार अफसर आ गया। उसने मामले की जाँच की और रामनाथ को ही दोषी पाया और उसी को नौकरी से निकाल दिया। इसलिए ध्यान रखो जो किसी और को कुआँ खोदता है, उसको खाई तैयार रहती है।
जान बची लाखो पाए= (किसी झंझट से मुक्ति)
प्रयोग- दंगे में शर्मा जी फँस गए। किसी तरह पुलिस की मदद से निकले तो कहने लगे जान बची लाखो पाए।
जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि= (कवि की कल्पना अनन्त होती है)
प्रयोग- कालिदास और भवभूति जैसे कवियों की रचनाओं को पढ़कर कहा जा सकता है- जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि।
जहँ-जहँ पाँव पड़े सन्तन के तहँ-तहँ होवै बन्टाधार= (मनहूस आदमी हर काम को बनाने के बजाय उसमें विघ्न ही डालता है।)
प्रयोग- उसे शादी में लाइट की व्यवस्था का जिम्मा मत सौंपना उस पर तो जहँ-जहँ पाँव पड़े सन्तन के तहँ-तहँ बन्टाधार कहावत चरितार्थ होती हैं।
जहाँ देखे तवा परात वहाँ गाए सारी रात= (लालच में कोई काम करना)
प्रयोग- पूँजीवादी व्यवस्था में बहुत से बेरोजगार जहाँ देखे तवा परात वहाँ गाए सारी रात वाली नीति पर चलने लगे हैं।
जाकै पैर न फटे बिवाई वह क्या जाने पीर पराई= (स्वयं दुःख भोगे बिना दूसरे के दर्द का एहसास नहीं होता)
प्रयोग- वो गरीब है इसलिए तुम उसका मजाक उड़ा रहे हो कि उसके जूते फटे हैं। सच कहावत है जाकै पैर न फटे बिवाई वह क्या जाने पीर पराई।
जहाँ मुर्गी नहीं होता क्या सवेरा नहीं होता= (किसी एक की वजह से संसार का काम नहीं रुकता)
प्रयोग- तुम यदि प्रकाशन से चले गए तो प्रकाशन क्या बन्द हो जाएगा। कहावत नहीं सुनी जहाँ मुर्गा नहीं होता तो क्या सवेरा नहीं होता।
जाय लाख रहे साख= (इज्जत रहनी चाहिए व्यय कुछ भी हो जाए)
प्रयोग- मेरा तो एक सूत्रीय सिद्धान्त में विश्वास है जाय लाख रहे साख।
जस दूल्हा तस बनी बरात= (जैसा मुखिया वैसे ही अन्य साथी)
प्रयोग- जैसे बिजली विभाग का इंजीनियर भ्रष्ट है वैसे ही उसके कार्यालय के अन्य कर्मचारी भ्रष्ट हैं। कहावत सच है, जस दूल्हा तस बनी बरात।
जैसे साँपनाथ वैसे नागनाथ= (दोनों एक समान)
प्रयोग- मायावती भाजपा और कांग्रेस को जैसे साँपनाथ वैसे नागनाथ कहती है।
जीभ जली और स्वाद भी कुछ न आया= (बदनामी भी हुई और लाभ भी नहीं मिला)
प्रयोग- तुमने उस लड़की से प्यार किया उसने धोखा दिया और किसी और से शादी कर ली। तुमने तो जीभ जली और स्वाद भी कुछ न आया वाली कहावत चरितार्थ कर दी।
जड़ काटते जाना और पानी देते रहना= (ऊपर से प्रेम दिखाना, अप्रत्यक्ष में हानि पहुँचाते रहना)
प्रयोग- प्रशान्त जब मुझसे मिलता है हँसकर प्रेम से बात करता है लेकिन पीछे भाई साहब से मेरी बुराई करता है। जब मुझे पता चला तो मैंने उससे कहा कि तुम जड़ काटते हो ऊपर से पानी देते हो।
जितने मुँह उतनी बातें= (एक ही बात पर भिन्न-भिन्न कथन)
प्रयोग- तुम अपने काम में ध्यान लगाओ। लोगों का काम तो कहना है जितने मुँह उतनी बातें।
जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा= (जो मन में है वह प्रकट होगा ही)
प्रयोग- मित्रता का दम भरने वाला प्रशान्त जब भाई के सामने जहर उगलने लगा तो मैंने कहा- जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा, आखिर तुम्हारी असलियत पता चल ही गई।
जैसा मुँह वैसा थप्पड़= (जो जिसके योग्य हो उसे वही मिलता है)
प्रयोग- शादी में मौसी और मामी को मम्मी ने बढ़िया साड़ियाँ दीं जबकि बुआओं को साधारण साड़ी दी। कहावत सच है जैसा मुँह वैसा थप्पड़।
जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे परदेश= (निकम्मा आदमी घर में हो या बाहर कोई अन्तर नहीं)
प्रयोग- पहले नवनीत घर पर रहता था तो भी कुछ नहीं कमाता था, जब दिल्ली गया तो दोस्त के घर पर उसके टुकड़ों पर रहने लगा। जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे परदेश।
जिसका खाइये उसका गाइये= (जिसका लाभ हो उसी का पक्ष लें)
प्रयोग- आजकल लोग इतने समझदार हो गए हैं कि जिसका खाते हैं उसका गाते हैं।
ज्यों-ज्यों भीजे कामरी त्यों-त्यों भारी होय= (जैसे-जैसे समय बीतता है जिम्मेदारियाँ बढ़ती जाती हैं)
प्रयोग- राजीव के एक बच्चा हो जाने के पश्चात उसकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं कहावत है ज्यों-ज्यों भीजे कामरी त्यों-त्यों भारी होय।
( झ )
झट मंगनी पट ब्याह= (किसी काम का जल्दी से हो जाना)
प्रयोग- अभी तो मोहन ने मकान की नींव डाली थी और अभी उसे बनवा कर उसमें रहने भी लगा। ये तो उसने 'झट मंगनी पट ब्याह' वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया।
झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला= (अंत में सच्चे आदमी की ही जीत होती है।)
प्रयोग- किसी आदमी को झूठ नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि- 'झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला' होता है।
झोपड़ी में रह के महलों के सपने देखे= (अपनी सीमा से अधिक पाने की इच्छा करना)
प्रयोग- मोहनलाल के बेटे ने थर्ड डिवीजन में बी० ए० पास किया है और चाहता है कि किसी कंपनी में सीधा मैनेजर बन जाए। भाई! झोपड़ी में रह के, महलों के सपने देखना अक्लमंदी नहीं है।
झूठ के पाँव नहीं होते= (झूठ बोलने वाला एक बात पर नहीं टिकता)
प्रयोग- न्यायालय में पैरवी के दौरान एक ही गवाह के तरह-तरह के बयान से न्यायाधीश बौखला गया। वह समझ गया था, ''झूठ के पाँव नहीं होते।''
( ट )
टके की हांडी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई= (थोड़े ही खर्च में किसी के चरित्र को जान लेना)
प्रयोग- जब रमेश ने पैसे वापस नहीं किए तो सोहन ने सोच लिया कि अब वह उसे दोबारा उधार नहीं देगा- 'टके की हांडी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई'।
टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला= (कृतघ्न व्यक्ति)
प्रयोग- जिसने रामू को पाला आज नौकरी लगने पर वह उन्हें ही आँख दिखा रहा है। ठीक ही कहा है- 'टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला'।
टके की मुर्गी नौ टके महसूल= (कम कीमती वस्तु अधिक मूल्य पर देना)
प्रयोग- जब किसी वस्तु के मूल्य से अधिक उस पर खर्च हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
टके का सब खेल= (''धन-दौलत से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं।'')
प्रयोग- आज के युग में जो चाहो, पैसा देकर हथिया लिया जा सकता है, क्योंकि भ्रष्टाचार के जमाने में 'टके का सब खेल' है।
( ठ )
ठंडा लोहा गरम लोहे को काटता है= (शांत प्रकृति वाला मनुष्य क्रोधी मनुष्य को हरा देता है।)
प्रयोग- जब भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु को लात मारी, लेकिन उनके यह कहने पर कि आपके पैर में चोट तो नहीं लगी, भृगु स्वयं लज्जित हो गए। ठीक ही कहा है- 'ठंडा लोहा गरम लोहे को काटता है'।
ठेस लगे, बुद्धि बढ़े= (हानि मनुष्य को बुद्धिमान बनाती है।)
प्रयोग- राजेश ने व्यापार में बहुत क्षति उठाई है, तब वह सफल हुआ है। ठीक ही कहते हैं- 'ठेस लगे, बुद्धि बढ़े'।
ठोक बजा ले चीज, ठोक बजा दे दाम= (अच्छी वस्तु का अच्छा मूल्य) प्रयोग- यह तो बाजार है- यहाँ कुछ सस्ती है तो कुछ महँगी भी, यानि जैसे चीज वैसा दाम। ऐसे में तो 'ठीक बजा ले चीज, ठोक बजा दे दाम' वाली कहावत चरितार्थ होती है।
ठठेरे-ठठेरे बदलौअल= (चालाक को चालक से काम पड़ना)
( ड )
डरा सो मरा= (डरने वाला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता)
प्रयोग- रामू उस जेबकतरे के चाकू से डर गया, वर्ना वह जेबकतरा पकड़ा जाता। कहते भी हैं- 'जो डरा सो मरा'।
डूबते को तिनके का सहारा= (विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य को थोड़ा सहारा भी काफी होता है।)
प्रयोग- संकट के समय रमेश को इस बात से आशा की किरण दिखाई दी कि 'डूबते को तिनके का सहारा'।
डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई= (थोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना)
प्रयोग- मुन्ना के पास केवल पचास आदमियों के खिलाने की सामर्थ्य थी तब उसने यह सब व्यर्थ का आडम्बर क्यों रचा? यह तो वही हाल हुआ- 'डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई'।
डण्डा सबका पीर= (सख्ती करने से लोग नियंत्रित होते हैं)
प्रयोग- कक्षा में राहुल नाम का छात्र बहुत शरारती था, लेकिन जब से अध्यापकों ने थोड़ी सी सख्ती क्या की, वह अनुशासन में रहता है, क्योंकि 'डण्डा सबका पीर' होता है।
डायन को दामाद प्यारा= (अपना सबको प्यारा होता है)
प्रयोग- यदि तुम उस नेता के लड़के की शिकायत करोगे तो क्या वह तुम्हारी सुनेगा, क्योंकि 'डायन को दामाद प्यारा' होता है।
( ढ )
ढाक के वही तीन पात= (परिणाम कुछ नहीं निकलना, बात वहीं की वहीं रहना)
प्रयोग- अध्यापक ने रामू को इतना समझाया कि वह सिगरेट पीना छोड़ दे, पर परिणाम 'ढाक के वही तीन पात', और एक दिन रामू के मुँह में कैंसर हो गया।
ढोल के भीतर पोल/ढोल में पोल= (केवल ऊपरी दिखावा)
प्रयोग- कविता अंग्रेजी में कुछ-भी बोलती रहती है, अभी उससे पूछो कि 'सेन्टेंस' कितने प्रकार के होते हैं 'तब ढोल के भीतर पोल' दिखना शुरू हो जाएगा।
( त )
तुम डाल-डाल तो मैं पात-पात= (किसी की चालों को खूब समझना)
प्रयोग- रंजीत ने कहा कि चलो, किधर चलते हो; 'तुम डाल-डाल तो मैं पात-पात'।
तेल तिलों से ही निकलता है= (यदि कोई आदमी किसी मामले में कुछ खर्च करता है तो वह फायदा उस मामले से ही निकाल लेता है।)
प्रयोग- जब नौकर ने कमीशन माँगा तो दुकानदार ने कीमत सवाई कर दी। आखिर, भाई, 'तेल तिलों से ही निकलता है'।
तेल देखो, तेल की धार देखो= (किसी कार्य का परिणाम देखने की बात करना)
प्रयोग- रामू बोला- 'तेल देखो, तेल की धार देखो', घबराते क्यों हो?
तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले= (जब एक व्यक्ति कुछ खर्च कर रहा हो और दूसरा उसे देख कर ईर्ष्या करे)
प्रयोग- मालिक कर्मचारियों को जब कुछ देना चाहता है तो मैनेजर को बहुत ईर्ष्या होती है। ये तो वही बात हुई- 'तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले'।
ताली एक हाथ से नहीं बजाई जाती= (प्रेम या लड़ाई एकतरफा नहीं होती)
प्रयोग- अध्यापक तो पढ़ाना चाहते हैं, पर छात्र ही न पढ़े तो वे क्या करें, कहते भी हैं- ' ताली एक हाथ से नहीं बजाई जाती'।
तीन में न तेरह में= (जिसकी पूछ न हो)
प्रयोग- रामू वहाँ किस हैसियत से जाएगा। वहाँ उसकी कोई नहीं सुनेगा, क्योंकि वह 'तीन में न तेरह में'।
तबेले की बला बंदर के सिर = (दोष किसी का, सजा किसी और को)
प्रयोग- चोरी तो की थी सुरेंद्र ने और झूठी शिकायत के आधार पर अध्यापक ने सजा दी महेश को। क्या कहें, यह तो वही बात हुई कि तबेले की बला बंदर के सिर पड़ गई।
तुरत दान महाकल्यान= (समय रहते किया गया कार्य उपयोगी साबित होता है)
प्रयोग- अच्छा लड़का मिल गया है तो जल्दी से तिथि निकलवाकर बहन की शादी कर डालो। इंतजार करने में पता नहीं कौन-सी अड़चन कहाँ से आ जाए। शुभ कार्य में 'तुरत दान महाकल्यान' ही जरूरी है।
तेते पाँव पसारिए, जैती लाँबी सौर= (आय के अनुसार ही व्यय करना चाहिए)
प्रयोग- बेटी के विवाह में झूठी शान की खातिर माहेश्वर ने कर्जा ले लिया और अब कर्जा न चुका पाने के कारण मकान गिरवी रखना पड़ा। बुजुर्गो ने इसलिए कहा है कि 'तेते पाँव पसारिए, जैती लाँबी सौर'।
तलवार का घाव भरता है, पर बात का घाव नहीं भरता= (मर्मभेदी बात आजीवन नहीं भूलती)
प्रयोग- किसी को ह्रदय विदारक शब्द मत कहो, क्योंकि वे आजीवन याद रहते है, इसलिए कहा गया है कि तलवार का घाव भरता है, पर बात का घाव नहीं भरता।
तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटोही होवे जैसा= (बिना स्त्री के पुरुष का कोई ठिकाना नहीं)
प्रयोग- जब से विकास की पत्नी उसे छोड़कर गई है तब से उसकी दशा तो तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बताऊ होवे जैसा वाली हो गई है।
तख्त या तख्ता= (शान से रहना या भूखो मरना)
प्रयोग- उसकी आदत तो, तख्त या तख्ता वाली है।
तुम्हारे मुँह में घी-शक़्कर= (तुम्हारी बात सच हो)
प्रयोग- उसने मुझे लड़का होने की दुआ दी, मैंने उससे कहा तुम्हारे मुँह में घी-शक़्कर।
तलवार का खेत हरा नहीं होता= (अत्याचार का फल अच्छा नहीं होता)
प्रयोग- तुम जो कर रहे हो वो ठीक नहीं है, तलवार का खेत हरा नहीं होता।
ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका= (एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना)
तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा= (जितने आदमी उतने विचार)
तन पर नहीं लत्ता पान खाय अलबत्ता= (शेखी बघारना)
तीन लोक से मथुरा न्यारी= (निराला ढंग)
( थ )
थोथा चना, बाजे घना= (वह व्यक्ति जो गुण और विद्या कम होने पर भी आडम्बर करे)
प्रयोग- हाईस्कूल में दो बार फेल हो चुका रामू बात कर रहा था कि उसे सब कुछ याद है और वह इंटर के छात्रों को भी पढ़ा सकता है। ये तो वही बात हुई- 'थोथा चना, बाजे घना'।
थका ऊँट सराय तके= (दिनभर काम करने के बाद मजदूर को घर जाने की सूझती है।)
प्रयोग- दिनभर काम करने के बादराजू घर जाने के लिए चलने लगा। ठीक ही है- 'थका ऊँट सराय तके'।
थूक से सत्तू सानना= (कम सामग्री से काम पूरा करना)
प्रयोग- इतने बड़े यज्ञ के लिए दस किलो घी तो थूक से सत्तू सानने के समान है।
थोड़ी पूँजी घणी को खाय= (अपर्याप्त पूँजी से व्यापार में घाटा होता है)
प्रयोग- सुबोध ने गेंद बनाने की फैक्ट्री लगायी, कच्चा माल उधार लेने लगा जो महँगा मिला, इस कारण उसे घाटा उठाना पड़ा। सच है थोड़ी पूँजी धणी को खाय।
थूक कर चाटना ठीक नहीं= (देकर लेना ठीक नहीं, वचन-भंग करना, अनुचित।)
( द )
दाल-भात में मूसलचन्द= (दो व्यक्तियों के काम की बातों में तीसरे आदमी का हस्तक्षेप करना)
प्रयोग- मित्र, मैं तुम से पूछता हूँ, तुम्हें उन लोगों की बातचीत में, 'दाल-भात में मूसलचन्द' की तरह कूदने की क्या जरूरत थी? दोनों बात कर रहे थे, करने देते।
दीवारों के भी कान होते हैं= (गुप्त परामर्श एकांत में धीरे बोलकर करना चाहिए)
प्रयोग- अरे राम! जरा धीरे बोलो, क्या जाने कोई सुन रहा हो, क्योंकि ' दीवारों के भी कान होते हैं'।
दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती है= (जिस व्यक्ति से लाभ होता है, उसकी कड़वी बातें भी सुननी पड़ती हैं।)
प्रयोग- कमाऊ बेटा है, लेकिन कभी-कभी झगड़ा कर बैठता है। अरे भाई, 'दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती है'।
दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है= (एक बार धोखा खाने के बाद बहुत सोच-विचार कर काम करना)
प्रयोग- पिछली बार एक दिन की गैरहाजिरी में राजू को दफ्तर से जवाब मिला था; इसलिए अब वह देरी से जाने से भी डरता है, क्योंकि 'दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है'।
दूध का दूध और पानी का पानी= (सच्चा न्याय)
प्रयोग- कल पंचों ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।
दूधो नहाओ, पूतो फलो= (आशीर्वाद देना)
प्रयोग- दादी बहू से आशीष के भाव से बोली, 'दूधो नहाओ, पूतो फलो'।
दूर के ढोल सुहावने लगते हैं= (दूर के व्यक्ति अथवा वस्तुएँ अच्छी मालूम पड़ती हैं।)
प्रयोग- इतना पैसा उसके पास कहाँ है? गाँव का सबसे बड़ा आदमी है तो क्या हुआ- 'दूर के ढोल सुहावने लगते हैं'।
देर आयद, दुरुस्त आयद= (कोई काम देर से हो, परन्तु ठीक हो)
प्रयोग- रामू ने घर देरी से खरीदा, पर घर अच्छा है- 'देर आयद, दुरुस्त आयद'।
दोनों हाथों में लड्डू होना= (दोनों तरफ लाभ होना)
प्रयोग- अब तो रोहन ने दुकान भी खोल ली, नौकरी तो वह करता ही था अतः अब उसके दोनों हाथों में लड्डू हैं।
दो मुल्लों में मुर्गी हराम= (एक चीज को दो या अधिक आदमी प्रयोग करें तो उसकी खींचातानी होती है।)
प्रयोग- महेश की कार कभी ठीक नहीं रहती, क्योंकि उसे कई ड्राईवर चलाते हैं। ठीक ही है- 'दो मुल्लों में मुर्गी हराम'।
दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया= (रुपैया-पैसा ही सब कुछ है)
प्रयोग- आज के जमाने में कोई किसी को नहीं पूछता। आजकल तो 'दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया'।
दुविधा में दोऊ गए, माया मिली न राम= (अनिश्चय की स्थिति में काम करने पर एक में भी सफलता नहीं मिलती)
प्रयोग- सुमित्रा ने नौकरी भी कर ली और उधर पत्राचार से बीए की परीक्षा का फॉर्म भी भर दिया। परीक्षा की तैयारी के चक्कर में नौकरी भी छूट गई और पूरी तरह से तैयारी न हो पाने के कारण पास भी न हो सकी। इसलिए कहा जाता है कि जो भी काम करो मन लगाकर उसे पूरा करो। जो लोग एक से अधिक कामों में टाँग फँसाते हैं वे न तो इसे पूरा कर पाते हैं और न उसे। क्योंकि 'दुविधा में दोऊ गए, माया मिली न राम'।
देखे ऊँट किस करवट बैठता है?= (देखें क्या फैसला होता है?)
प्रयोग- किस पार्टी की सरकार बनेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। वोटों की गिनती के बाद ही तय होगा कि ऊँट किस करवट बैठता है।
दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँककर पीता है= (ठोकर खाने के बाद आदमी सावधान हो जाता है।)
प्रयोग- किसी काम में हानि हो जाने पर दूसरा काम करने में भी डर लगता है। भले ही उसमें डर की सम्भावना न हो, ठीक ही कहा गया है- दूध का जला छाछ (मट्ठा) भी फूँक-फूँककर पीता है।
दाने-दाने पर मुहर= (हर व्यक्ति का अपना भाग्य)
प्रयोग- मैं और सचिन नाश्ता कर रहे थे, इतने में अनिल आ गया तो मैंने कहा दाने-दाने पर मुहर होती है।
दाम संवारे काम= (पैसा सब काम करता है)
प्रयोग- जब राजीव इंग्लैण्ड से भारत आया तो सब कुछ बदला-सा नजर आया इस पर साथियों ने कहा दाम संवारे सबई काम।
दूसरे की पत्तल लम्बा-लम्बा भात= (दूसरे की वस्तु अच्छी लगती है)
प्रयोग- तुम्हें मेरी सरकारी नौकरी अच्छी लग रही है। मुझे तुम्हारा व्यापार, जिससे खूब आय है। सच कहावत है दूसरे की पत्तल लम्बा-लम्बा भात।
दूध पिलाकर साँप पोसना= (शत्रु का उपकार करना)
प्रयोग- तुम राजेन्द्र को अपने यहाँ लाकर दूध पिलाकर साँप पोसना कहावत को चरितार्थ न करना।
दोनों दीन से गए पाण्डे हलुआ मिला न माँडे= (किसी तरफ के न होना)
प्रयोग- उसने सरकारी नौकरी छोड़कर चुनाव लड़ा। वह चुनाव हार गया। इस प्रकार दोनों दीन से गए पाण्डे हलुआ मिला न माँडे।
दमड़ी की हाँड़ी गयी, कुत्ते की जात पहचानी गयी= (मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान।)
दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली= (काम साधारण, खर्च अधिक)
देशी मुर्गी, विलायती बोल= (बेमेल काम करना)
( ध )
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का= (जिसके रहने का कोई पक्का ठिकाना न हो)
प्रयोग- गाँव से आया रामू दिल्ली में आकर धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का जैसा हो गया है।
धोबी से पार न पावे, गधे के कान उमेठे= (बलवान पर वश न चले तो निर्धन पर गुस्सा निकालना)
प्रयोग- रमेश अपने साहब के सामने तो गिड़गिड़ाता रहता है और चपरासी पर रौब डांटता है- 'धोबी से पार न पावे, गधे के कान उमेठे'।
धन्ना सेठ के नातीबने हैं= (अपने कोअमीर समझते है।)
प्रयोग- जेब में सौ रुपये नहीं रहते वैसे अपने को धन्ना सेठ के नाती बनते हैं।
धूप में बाल सफेद नहीं किए है= (सांसरिक अनुभव बहुत है)
प्रयोग- तुम हमें बहकाने की कोशिश मत करो, ये बल धूप में सफेद नहीं किए हैं।
( न )
नाच न जाने आँगन टेढ़= (काम न जानना और बहाना बनाना)
प्रयोग- सुधा से गाने के लिए कहा, तो उसने कहा- साज ही ठीक नहीं, गाऊँ क्या ?कहा है: 'नाच न जाने आँगन टेढ़।'
न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी= (झगड़े की जड़ को नष्ट कर देना)
प्रयोग- इस खिलौने पर ही बच्चों में रोजाना झगड़ा होता है। इसे उठाकर क्यों नहीं फ़ेंक देते- 'न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी'।
न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी= (असंभव शर्ते रखना)
प्रयोग- राजू ने कहा- यदि आप मुझे 8000 रुपये मासिक व्यय दें तो मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ने जाऊँगा। पिताजी ने कहा- 'न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी'।
नौ नगद, न तेरह उधार= (उधार की अपेक्षा नगद चीजें बेचना अच्छा होता है।)
प्रयोग- प्रेम किसी को भी उधार नहीं देता उसका तो एक ही सिद्धांत है- 'नौ नगद, न तेरह उधार'।
न आगे नाथ न पीछे पगहा= (जिसका कोई सगा-सम्बन्धी न हो)
प्रयोग- जज साहब अकेले ही थे- 'न आगे नाथ न पीछे पगहा'।
न आव देखा न ताव= (बिना सोचे-समझे काम करना)
प्रयोग- उसने 'न आव देखा न ताव' झट रामू को थप्पड़ मार दिया।
न ईंट डालो, न छींटे पड़ें= (यदि तुम किसी को छेड़ोगे, तो तुम्हें दुर्वचन अवश्य सुनने पड़ेंगे)
प्रयोग- केशव न ईंट डालता, न छींटे पड़ते, उसने पागल को छेड़ा तो उसे पत्थर खाना पड़ा।
न ऊधो का लेना, न माधो का देना= (किसी से कोई सम्बन्ध न रखना)
प्रयोग- शास्त्रीजी तो सिर्फ पढ़ाने से मतलब रखते हैं- 'न ऊधो का लेना, न माधो का देना'।
न घर का रहना न घाट का= (बिल्कुल असहाय होना)
प्रयोग- मैं रामू की सहायता न करता तो वह 'न घर का रहता न घाट का'।
न तीन में न तेरह में= (जिसकी कोई गिनती न हो)
प्रयोग- हमारा देश तो हिन्दुओं का है, मुसलमानों का है, अंग्रेज कौन होते हैं, 'न तीन में न तेरह में'।
न नामलेवा न पानी देवा= (जिसका संसार में कोई न हो)
प्रयोग- एक बार पंकज के गाँव में प्लेग फैल गया। उसके घर के सब लोग मर गए। अब 'न कोई नामलेवा है और न पानी देवा'।
नंगा क्या पहनेगा, क्या निचोड़ेगा= (एक दरिद्र किसी को क्या दे सकता है।)
प्रयोग- रामू ने कहा- हम तो खुद गरीब हैं, हम चंदा कहाँ से देंगे- 'नंगा क्या पहनेगा, क्या निचोड़ेगा'।
नया नौ दिन पुराना सौ दिन= (नई चीजों की अपेक्षा पुरानी चीजों का अधिक महत्व होता है।)
प्रयोग- बड़े-बड़े डॉक्टर आ गए हैं, लेकिन मैं तो उन्हीं वैद्य जी के पास जाऊँगा, क्योंकि ' नया नौ दिन पुराना सौ दिन'।
नादान की दोस्ती जी का जंजाल= (मूर्ख की मित्रता बड़ी नुकसानदायक होती है।)
प्रयोग- कालू जैसे मूर्ख से दोस्ती करना तो नादान की दोस्ती जी का जंजाल है।
नाम बड़ा और दर्शन छोटे= (नाम बहुत हो परन्तु गुण कम या बिल्कुल नहीं हों)
प्रयोग- लखपति बुआ ने विदा के समय भतीजों को बस एक-एक रुपया दिया। ये तो वही बात हुई- 'नाम बड़ा और दर्शन छोटे'।
नेकी और पूछ-पूछ= (भलाई करने में संकोच कैसा)
प्रयोग- डॉक्टर साहब सब मरीजों को दवा मुफ़्त देने की जब पूछने लगे तो मरीज बोले- 'नेकी और पूछ-पूछ'।
नेकी कर, दरिया में डाल= (उपकार करते समय बदले की भावना नहीं रखनी चाहिए)
प्रयोग- श्यामजी ने उत्तेजित होकर कहा- मियां साहब, उपकार अहसान के लिए नहीं किया जाता, नेकी करके दरिया में डाल देना चाहिए।
नौ दिन चले अढ़ाई कोस= (बहुत सुस्ती से काम करना)
प्रयोग- राजू ने दस महीने में मात्र एक पाठ याद किया है। यह तो वही बात हुई- 'नौ दिन चले अढ़ाई कोस'।
नौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली= (पूरी जिंदगी पाप करके अंत में धर्मात्मा बनना)
प्रयोग- कालू कितना बदमाश था, अब वृद्ध हो जाने पर वह धर्मात्मा बन रहा है- ये तो नौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली वाली बात है।
नंग बड़े परमेश्वर से = (ईश्वर की बजाए, निर्लज्ज से डर कर रहना चाहिए)
प्रयोग-मतिराम एकदम घटिया व्यक्ति है। मैं उसे मुँह नहीं लगाता और न उससे बात करता हूँ। ऐसे लोगों का भरोसा नहीं कब किसके सामने आपके बारे में क्या बोल दें क्योंकि नंग बड़े परमेश्वर से, इनका क्या भरोसा?
न लेना एक न देना दो= (कोई संबंध न रखना)
प्रयोग- भाई साहब का बड़ा बेटा गलत सोहबत में पड़ गया है और भाई साहब उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहे। हमें क्या? भुगतेंगे खुद ही। हमें तो उस लड़के से न लेना एक न देना दो।
नानी के आगे ननिहाल की बातें= (अपने से अधिक जानकारी रखने वाले के सामने जानकारी की शेखी बघारना)
प्रयोग- कंप्यूटर के बारे में जो कुछ तुम बता रहे हो मेरा छोटा बेटा तुमसे अधिक जानकारी रखता है। तुम्हारी इज्जत करता है इसलिए चुप है। ध्यान रखो नानी के आगे ननिहाल की बातें करना शोभा नहीं देता।
नित्य कुआँ खोदना, नित्य पानी पीना= (प्रतिदिन काम करके पेट भरना)
प्रयोग- हम मजदूर कहाँ से इतना पैसा लाएँ जिससे कि एक घर खड़ा हो जाए। हम लोग तो नित्य कुआँ खोदते हैं और नित्य पानी पीते हैं।
निन्यानवे के फेर में पड़ना= (धनसंग्रह की धुन समाना)
प्रयोग- सारे व्यापारी सुबह से शाम तक अपने व्यापार में लगे रहते हैं। न घर की चिंता, न परिवार की। ऐसे लोगों के बच्चे भी बिगड़ जाते हैं। वास्तव में निन्यानवे के फेर में पड़कर ये लोग अपना वर्तमान खराब कर लेते हैं।
नक्कारखाने में तूती की आवाज= (बड़ों के बीच में छोटे आदमी की कौन सुनता है)
प्रयोग- व्यवस्था परिवर्तन चाहने वालों की आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गई है।
नानी क्वांरी मर गई, नाती के नौ-नौ ब्याह= (झूठी बड़ाई)
प्रयोग- निर्भय हर जगह अपनी धन-दौलत का गुणगान करता रहता है। एक दिन अजय ने उससे कह दिया नानी क्वांरी मर गई, नाती के नौ-नौ ब्याह।
नदी नाव संयोग= (कभी-कभी मिलना)
प्रयोग- अरे आज तुम इतने दिन बाद मिल गए, ये तो नदी नाव संयोग वाली कहावत चरितार्थ हो गई।
नकटा बूचा सबसे ऊँचा= निर्लल्ज आदमी सबसे बड़ा है)
प्रयोग- निर्भय से जीतना असम्भव है। उस पर तो नकटा बूचा सबसे ऊँचा वाली कहावत लागू होती है।
न देने के नौ बहाने= (न देने के बहुत-से बहाने)
नदी में रहकर मगर से वैर=(जिसके अधिकार में रहना, उसी से वैर करना)
नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च= काम साधारण, खर्च अधिक)
नीम हकीम खतरे जान= (अयोग्य से हानि)
नाच कूदे तोड़े तान, ताको दुनिया राखे मान= आडम्बर दिखानेवाला मान पाता है।)
( प )
पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो किस्मत (या कुदरत) का खेल= (पढ़े-लिखे लोग भी दुर्भाग्य के कारण दुःख उठाते हैं।)
प्रयोग- रमेश को एम.ए. करने के बाद भी कोई काम नहीं मिल रहा है। इसी को कहते हैं- 'पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो कुदरत का खेल'।
पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं= (सब मनुष्य एक जैसे नहीं होते)
प्रयोग- इस दुनिया में तरह-तरह के लोग हैं। कहा भी है- 'पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं'।
पल में तोला, पल में माशा= (अत्यन्त परिवर्तनशील स्वभाव होना)
प्रयोग- दादी का स्वभाव कुछ समझ नहीं आता। कल कुछ और थी, आज कुछ और हैं- 'पल में तोला, पल में माशा'।
पाँचों उंगलियाँ घी में होना= (हर तरफ से लाभ होना)
प्रयोग- सतीश काफी खुश था। वह बोला- अरे, इस बार ऐसा काम कर रहा हूँ कि 'पाँचों उंगलियाँ घी में होंगी'।
पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं= (बच्चे की प्रतिभा बचपन में ज्ञात हो जाती है।)
प्रयोग- शिवाजी की प्रतिभा का उनके बचपन में ही पता चल गया था। तभी कहते हैं- 'पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं'।
प्यासा कुएँ के पास जाता है, कुआँ प्यासे के पास नहीं आता= (जिसे गर्ज होती है, वही दूसरों के पास जाता है।)
प्रयोग- राजू ने रमेश से कहा कि वह उसके घर आकर उसका होमवर्क पूरा करवा दे तो रमेश ने कहा कि वह उसके घर क्यों नहीं आ जाता- 'प्यासा कुएँ के पास जाता है, कुआँ प्यासे के पास नहीं आता'।
पेट में आँत, न मुँह में दाँत= (बहुत वृद्ध व्यक्ति)
प्रयोग- रामू काका के पेट में न आँत है न मुँह में दाँत, फिर भी वे मेहनत-मजदूरी करते हैं।
परहित सरिस धरम नहिं भाई= (परोपकार से बढ़कर और कोई धर्म नहीं)
प्रयोग- हमें सदैव दूसरों की मदद करनी चाहिए, क्योंकि परहित सरिस धरम नहिं भाई।
पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं= (परतंत्रता में कभी सुख नहीं)
प्रयोग- अँग्रेजों के जाने के बाद भारतवासियों को यह अहसास हुआ कि पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।'
पहले पेट पूजा, बाद में काम दूजा= (भोजन किए बिना काम में मन न लगना)
प्रयोग- जब बैठक दो बजे भी समाप्त न हुई तो सारे सदस्य चिल्लाने लगे- 'पहले पेट पूजा, बाद में काम दूजा', अब हमलोग बिना कुछ खाए काम नहीं कर सकते।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे= (दूसरों को उपदेश देने में सब चतुर होते हैं)
प्रयोग-मंदिर का पुजारी सभी दर्शनार्थियों को यह उपदेश देता है कि परिश्रम करके खाओ', 'मिल-जुल कर बाँट कर खाओ' और खुद मंदिर में चढ़ा-चढ़ावा अकेले हजम कर जाता है। सच है, 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे'।
पारस को छूने से पत्थर भी सोना हो जाता है =(सत्संगति से बुरे भी अच्छे हो जाते हैं)
प्रयोग- अच्छे लोगों के साथ उठने-बैठने के कारण अब रामेश्वर का बेटा कैसे बदल गया है। किसी ने सही कहा है कि पारस को छूने से पत्थर भी सोना हो जाता है।
पिष्टपेषण करना= (एक ही बात को बार-बार दोहराना)
प्रयोग- शर्मा जी ने पंडित रामदीन से कह दिया कि उनके लड़के से वे अपनी बेटी का रिश्ता नहीं कर सकते। पर रामदीन जब उनके पीछे ही पड़ गए तो, शर्मा जी बोले, पंडित जी, एक ही बात का पिष्टपेषण करने से कोई लाभ नहीं, मैं अपनी बात कह चुका हूँ।
पीर, बाबरची, भिश्ती खर= (जब किसी व्यक्ति को छोटे-बड़े सब काम करने पड़ें)
प्रयोग- बेचारे सुंदर को अब तक तो ऑफिस में ही सारे काम करने पड़ते थे, अब शादी के बाद पत्नी के डर से घर के भी सारे काम करने पड़ते हैं। बेचारे की हालत तो पीर, बाबरची, भिश्ती खर जैसी हो गई है।
पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं =(अच्छे गुणों के लक्षण बचपन में ही पता चल जाते हैं)
प्रयोग- पंडित नेहरू जब बच्चे थे तभी पंडितों ने कह दिया था कि बड़े होकर यह बालक बहुत नाम कमाएगा। किसी ने ठीक ही कहा है कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं।
पैसा गाँठ का, विद्या कंठ की= (धन और विद्या अपनी पहुँच के भीतर हों तभी लाभकारी होते हैं)
प्रयोग- जिसके पास धन भी है और ज्ञान भी वे लोग संसार में किसी से मात नहीं खाते क्योंकि ऐसे लोगों के लिए यह कहावत सच है कि पैसा गाँठ का, विद्या कंठ की।
पराये धन पर लक्ष्मी नारायण= (दूसरे का धन पाकर अधिकार जमाना)
प्रयोग- तुम तो पराये धन पर लक्ष्मी नारायण बन रहे हो।
पानी पीकर जात पूछना= (काम करने के बाद उसके अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार करना)
प्रयोग- पहले लड़की की शादी अनजान घर में कर दी अब पूछ रहे हो लोग कैसे हैं ? आप तो पानी पीकर जात पूछने वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हो।
पत्नी टटोले गठली और माँ टटोले अंतड़ी= (पत्नी देखते है कि मेरे पति के पास कितना धन है और माँ देखती है कि मेरे बेटे का पेट अच्छी तरह भरा है या नहीं)
प्रयोग- अभय जब ऑफिस से घर आता है तो पत्नी कोई-न-कोई फरमाइश कर पैसे माँगती है, जबकि माँ पूछती बेटा तूने दिन में क्या खाया, आ खाना खा ले। कहावत सच है, पत्नी टटोले गठरी और माँ टटोले अंतड़ी।
पाँचों सवारों में मिलना= (अपने को बड़े व्यक्तियों में गिनना)
प्रयोग- वह भले ही पैसे वाला न हो लेकिन पाँचों सवारों में मिलना चाहता है।
पहले भीतर तब देवता-पितर= (पेट-पूजा सबसे प्रधान)
पूछी न आछी, मैं दुलहिन की चाची= (जबरदस्ती किसी के सर पड़ना)
पंच परमेश्वर= (पाँच पंचो की राय)
( फ )
फटक चन्द गिरधारी, जिनके लोटा न थारी= (अत्यन्त निर्धन व्यक्ति)
प्रयोग- केशव के पास देने को कुछ नहीं है। वह तो फटक चन्द गिरधारी है।
फूंक दो तो उड़ जाय= (बहुत दुबला-पतला आदमी)
प्रयोग- रमा तो ऐसी दुबली-पतली थी कि 'फूंक दो तो उड़ जाय'।
फकीर की सूरत ही सवाल है= (फकीर कुछ माँगे या न माँगे, यदि सामने आ जाए तो समझ लेना चाहिए कि कुछ माँगने ही आया)
प्रयोग- शर्मा जी जब घर आते हैं कुछ न कुछ माँगकर ले जाते हैं। जब वे परसों घर आए तो मैंने दो सौ रुपये दे दिए। बीबी ने पूछा बिना माँगे क्यों दिए तो कहा फकीर की सूरत ही सवाल है।
फलेगा सो झड़ेगा= (उन्नति के पश्चात अवनति अवश्यम्भावी है)
प्रयोग- एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँचने के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अवनति होती है, क्योंकि फलेगा सो झड़ेगा।
( ब )
बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद= (वह व्यक्ति जो किसी विशेष वस्तु या व्यक्ति की कद्र न जानता हो)
प्रयोग- उपदेश झाड़ने आए हो, कह रहे हो- चाय मत पीयो। भला तुम क्या जानो इसके गुण- 'बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद'।
बहती गंगा में हाथ धोना= (अवसर का लाभ उठाना)
प्रयोग-सत्संग के लिए काफी लोग एकत्रित हुए थे। ऐसे में क्षेत्रीय नेता भी वहाँ आ गए और उन्होंने अपना लंबा-चौड़ा भाषण दे डाला। इसे कहते हैं- बहती गंगा में हाथ धोना।
बिल्ली के भागों छींका टूटा= (अकस्मात् कोई काम बन जाना)
प्रयोग- अगर ट्रेन लेट न होती तो हमें कैसे मिलती। ये तो बिल्ली के भागों छींका टूट गया।
बंदर के हाथ नारियल= (किसी के हाथ ऐसी मूल्यवान चीज पड़ जाए, जिसका मूल्य वह जानता न हो)
प्रयोग- छोटू को स्कूटर देना तो बंदर के हाथ नारियल देना है।
बगल में छुरी, मुँह में राम= (मुँह से मीठी-मीठी बातें करना और हृदय में शत्रुता रखना)
प्रयोग- वैसे तो वे भाइयों को बहुत प्यार करते थे, लेकिन मौका पाते ही उनकी सब सम्पत्ति हड़प ली। इसे कहते हैं-'बगल में छुरी, मुँह में राम'।
बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह= (एक से बढ़ कर एक)
प्रयोग- सेठ जी तो अपने मजदूरों का कभी वेतन नहीं बढ़ाते थे। उनके बेटे ने तो मजदूरों का बोनस भी काट लिया। इसे कहते हैं- 'बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह'।
बत्तीस दाँतों में जीभ= (शत्रुओं से घिरा रहना)
प्रयोग- लंका में विभीषण ऐसे रहते थे जैसे बत्तीस दाँतों में जीभ रहती है।
बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया= (रुपए-पैसे का सर्वाधिक महत्व होना)
प्रयोग- दयाराम ने अपने सगे भाई से भी ब्याज ले ली। सच ही है= 'बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया'।
बासी बचे न कुत्ता खाय= (आवश्यकता से अधिक चीज न बनाना जिससे कि खराब न हो।)
प्रयोग- रामू के यहाँ तो रोज जितनी चीजों की जरूरत होती है उतनी ही आती है- 'बासी बचे न कुत्ता खाय'।
बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख= (यदि भाग्य प्रतिकूल हो तो माँगने पर भीख भी नहीं मिलती)
प्रयोग- पहले तो माँगने से भी नहीं दीं और आज हरीश ने अपने आप ही सारी किताबें मुझको दे दीं। ठीक ही है- 'बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख'।
बुरे काम का बुरा अंजाम= (बुरे काम का बुरा फल)
प्रयोग- हमें बुरे कर्म नहीं करने चाहिए क्योंकि बुरे काम का बुरा अंजाम होता है।
बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम= (बेमेल बात)
प्रयोग- गाँव के रामू ने जब अंग्रेजी मेम से शादी कर ली तो सब यही कहने लगे कि ये तो बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम है।
बैठे से बेगार भली= (खाली बैठे रहने से कुछ न कुछ काम करना भला होता है।)
प्रयोग- मेरे पास कोई काम नहीं था। मन में आया कुछ लिखा ही जाए- 'बैठे से बेगार भली'।
बंदर के गले में मोतियों की माला= (किसी मूर्ख को मूलयवान वस्तु मिल जाना)
प्रयोग- भृगु जैसे निपट गँवार को न जाने कैसे इतनी सुशील, गुणी और सुंदर पत्नी मिल गई। इसे कहते हैं बंदर के गले में मोतियों की माला। सब किस्मत का खेल है।
बंदर की दोस्ती जी का जंजाल= (मूर्ख से मित्रता करना मुसीबत मोल लेना है)
प्रयोग- मैंने सुमन को इतना समझाया था कि राकेश जैसे मूर्ख का साथ छोड़ दे पर उसने मेरी एक न सुनी। एक दिन राकेश की बातों में आकर तालाब में तैरने चला गया। दोनों को तैरना तो आता नहीं था अतः लगे डूबने। वह तो अच्छा हुआ कि वहाँ कुछ तैराक उसी समय पहुँच गए और उन्होंने दोनों को बचा लिया। इस घटना के बाद सुमन ने राकेश का साथ यह कहकर छोड़ दिया कि 'बंदर की दोस्ती जी का जंजाल' होती है।
बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी= (अपराधी किसी-न-किसी दिन पकड़ा ही जाएगा)
प्रयोग- आतंकवादी तीन दिन तक तो मंदिर में छुपकर फायरिंग करते रहे। अंत में पुलिस की गोलियों से सभी मारे गए। ठीक ही कहा गया है कि बकरे की माँ कब तक खैर मनाती।
बद अच्छा, बदनाम बुरा= (बदनाम व्यक्ति बुराई न भी करें तो भी लोगों का ध्यान उसी पर जाता है)
प्रयोग- शराबी व्यक्ति यदि दूध का गिलास लेकर भी जाएगा तो लोग यही समझेंगे कि दारू का गिलास है क्योंकि बद अच्छा, बदनाम बुरा होता है।
बारह वर्षों में तो घूरे के दिन भी बदलते हैं= (एक न एक दिन अच्छा समय आता ही है)
प्रयोग- अरे भाई हमलोग मेहनत कर रहे हैं कभी-न-कभी तो हमें भी सफलता मिलेगी। बारह वर्षों में तो घूरे के दिन भी बदल जाते हैं।
बाप न मारी मेढ़की, बेटा तीरंदाज= (छोटे का बड़े से आगे निकल जाना)
प्रयोग- रमाकांत भी हॉकी खेलता था पर कभी किसी अच्छी टीम में उसका चयन न हो पाया पर उसके बेटे को देखो कमाल कर दिया। वह तो अपने अच्छे खेल के कारण भारतीय टीम का कैप्टन बन गया है। इसे कहते हैं बाप न मारी मेढ़की, बेटा तीरंदाज।
बाबा ले, पोता बरते= (किसी वस्तु का अधिक टिकाऊ होना)
प्रयोग- सस्ते के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। जो भी सामान खरीदो ऐसा हो कि बाबा ले, पोता बरते', भले वह चीज महँगी क्यों न हो।
विपत्ति परे पै जानिए, को बैरी, को मीत= (संकट के समय ही मित्र और शत्रु की पहचान होती है)
प्रयोग- जब मैं मुसीबत में था तब सुरेश को छोड़कर किसी भी दोस्त ने मेरा साथ नहीं दिया। सच में मुझे तब पता चला कि सुरेश के अलावा मेरा कोई दोस्त नहीं है। ठीक ही कहा गया है कि विपत्ति परे पै जानिए, को बैरी को मीत।
बिल्ली को ख्वाब में भी छींछड़े नजर आते हैं= (जरूरतमंद को स्वप्न में भी जरूरत की चीज दिखाई देती है)
प्रयोग- मेरे भाई साहब पैसे के पीछे पागल हो गए हैं। दिन-रात उन्हें यही चिंता लगी रहती है कि पैसा कैसे कमाया जाए। क्या करें उनके लिए तो यही कहावत उपयुक्त है कि बिल्ली को तो ख्वाब में भी छींछड़े नजर आते हैं।
बिल्ली खाएगी, नहीं तो लुढ़का देगी= (दुष्ट लोग स्वयं लाभ न उठा पाएँ तो दूसरों की हानि तो कर ही देंगे)
प्रयोग- मंत्री जी ने संस्था के अधिकारी को धमकी देते हुए कहा, 'अगर मैनेजर के पद पर मेरे आदमी को नहीं लगाया तो मैं यह पद ही कैंसिल करवा दूँगा। यह तो वही बात हुई कि बिल्ली खाएगी, नहीं तो लुढ़का देगी।
बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले= (पिछली बातों को भुलाकर आगे की चिन्ता करनी चाहिए)
प्रयोग- इधर-उधर आवारागर्दी करने के कारण मनोज बी० ए० की परीक्षा में फेल हो गया और जब उसने रोना-धोना शुरू कर दिया तो शर्माजी ने समझाया कि 'बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले।'
बूर के लड्डू जो खाए सो पछताए, जो न खाय वह भी पछताय= (ऐसा कार्य जिसको करने वाले तथा न करने वाले, दोनों ही पछताते हैं)
प्रयोग- भैया शादी को बूर का लड्डू समझो। इसे तो जो खाए सो पछताए और जो न खाए सो पछताए।
बेकार से बेगार भली= (न करने से कुछ करना ही अच्छा है)
प्रयोग- मैंने अपनी पत्नी को समझाया कि दिनभर खाली बैठे रहकर बोर होती हो इससे अच्छा है कि आसपास के गरीब बच्चों को एक-दो घंटे पढ़ा दिया करो क्योंकि बेकार से बेगार भली होती है।
बोया गेहूँ, उपजे जौ= (कार्य कुछ परिणाम कुछ और)
प्रयोग- रमेश ने पैसा खर्च करके बेटे को मैडीकल में ऐडमिशन दिलाया। बेटा डॉक्टर भी बन गया पर प्रैक्टिस न चली। यह देखकर महेश ने उसके लिए एक केमिस्ट की दुकान खुलवा दी। बेचारा लड़का, डॉक्टर से कैमिस्ट बन गया। यह तो वही बात हुई कि बोया गेहूँ, उपजे जौ।
बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ ते होय= (बुरे कर्मो से अच्छा फल नहीं मिलता)
प्रयोग- शमीम सारी जिंदगी बेईमानी करता रहा। बेईमानी के पैसे से सुख सुविधाएँ तो मिल गयीं पर बच्चे बिगड़ गए और बाप की ही तरह गलत रास्तों पर चलने लगे। बच्चों को गलत रास्ते पर चलता देख शमीम को अच्छा नहीं लगता पर कोई क्या कर सकता है जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से हो जाएँगे।
बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल= (श्रेष्ठ वंश में बुरे का पैदा होना)
बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा= (जिसको दुःख नहीं हुआ है वह दूसरे के दुःख को समझ नहीं सकता)
बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया= (बहुत बड़ा घाटा)
( भ )
भागते चोर की लंगोटी ही सही= (सारा जाता देखकर थोड़े में ही सन्तोष करना)
प्रयोग- सेठ करोड़ीमल पर मेरे दस हजार रुपये थे। दिवाला निकलने के कारण वह केवल दो हजार रु० ही दे रहा है। मैंने सोचा, चलो भागते चोर की लंगोटी ही सही।
भैंस के आगे बीन बजाना= (मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है।)
प्रयोग-अरे ! रवि को पढ़ाई की बातें क्यों समझा रहे हो ? उसके लिए पढ़ाई-लिखाई सब बेकार की बातें हैं। तुम व्यर्थ ही भैंस के आगे बीन बजा रहे हो।
भागते भूत की लँगोटी ही भली= (जहाँ कुछ न मिलने की आशंका हो, वहाँ थोड़े में ही संतोष कर लेना अच्छा होता है।)
प्रयोग- चोर तो पुलिस के हाथ नहीं आए, पर पुलिस को वह आदमी मिल गया जिसने उन चोरों को देखा था- कहते हैं कि भागते भूत की लँगोटी ही भली।
भरी मुट्ठी सवा लाख की= (भेद न खुलने पर इज्जत बनी रहती है।)
प्रयोग- रामपाल को वेतन बहुत कम मिलता है, लेकिन वह किसी को कुछ नहीं बताता। सही बात है- 'भरी मुट्ठी सवा लाख की' होती है।
भूखा सो रूखा= (निर्धन मनुष्य में मृदुता नहीं होती)
प्रयोग- रामू गरीब है इसलिए उसका रूखा स्वभाव है। कहते भी हैं-'भूखा सो रूखा'।
भेड़ की खाल में भेड़िया= (जो देखने में भोला-भाला हो, परन्तु वास्तव में खतरनाक हो।)
प्रयोग- आजकल कुछ लालची नेता लोग 'भेड़ की खाल में भेड़िये' बने शिकार खेल रहे हैं, उन्हें बेनकाब करना चाहिए।
भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है= (ईश्वर की जब किसी पर कृपा होती है तो उसे चारों ओर से लाभ ही लाभ होता है)
प्रयोग- वर्मा जी के लिए यह साल बड़ा ही लकी साबित हुआ। उनकी बेटी का विवाह हो गया, एक करोड़ की लॉटरी लग गई जिससे उन्होंने एक नया फ्लैट तथा गाड़ी खरीद ली। सच में भगवान जब किसी को देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है।
भीख माँगे और आँख दिखावे= (दयनीय होकर भी अकड़ दिखाना)
प्रयोग- रमाकांत की हालत बहुत ही खस्ता है पर दूसरों के सामने अकड़ दिखाने से बाज नहीं आता। ऐसे ही लोगों के लिए यह कहा गया है कि 'भीख माँगे और आँख दिखावे।
भूखे भजन न होय गोपाला= (भूखा व्यक्ति धर्म-कर्म भी नहीं करता)
प्रयोग- जिस आदमी ने कल से कुछ न खाया हो उससे तुम कह रहे हो कि पहले मंदिर जाकर दर्शन कर आए। भैया पहले उसे कुछ खिलाओ-पिलाओ क्योंकि भूखे भजन न होय गोपाला।
भूख में किवाड़ पापड़= (भूख के समय सब कुछ अच्छा लगता है)
प्रयोग- वह भिखारी बहुत भूखा था। मेरे पड़ोसी ने उसे तीन दिन की बासी रोटी और सब्जी दी तो उसने बड़े स्वाद से खाई। सच है भूख में किवाड़ भी पापड़ हो जाते हैं।
भीगी बिल्ली बताना= (बहाना बनाना)
प्रयोग- यह कहावत ऐसे आलसी नौकर की कथा पर आधारित है, जो अपने मालिक की बात को किसी न किसी बहाने टाल दिया करता था। एक बार रात के समय मालिक ने कहा, ''देखो बाहर पानी तो नहीं बरस रहा है ? नौकर ने कहा, ''हाँ बरस रहा है।'' मालिक ने पूछा ''तुम्हें कैसे मालूम हुआ?'' नौकर ने कहा, ''अभी एक बिल्ली मेरे पास से निकली थी, उसका शरीर मैंने टटोला, तो वह भीगी थी।''
भूल गए राग रंग, भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड़ी= (जब कोई स्वतन्त्र प्रकृति का व्यक्ति बुरी तरह से गृहस्थी के चक्कर में पड़ जाता है।)
प्रयोग- राजू शादी के पश्चात नेतागिरी भूल गया। सच है भूल गए राग रंग, भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड़ी।
भइ गति साँप-छछूँदर केरी= (दुविधा में पड़ना)
( म )
मुँह में राम बगल में छुरी= (बाहर से मित्रता पर भीतर से बैर)
प्रयोग- सुरभि और प्रतिभा दोनों आपस में अच्छी सहेलियाँ बनती हैं, परंतु मौका पाते ही एक-दूसरे की बुराई करना शुरू कर देती हैं। यह तो वही बात हुई- मुँह में राम बगल में छुरी।
मान न मान मैं तेरा मेहामन= (जबरदस्ती किसी के गले पड़ना)
प्रयोग- जब एक अजनबी जबरदस्ती रामू से आत्मीयता दिखाने लगा तो रामू बोला- 'मान न मान मैं तेरा मेहामन'।
मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी= (जब दो व्यक्ति आपस में मिल जाएँ जो किसी अन्य के दखल देने की जरूरत नहीं होती)
प्रयोग- यदि राजू रामू से संतुष्ट रहेगा तो कोई कुछ नहीं कहेगा। कहावत है न- 'मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी'?
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत= (भारी से भारी विपत्ति पड़ने पर भी साहस नहीं छोड़ना चाहिए)
प्रयोग- रमा बहन! 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत'। तुम अपने मन को दृढ़ करो।
मन चंगा तो कठौती में गंगा= (यदि मन शुद्ध हो तो तीर्थाटन का फल घर में ही मिल सकता है।)
प्रयोग- रामू काका कभी गंगा नहाने नहीं जाते, वह हमेशा सबकी मदद करते रहते हैं। ठीक ही कहते है- 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'।
मरता क्या न करता= (विपत्ति में फंसा हुआ मनुष्य अनुचित काम करने को भी तैयार हो जाता है।)
प्रयोग- जब मैनेजर ने रामू की छुट्टी स्वीकार नहीं की तो उसने उसे मारने की धमकी दे दी। भाई, 'मरता क्या न करता'।
माया गंठ और विद्या कंठ= (गाँठ का रुपया और कंठस्थ विद्या ही काम आती है।)
प्रयोग- रामू की गाँठ का रुपया गया तो क्या हुआ, वह अपने ज्ञान से बहुत कमा लेगा। कहावत भी है- 'माया गंठ और विद्या कंठ'।
मारे और रोने न दे= (बलवान आदमी के आगे निर्बल का वश नहीं चलता)
प्रयोग- शेरसिंह सबको डाँटता रहता है और किसी को बोलने भी नहीं देता। ये तो वही बात हुई- 'मारे और रोने न दे'।
मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त= (जिसका काम हो, वह सुस्त हो और दूसरे उसका ख्याल रखें)
प्रयोग- रामू तो अपने काम की परवाह ही नहीं करता, उसके काम का तो दूसरे ही ख्याल रखते हैं- यहाँ तो 'मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त' वाली बात है।
मुफ़लिसी में आटा गीला= (दुःख पर और दुःख आना)
प्रयोग- एक तो रोजगार छूटा, दूसरे बच्चे भी बीमार पड़ गए- 'मुफ़लिसी में आटा गीला' हो गया।
मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक= (जहाँ तक किसी मनुष्य की पहुँच होती है, वह वहीं तक जाता है।)
प्रयोग- घर में अगर कोई लड़ाई-झगड़ा हो जाता है तो रामू सीधा दादाजी के पास जाता है। सब यही कहते हैं कि रामू की 'मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक' है।
मुर्दे पर जैसे सौ मन मिट्टी वैसे सवा सौ मन मिट्टी= (बड़ी हानि हो तो उसी के साथ थोड़ी और हानि भी सह ली जाती है।)
प्रयोग- अपना तो अब वही हाल था- 'मुर्दे पर जैसे सौ मन मिट्टी वैसे सवा सौ मन मिट्टी'।
मेरी ही बिल्ली और मुझी से म्याऊँ= (जिसके आश्रय में रहे, उसी को आँख दिखाना)
प्रयोग- मेरा नौकर रामू मुझको ही आँख दिखाने लगा- 'मेरी ही बिल्ली और मुझी से म्याऊँ'।
मेरे मन कछु और है, दाता के कछु और= (किसी की आकांक्षाएँ सदैव पूरी नहीं होती)
प्रयोग- मैंने सोचा था कि बी.एड. करके अध्यापक बनूँगा, लेकिन बन गया संपादक; यह कहावत सही है- 'मेरे मन कछु और है, दाता के कछु और'।
मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते= (माँगी हुई वस्तु में कमी नहीं देखना चाहिए)
प्रयोग- सुशील अपने दोस्त की मोटरसाइकिल माँग कर लाया तो लगा मोटरसाइकिल में नुस्ख निकालने। मैंने कहा कि भैया मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते। अगर मोटरसाइकिल बेकार है तो जाकर वापस कर दो और ले आओ खरीदकर नई।
महँगा रोए एक बार, सस्ता रोए बार-बार= (महँगी वस्तु केवल खरीदते समय कष्ट देती है पर सस्ती चीज हमेशा कष्ट देती है)
प्रयोग- शर्मा जी न जाने कहाँ से कोई लोकल कूलर खरीद लाए हैं। जिस दिन से खरीदा है रोज उसमें कुछ-न-कुछ हो जाता है। मैंने उन्हें समझाया था कि अच्छी कंपनी का खरीदना पर नहीं माने। अब दुखी होते फिर रहे हैं। सच ही कहा गया है कि महँगा रोए एक बार, सस्ता रोए बार-बार।
माँ के पेट से कोई सीख कर नहीं आता= (काम, सीखने से ही आता है)
प्रयोग- तुम इस बच्चे को इतना डाँटते क्यों हो? यदि उसे काम नहीं आता तो सिखाओ। तुम्हें भी तो किसी ने सिखाया ही होगा। माँ के पेट से कोई सीख कर नहीं आता।
माया को माया मिले, कर-कर लंबे हाथ= (धन ही धन को खींचता है)
प्रयोग- सेठ हंसराज करोड़पति आसामी हैं अपने पैसे के बल पर वे एक ओर जमीनें खरीदते हैं तो दूसरी ओर फ्लैट बना बनाकर बेचते हैं। सच ही कहा गया है कि 'माया को माया मिले, कर-कर लंबे हाथ'।
माने तो देवता, नहीं तो पत्थर= (विश्वास में सब कुछ होता है)
प्रयोग- मेरा तो विश्वास है कि प्राणायाम समस्त रोगों का निदान है अतः मैं रोज प्राणायाम करता हूँ पर मेरा भाई मेरी धारणा के विपरीत है। ठीक है माने तो देवता नहीं तो पत्थर वाली उक्ति यहाँ साबित होती है।
मार के डर से भूत भागते हैं= (मार से सब डरते हैं)
प्रयोग- पुलिस ने जब उस भिखारी पर डंडे बरसाए तो तुरंत कबूल गया कि चोरी उसी ने की थी। भैया मार से तो भूत भागते हैं, अगर न कबूलता तो पुलिस उसे छोड़नेवाली नहीं थी।
मियाँ की जूती मियाँ का सिर= (जब अपनी ही चीज अपना नुकसान करे)
प्रयोग- सुरेश ने एक घड़ी खरीदी तो उसे लगा कि दुकानदार ने उसे ठग लिया है। सुरेश ने जब यह घटना मुझे बताई तो मैंने उस घड़ी का डायल बदल दिया और सुंदर-सी पैकिंग में ले जाकर उसी दुकानदार को दुगुनी कीमत में बेच दिया। इसे कहते हैं- मियाँ की जूती मियाँ का सिर।
मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है= (मनुष्य को अपने नाती-पोते अपने बेटे-बेटियों से अधिक प्रिय होते हैं)
प्रयोग- सेठ अमरनाथ ने अपने बेटे के पालन-पोषण पर उतना खर्च नहीं किया जितना अपने पोते पर करता है। सच ही कहा गया है कि मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है।
मोको और न तोको ठौर= (हम दोनों की एक-दूसरे के बिना गति नहीं)
प्रयोग- अरे बंधु, हमलोगों में चाहे जितना झगड़ा हो जाए पर हम लोग कभी एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते। इसलिए अब कभी झगड़ा नहीं करेंगे क्योंकि मोको और न तोको ठौर।
मेढक को भी जुकाम= (ओछे का इतराना)
मार-मार कर हकीम बनाना= (जबरदस्ती आगे बढ़ाना)
माले मुफ्त दिले बेरहम= (मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना)
मोहरों की लूट, कोयले पर छाप= (मूल्यवान वस्तुओं को छोड़कर तुच्छ वस्तुओं पर ध्यान देना)
( य )
यह मुँह और मसूर की दाल= (जब कोई अपनी हैसियत से अधिक पाने की इच्छा करता है तब ऐसा कहते हैं।)
प्रयोग- सोहन कहने लगा कि मैं तो सिल्क का सूट बनवाऊँगा। मैंने कहा- जरा आईना देख आओ- 'यह मुँह और मसूर की दाल'।
यहाँ परिन्दा भी पर नहीं मार सकता= (जहाँ कोई आ-जा न सके)
प्रयोग- मेरे ऑफिस में इतना सख्त पहरा है कि यहाँ कोई परिन्दा भी पर नहीं मार सकता।
यथा राजा, तथा प्रजाा= (जैसा स्वामी वैसा ही सेवक)
प्रयोग- जिस गाँव का मुखिया ही भ्रष्ट और पाखंडी हो उस गाँव के लोग भले कैसे हो सकते हैं। वे भी वही सब करते हैं जो उनका मुखिया करता है। किसी ने ठीक ही तो कहा है कि यथा राजा, तथा प्रजा।
( र )
रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी= (बुरी हालत में पड़कर भी अभियान न त्यागना)
प्रयोग- लड़की घर से भाग गई, बेटा स्कूल से निकाल दिया गया, लेकिन मिसेज बक्शी के तेवर अभी भी नहीं बदले। यह तो वही बात हुई- रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी।
रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी= (कारण का नाश कर देना)
प्रयोग- गाँव को डाकुओं के चंगुल से मुक्त कराने के लिए गाँव वालों ने मिल कर उन डाकुओं को मारने की योजना बनाई- 'रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी'।
रात छोटी कहानी लम्बी= (समय थोड़ा है और काम बहुत है।)
प्रयोग- जीवन छोटा है और काम बहुत हैं। किसी ने ठीक ही कहा है- 'रात छोटी कहानी लम्बी' है।
राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढी= (दो मनुष्यों के एक ही तरह का होना)
प्रयोग- राम और श्याम की अच्छी जोड़ी मिली है। दोनों महामूर्ख हैं। 'राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढी'।
राम राम जपना, पराया माल अपना= (ढोंगी मनुष्य; दूसरों का माल हड़पने वाले)
प्रयोग- वह साधु नहीं कपटी और छली है। इसका तो एक ही काम है- 'राम राम जपना, पराया माल अपना'।
रात गई, बात गई= (अवसर निकल जाना)
प्रयोग- नौकरी के लिए आवेदन-पत्र भेजने की तिथि तो निकल गई अब तुम फॉर्म क्यों खरीदना चाहते हो? अब तो रात गई, बात गई।
रोज कुआँ खोदना, रोज पानी पीना= (नित्य कमाना और नित्य खाना)
प्रयोग- हमलोग तो रोज कुआँ खोदते है, रोज पानी पीते हैं इसलिए ज्यादा हायतोबा नहीं करते। जो मिल जाता है उसी में संतुष्ट रहते हैं।
रोजा बख्शवाने गए थे, नमाज गले पड़ गई= (छोटे काम से जान छुड़ाने के बदले बड़ा काम गले पड़ जाना)
प्रयोग- मल्लिका प्रिंसिपल के पास आधे दिन की छुट्टी की अनुमति माँगने गई थी पर इससे पहले वह अपनी बात कहती प्रिंसिपल ने उसे शाम के फंक्शन तक ठहरने के आदेश दे दिए। मल्लिका प्रिंसिपल से कुछ न कह पाई। इसे कहते हैं गए तो थे रोजा बख्शवाने पर नमाज गले पड़ गई।
रोटी खाइए शक़्कर से, दुनिया ठगिए मक्कर से= (आजकल फ़रेबी लोग ही मौज उड़ाते हैं)
प्रयोग- सुरेंद्र दिन रात परिश्रम करता है तो भी उसका गुजारा नहीं चल पाता और दूसरी ओर उसके छोटे भाई को देखो, गलत-सलत धंधे करता है करता है। आजकल ऐसे ही लोगों का जमाना है और ऐसे ही लोगों के लिए यह कहावत प्रचलित है कि 'रोटी खाइए शक़्कर से और दुनिया ठगिए मक्कर से'।
रोग का घर खाँसी, झगड़े घर हाँसी= (अधिक मजाक बुरा)
( ल )
लकड़ी के बल बंदरी नाचे= (शरारती से शरारती या दुष्ट लोग भी डंडे के भय से वश में आ जाते हैं।)
प्रयोग- संजू बहुत शरारती है, पर जब अध्यापक के हाथ में बेंत होता है तो वह जैसा कहते हैं संजू वैसे करने लगता है। ठीक ही कहते हैं- लकड़ी के बल बंदरी नाचे।
लकीर के फकीर= (पुरानी परम्पराओं और रीति-रिवाजों का पालन करने वाला)
प्रयोग- कबीरदास 'लकीर के फकीर' नहीं थे तभी तो उन्होंने आध्यात्मिक उन्नति के नए मार्ग का अन्वेषण किया था।
लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का= (काम बन जाए तो अच्छा है, नहीं बने तो कोई बात नहीं)
प्रयोग- देखा-देखी रहीम ने भी आज लॉटरी खरीद ही ली। 'लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का'।
लाख जाए, पर साख न जाए= (धन व्यय हो जाए तो कोई बात नहीं, पर सम्मान बना रहना चाहिए)
प्रयोग- विवेक बात का पक्का है, उसका एक ही सिद्धांत है- 'लाख जाए, पर साख न जाए'।
लाठी टूटे न साँप मरे= (किसी की हानि हुए बिना स्वार्थ सिद्ध हो जाना)
प्रयोग- रामू काका किसी को हानि पहुँचाए बगैर काम करना चाहते हैं- 'लाठी टूटे न साँप मरे'।
लातों के भूत बातों से नहीं मानते= (दुष्ट प्रकृति के लोग समझाने से नहीं मानते)
प्रयोग- मैंने रामू के साथ भलमनसी का बर्ताव किया, पर वह नहीं माना। ठीक ही है- 'लातों के भूत बातों से नहीं मानते'।
लाल गुदड़ी में नहीं छिपता= (मेधावी लोग दीन-हीन अवस्था में भी प्रकट हो जाते हैं।)
प्रयोग- रामू बड़ा ही दीन बालक था। किन्तु उसके अध्यापक ने उसे शीघ्र पहचान लिया कि यह बड़ा होनहार बालक है। ठीक ही है- 'लाल गुदड़ी में नहीं छिपता'।
लालच बुरी बला= (लालच से बहुत हानि होती है इसलिए हमें कभी लालच नहीं करना चाहिए)
प्रयोग- सब जानते हैं कि लालच बुरी बला है, फिर भी लालच में पड़ जाते हैं।
लेना एक न देना दो= (किसी से कुछ मतलब न रखना)
प्रयोग- तरुण तो अपने काम से काम रखता है- 'लेना एक न देना दो'।
लोभी गुरु और लालची चेला, दोऊ नरक में ठेलम ठेला= (लालच बहुत बुरी चीज है)
प्रयोग- केशव और मनोज दोनों लालची हैं, इसी से दोनों में लड़ाई-झगड़ा बना रहता है। कहावत प्रसिद्ध है- 'लोभी गुरु और लालची चेला, दोऊ नरक में ठेलम ठेला'।
लोहे को लोहा ही काटता है= (दुष्ट का नाश दुष्ट ही करता है।)
प्रयोग- मैंने सोचा कि 'लोहे को लोहा ही काटता है' इसलिए कालू बदमाश को ठीक करने के लिए मैंने चुन्नू बदमाश की सेवाएँ प्राप्त कीं।
लश्कर में ऊँट बदनाम= (दोष किसी का, बदनामी किसी की)
लूट में चरखा नफा= (मुफ्त में जो हाथ लगे, वही अच्छा)
लेना-देना साढ़े बाईस= (सिर्फ मोल-तोल करना)
( व )
वक्त पड़े बांका, तो गधे को कहै काका= (विपत्ति पड़ने पर हमें कभी-कभी छोटे लोगों की भी खुशामद करनी पड़ती है।)
प्रयोग- मैं उस जैसे स्वार्थी मनुष्य की कभी खुशामद न करता परन्तु मैं विवश था। कहावत है- 'वक्त पड़े बांका, तो गधे को कहै काका'।
वह दिन गए जब खलील खां फाख्ता उड़ाते थे= (आनन्द अथवा उत्कर्ष का समय समाप्त होना)
प्रयोग- जब मालिक नहीं थे तो रमेश ने खूब मौज उड़ाई। अब जब मालिक आ गए हैं तो उनकी सारी मौज खत्म हो गई। तब रामू बोला कि वह दिन गए जब खलील खां फाख्ता उड़ाते थे।
वहम की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं है= (बुद्धिमान से बुद्धिमान मनुष्य भी शक्की आदमी को ठीक नहीं कर सकता)
प्रयोग- रामू को प्रेत तंग करता है। मैंने हर प्रकार का प्रयास किया कि उसके इस संदेह का निराकरण कर दूं। पर मुझे सफलता न मिली। सच ही है- 'वहम की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं है'।
वही ढाक के तीन पात= (जब किसी की अवस्था ज्यों की त्यों बनी रहे, उसमें कोई सुधार न हो)
प्रयोग- मुझे जीवन में बड़ी-बड़ी आशायें थीं। परन्तु तीस वर्ष नौकरी करने के बाद आज भी मैं गरीब ही हूँ जैसा पहले था- 'वही ढाक के तीन पात'।
विनाशकाले विपरीत बुद्धि= (विपत्ति पड़ने पर बुद्धि का काम न करना)
प्रयोग- विनाश के समय रावण की बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी। ठीक ही कहा है- 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि'।
विपत्ति कभी अकेली नहीं आती= (मनुष्य के ऊपर विपत्तियाँ एक साथ आती हैं।)
प्रयोग- पिता की मृत्यु, छोटी बहन की बीमारी और स्वयं अपने दुर्भाग्य ने रामू को बुरी तरह झकझोर दिया था। कहते भी हैं- 'विपत्ति कभी अकेली नहीं आती'।
विष की कीड़ा विष ही में सुख मानता है= (बुरे को बुराई और पापी को पाप ही अच्छा लगता है।)
प्रयोग- कालू से शराब छोड़ने के लिए सबने कहा, पर वह नहीं मानता। सही बात है- ' विष की कीड़ा विष ही में सुख मानता है'।
( श )
शठे शाठ्यमाचरेत्= (दुष्टों के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए)
प्रयोग- राजू ने एक गुंडे के साथ अच्छा व्यवहार किया तो वह उसे कमजोर समझकर झगड़ने लगा। किसी ने ठीक ही कहा है- 'शठे शाठ्यमाचरेत्'।
शर्म की बहू नित भूखी मरे= (जो खाने-पीने में शर्माता है, वह भूखा मरता है।)
प्रयोग- गौरव ने कहा कि खाने-पीने में काहे की शर्म। भूखे थोड़े ही मरना है। आपने सुना नहीं- 'शर्म की बहू नित भूखी मरे'।
शक़्कर खोरे को शक़्कर और मूँजी को टक्कर= (जो जिस योग्य होता है, उसे वैसा ही मिल जाता है)
प्रयोग- शर्मा जी का बेटा यहाँ रहकर गलत सोहबत में पड़कर शराब पीने लगा था। शर्मा जी ने उसे मुंबई होस्टल में भेज दिया जिससे कि उसकी बुरी संगत छूट जाए पर हुआ यह कि वहाँ जाकर भी उसे वैसे ही दोस्त मिल गए। इसे कहते हैं शक़्कर खोरे को शक़्कर और मूँजी को टक्करहर जगह मिल जाती है।
शुभस्य शीघ्रम्= (शुभ काम को जल्द कर लेना चाहिए)
प्रयोग- शर्माजी ने कहा कि नए मकान में जाने में अब देरी नहीं करनी चाहिए। कहते भी हैं- 'शुभस्य शीघ्रम्'।
शेर का बच्चा शेर ही होता है= (वीर व्यक्ति का पुत्र वीर ही होता है।)
प्रयोग- पं. मोतीलाल नेहरू जैसे बुद्धिमान और देशभक्त के पुत्र पं. जवाहरलाल नेहरू हुए। सच ही कहते हैं-'शेर का बच्चा शेर ही होता है'।
शेर भूखा रहता है पर घास नहीं खाता= (सज्जन लोग कष्ट पड़ने पर भी नीच कर्म नहीं करते)
प्रयोग- श्रीरामचंद्र जी पर कितने कष्ट पड़े, पर उन्होंने अपनी मर्यादा नहीं छोड़ी थी। ये कहावत ठीक ही है- 'शेर भूखा रहता है पर घास नहीं खाता'।
( स )
साँच को आँच नहीं= (जो मनुष्य सच्चा होता है, उसे डर नहीं होता)
प्रयोग- मुकेश, जब तुमने गलती की ही नहीं है, तो फिर डर क्यों रहे हो ? चलो सब कुछ सच-सच बता दो, क्योंकि साँच को आँच नहीं होती।
साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे= (आसानी से काम हो जाना)
प्रयोग- ठेकेदार और जमींदार के झगड़े में पंच को ऐसा फैसला सुनाना चाहिए कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता= (सीधेपन से काम नहीं चलता)
प्रयोग- हमने राजी-वाजी से काम निकालना चाहा, पर ठीक ही कहते हैं- 'सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता'।
सौ सुनार की, एक लुहार की= (कमजोर आदमी की सौ चोट और बलवान व्यक्ति की एक चोट बराबर होती है।)
प्रयोग- सौरभ बड़ी देर से कौशल की पीठ पर थप्पड़ मार रहा था। अंत में किशन ने उसको जोर से एक घूँसा मार दिया तो सौरभ कराहने लगा। ठीक ही है- 'सौ सुनार की, एक लुहार की'।
सौ-सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली= (जीवनभर कुकर्म करके अंत में धर्म-कर्म करना)
प्रयोग- मनोज ने सारा जीवन तो दुष्कर्म में व्यतीत किया। अब वह बूढ़ा हुआ तो तीर्थ-यात्रा करने निकला। यह देखकर उसके पड़ोसी ने कहा- 'सौ-सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली'।
संतोषी सदा सुखी= (संतोष रखने वाला व्यक्ति सदा सुखी रहता है।)
प्रयोग- रमेश ज्यादा हाय-तौबा नहीं करता इसलिए हमेशा सुखी रहता है। ठीक ही कहते हैं- 'संतोषी सदा सुखी'।
सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुँह काला= (सच्चे आदमी को सदा यश और झूठे को अपयश मिलता है।)
प्रयोग- आदमी को कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि सच्चे का बोलबाला और झूठे का मुँह काला होता है।
सत्तर (या नौ सौ) चूहे खाकर बिल्ली हज को चली= (जब कोई पूरे जीवन पाप करके पीछे पुण्य करने लगता है।)
प्रयोग- पूरी जिंदगी वह चोरी करता रहा और अब धर्मात्मा बन रहा है- 'सत्तर (या नौ सौ) चूहे खाकर बिल्ली हज को चली'।
सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं= (एक पिता के पुत्र या मित्र आदि की राय एक-सी होना)
प्रयोग- मजदूरों को मालिकों के मैनेजरों से यह आशा नहीं करनी चाहिए कि वे मजदूरों का कुछ भला करेंगे, क्योंकि मालिक और उनके मैनेजर सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।
सबसे भली चुप= (चुप रहना अच्छा होता है।)
प्रयोग- एक आदमी रामू को बेबात गालियाँ बक रहा था, तो रामू ने सोचा कि इस पागल आदमी से उलझना बेकार है- 'सबसे भली चुप'।
सबसे भले मूसलचंद, करें न खेती भरें न दंड= (मुफ्तखोर लोग सबसे मजे में रहते हैं, क्योंकि उन्हें किसी बात की चिन्ता नहीं रहती)
प्रयोग- कर्मचंद तो पूरे मुफ्तखोर हैं- 'सबसे भले मूसलचंद, करें न खेती भरें न दंड'।
सब्र का फल मीठा होता है= (सब्र करने से बहुत लाभ होता है।)
प्रयोग- अध्यापक ने छात्र को समझाया कि सब्र का फल मीठा होता है। वह बस मन लगाकर पढ़ाई करे।
सभी जो चमकता है, सोना नहीं होता= (जो ऊपर से आकर्षक और अच्छा मालूम होता है, वह हमेशा अच्छा नहीं होता)
प्रयोग- सच ही कहते हैं- 'सभी जो चमकता है, सोना नहीं होता'। मैं जिस व्यक्ति को विनम्रता की मूर्ति समझा था, वह इतना दुष्ट होगा इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
सयाना कौआ गलीज खाता है= (चालाक लोग बुरी तरह से धोखा खाते हैं।)
प्रयोग- राजू बहुत चालाक था इसलिए ऐसे लोगों के चक्कर में फंस गया कि अब उसे पैसे भी ज्यादा देने पड़े और गाड़ी भी अच्छी नहीं मिली, इसलिए कहते हैं- 'सयाना कौआ गलीज खाता है'।
सस्ता रोवे बार-बार, महँगा रोवे एक बार= (बार-बार सस्ती चीज की मरम्मत करानी पड़ती है, परन्तु महंगी चीज खरीदने पर ऐसा नहीं करना पड़ता)
प्रयोग- सोहन सस्ता टेबल-फैन खरीद लाया तो वह दो दिन में ही खराब हो गया। अब वह पछता रहा है, महंगा लेता तो ऐसा नहीं होता। ठीक ही है- 'सस्ता रोवे बार-बार, महँगा रोवे एक बार'।
साँप का बच्चा सपोलिया= (शत्रु का पुत्र शत्रु ही होता है।)
प्रयोग- मोहन की कालू से शत्रुता थी। उसके मरने के बाद कालू का बेटा भी शत्रुता करने लगा। ठीक ही है- 'साँप का बच्चा सपोलिया'।
साँप निकल गया, लकीर पीटने से क्या लाभ= (यदि आदमी अवसर पर चूक जाए तो बाद में उसे पछताना पड़ता है।)
प्रयोग- जब डाकू बैंक लूटकर ले गए तब पुलिस पहुँचकर, वहाँ पूछताछ करने लगी तो एक आदमी ने कहा- 'साँप निकल गया है, अब लकीर पीटने से क्या लाभ है'।
सात पाँच की लाकड़ी, एक जने का बोझ= (एकता में बहुत शक्ति होती है।)
प्रयोग- केशव के पाँच भाई थे, जब वे साथ रहते तो एक-दूसरे का दुःख बाँट लेते थे, लेकिन वे जब से अलग हुए हैं उनका जीना दूभर हो गया है। ठीक ही कहते हैं- 'सात पाँच की लाकड़ी, एक जने का बोझ'।
सावन के अंधे को हरा-ही-हरा सूझता है= (अमीर या सुखी व्यक्ति समझता है कि सब लोग आनन्द में हैं।)
प्रयोग- लॉटरी खुलने से संजू अमीर हो गया तो वह अपने गरीब दोस्त से अच्छे कपड़े पहनने की बात करने लगा। सच ही कहा है- 'सावन के अंधे को हरा-ही-हरा सूझता है'।
सावन सूखा न भादों हरा= (सदा एक ही दशा में रहने वाला)
प्रयोग- सक्सेना जी इतने अमीर हैं, फिर भी मोटे नहीं होते, सदा एक से रहते हैं- 'सावन सूखा न भादों हरे'।
सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े= (किसी कार्य का श्रीगणेश करते ही उसमें विघ्न पड़ना)
प्रयोग- रामू ने जैसे ही लकड़ी का बूथ बनाकर पान की दुकान खोली वैसे ही नगर निगम वालों ने सड़क के किनारे बूथों को हटाने का आदेश दे दिया। ये तो वही बात हुई- 'सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ गए'।
सुनिए सबकी, कीजिए मन की= (बातें तो सबकी सुन लेनी चाहिए, पर जो अच्छा लगे, उसी के अनुसार काम करना चाहिए।)
प्रयोग- रामू सुनता तो सबकी है, पर करता अपने मन की है। ठीक बात है- 'सुनिए सबकी, कीजिए मन की'।
सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते= (यदि कोई व्यक्ति शुरू में गलती करे और बाद में सुधर जाए तो उसकी गलती क्षमा योग्य होती है।)
प्रयोग- राजू ने शिक्षक के समझाने पर सिगरेट पीनी छोड़ दी तो सब यही कहने लगे- 'सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते'।
सूरा सो पूरा= (बहादुर या साहसी लोग सब कुछ कर सकते हैं।)
प्रयोग- रामू के पिता ने कहा कि यदि वह साहस न छोड़ेगा तो कठिन से कठिन काम कर डालेगा। कहावत भी है- 'सूरा सो पूरा'।
सेर को सवा सेर= (बहुत बुद्धिमान या बलवान को उससे भी बुद्धिमान या बलवान आदमी मिल जाता है।)
प्रयोग- रामू काका जोर से हँस पड़े और मुझसे बोले- कहो बेटा, मिल गया न 'सेर को सवा सेर'।
सैंया भए कोतवाल अब डर काहे का= (जब किसी का कोई मित्र या संबंधी उच्च पद पर हो तो उससे लाभ मिलने की संभावना होती है।)
प्रयोग- जब से कालू के पिता विधायक का चुनाव जीते हैं तब से वह सब पर अकड़ने लगा है। ठीक बात है- 'सैंया भए कोतवाल अब डर काहे का'।
सोने पे सुहागा= (किसी वस्तु या व्यक्ति का और बेहतर होना)
प्रयोग- इधर राजेश ने इंटर पास की और उधर वह मेडीकल प्रवेश परीक्षा में पास हो गया। ये तो सोने पे सुहागा है।
सोवेगा तो खोवेगा, जागेगा सो पावेगा= (जो मनुष्य आलसी होता है, उसको कुछ नहीं मिलता, और जो परिश्रमी होता है, उसे सब कुछ मिलता है।)
प्रयोग- यदि पंकज परिश्रम से अध्ययन करता, तो परीक्षा में अवश्य उत्तीर्ण होता, किन्तु वह तो हमेशा खेलता या सोता रहता था। कहते भी हैं- 'सोवेगा तो खोवेगा, जागेगा सो पावेगा'।
सौ कपूतों से एक सपूत भला= (अनेक कुपुत्रों से एक सुपुत्र अच्छा होता है।)
प्रयोग- रमेश के चार पुत्र हैं। वे सब मूर्ख और दुष्ट हैं। इससे तो अच्छा होता एक ही पुत्र होता, परन्तु वह सपूत होता। कहते भी हैं- 'सौ कपूतों से एक सपूत भला'।
स्वर्ग से गिरा तो खजूर में अटका= (एक विपत्ति से छूटकर दूसरी विपत्ति में फंसना)
प्रयोग- जेबकतरा भीड़ के चंगुल से छूटा तो पुलिस के हाथों पड़ गया, ये तो वही बात हुई कि स्वर्ग से गिरा तो खजूर में अटका।
समय पाय तरवर फले, केतो सींचो नीर= (समय आने पर ही सब काम पूरे होते हैं, उससे पहले नहीं)
प्रयोग- तुम अपनी बहन के विवाह के लिए इतना परेशान क्यों हो। देखो तुम्हारे चाहने से तो कुछ होगा नहीं। समय आएगा तो सब ठीक हो जाएगा और अच्छा रिश्ता मिलेगा। तुम मेरी यह बात ध्यान रखो कि समय पाय तरवर फले, केतो सींचो नीर।
सब दिन रहत न एक समाना= (हमेशा एक-सी स्थिति नहीं रहती)
प्रयोग- एक समय था जब मंगतराम के यहाँ रौनक रहती थी। पचास-पचास लोगों का रोज खाना बनता था। लेकिन जबसे व्यापार में घाटा हुआ कोई पूछने तक नहीं आता। किसी ने ठीक ही कहा है कि सब दिन रहत न एक समाना।
सहज पके सो मीठा होय= (जो काम धीरे-धीरे होता है वह संतोषप्रद और पक्का होता है)
प्रयोग- तुम हर काम में जल्दीबाजी क्यों करती हो? जल्दी का काम तो शैतान का होता है और काम बिगड़ जाता है। यह बात ध्यान रखो 'सहज पके सो मीठा होय'।
सब धन बाईस पसेरी= (अच्छे-बुरे सबको एक समझना)
सारी रामायण सुन गये, सीता किसकी जोय (जोरू)= (सारी बात सुन जाने पर साधारण सी बात का भी ज्ञान न होना)
( ह )
होनहार बिरवान के होत चीकने पात= (होनहार के लक्षण पहले से ही दिखायी पड़ने लगते है।)
प्रयोग- वह लड़का जैसा सुन्दर है, वैसा ही सुशील, और जैसा बुद्धिमान है, वैसा ही चंचल। अभी बारह वर्ष भी पूरे नहीं हुए, पर भाषा और गणित में उसकी अच्छी पैठ है। अभी देखने पर स्पष्ट मालूम होता है कि समय पर वह सुप्रसिद्ध विद्वान होगा। कहावत भी है, 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात'।
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और= (कहना कुछ और करना कुछ और)
प्रयोग- आजकल के नेताओं का विश्वास नहीं। इनके दाँत तो दिखाने के और होते हैं और खाने के और होते हैं।
हँसी में खंसी= (हँसी-दिल्लगी की बात करते-करते लड़ाई-झगड़े की नौबत आना)
प्रयोग- रामू ने श्याम को खेल-खेल में पत्थर मारकर उसका सिर फोड़ दिया तो हँसी में खंसी हो गई।
हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है= (अपने स्वार्थ के लिए सबको सिर झुकाना पड़ता है।)
प्रयोग- शेरसिंह इतने बड़े काश्तकार हैं। परंतु काम अटकने पर छोटे से क्लर्क के आगे गिड़गिड़ा रहे हैं। सच ही कहा है- 'हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है'।
हड़ लगे न फिटकरी, रंग चोखा ही आवे= (बिना खर्च किए काम बन जाना)
प्रयोग- रितेश ने कंप्यूटर खरीदा और कंप्यूटर सिखाने वाला उसको दोस्त मिल गया। बस फिर क्या था उसने मुफ़्त में कंप्यूटर सीख लिया। ये तो वही बात हो गई- 'हड़ लगे न फिटकरी, रंग चोखा ही आवे'।
हनते को हनिए, दोष-पाप नहिं गनिए= (यदि कोई व्यक्ति ख़ाहमखाँ आपको या दूसरे को मारता है, तो उसको मारना पाप नहीं है।)
प्रयोग- श्रीराम ने दुष्ट बालि को पेड़ के पीछे छिपकर मारा था तो कोई पाप नहीं किया था। कहते भी हैं- 'हनते को हनिए, दोष-पाप नहिं गनिए'।
हमने क्या घास खोदी है?= (जो मनुष्य स्वयं को बड़ा बुद्धिमान समझता है, वह दूसरों से ऐसा कहता है।)
प्रयोग- प्रधानाचार्य ने अध्यापक से कहा कि तुम बड़े काबिल बनते हो और मेरी एक भी बात नहीं सुनते। 'मैंने क्या जीवनभर घास खोदी हैं?'
हर कैसे, जैसे को तैसे= (जो जैसा कर्म करता है, उसको वैसा ही फल मिलता है।)
प्रयोग- अध्यापक पढ़ाने वाले बच्चों को पढ़ाते हैं और शैतान बच्चों को प्रताड़ित करते हैं- 'हर कैसे, जैसे को तैसे'।
हराम की कमाई, हराम में गँवाई= (चोरी, डाका आदि की कमाई का फजूल खर्च हो जाना)
प्रयोग- करण की बेईमानी की सारी कमाई उसके पिता की बीमारी में लग गई। कहावत भी है- 'हराम की कमाई, हराम में गँवाई'।
हलक से निकली, खलक में पड़ी= (मुँह से निकली बात सारे संसार में फैल जाती है।)
प्रयोग- रामू ने राजू से कहा- कृपया यह बात किसी से मत कहना, नहीं तो सब लोग इसे जान जाएंगे। याद रखो- 'हलक से निकली, खलक में पड़ी'।
हांडी का एक ही चावल देखते हैं= (किसी परिवार या देश के एक या दो व्यक्ति देखने से ही पता चल जाता है कि शेष लोग कैसे होंगे।)
प्रयोग- शिक्षा निदेशक ने प्रिंसीपल से कहा- आपके विद्यालय में कुछ छात्रों से बातचीत करके मैं जान गया हूँ कि आपके विद्यालय में कैसे विद्यार्थी पढ़ते हैं- 'हांडी का एक ही चावल देखते हैं'।
हाथ कंगन को आरसी क्या= (जो वस्तु सामने हो उसे सिद्ध करने के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती)
प्रयोग- इंटरव्यू देने गए रामू ने मैनेजर से कहा कि हाथ कंगन को आरसी क्या, टाईपिंग करवा के देख लीजिए कि मेरी स्पीड कितनी है।
हाथ से मारे, भात से न मारे= (किसी को चाहे हाथ से मार लो, परन्तु किसी की रोजी-रोटी नहीं मारनी चाहिए)
प्रयोग- मित्र, आपने बहुत बुरा किया जो अपने चपरासी को बर्खास्त कर दिया, कुछ दंड दे देते, नौकरी न छुड़ाते तो अच्छा रहता। कहा भी है- 'हाथ से मारे, भात से न मारे'।
हाथी फिर बाजार, कुत्ते भूकें हजार= (बड़े या महान लोग छोटों की शिकायत की परवाह नहीं करते)
प्रयोग- राजा राम मोहन राय ने जब सती प्रथा का विरोध किया तो बहुत लोगों ने उनकी आलोचना की, पर वे अपनी बात पर अटल रहे। ठीक है है- 'हाथी फिर बाजार, कुत्ते भूकें हजार'।
हारिल की लकड़ी, पकड़ी सो पकड़ी= (हठी मनुष्य कभी अपना हठ नहीं छोड़ता)
प्रयोग- केशव प्रधानमंत्री से मिलना चाहता था। जब गार्डो ने उसे नहीं मिलने दिया तो वह वहीं धरना देकर बैठ गया- 'हारिल की लकड़ी, पकड़ी सो पकड़ी'; फिर गार्डो को उसे प्रधानमंत्री से मिलवाना ही पड़ा।
हिम्मत-ए-मरदां, मदद-ए-खुदा= (जो मनुष्य साहसी और परिश्रमी होते हैं, उनकी सहायता ईश्वर करते हैं।)
प्रयोग- अध्यापक ने सोनू से कहा कि भाग्य के भरोसे रहना मूर्खता है। तुम यत्न करो, भाग्य तुम्हारी सहायता करेगा- 'हिम्मत-ए-मरदां, मदद-ए-खुदा'।
हथेली पर सरसों नहीं जमती= (हर काम में समय लगता है, कहते ही काम नहीं हो जाता)
प्रयोग- अफसर ने शर्मा जी को डाँटते हुए कहा, 'मैं कह चुका हूँ कि आपका काम दो सप्ताह में हो पाएगा और आप चाहते हैं कि आज ही हो जाए। हथेली पर सरसों नहीं जमती, यह बात आपकी समझ में नहीं आती?
हम प्याला, हम निवाला= (घनिष्ठ मित्र)
प्रयोग- वे दोनों तो हम प्याला, हम निवाला हैं। कोई भी कितनी ही कोशिश कर ले उन दोनों के बीच दरार नहीं डाल सकता।
हल्दी/हर्र लगे ना फिटकरी, रंग चोखा ही आवे= (बिना कुछ खर्च किए अधिक धन कमा लेना)
प्रयोग- लाला रामस्वरूप कोई काम धंधा नहीं करते। केवल ब्याज पर रुपया उठाते हैं। ब्याज के धंधे में ही वे करोड़पति हो गए हैं। यह तो ऐसा धंधा है जिसमें हल्दी/हर्र लगे ना फिटकरी और रंग चोखा आता है।
हाथी के पाँव में सबका पाँव= (बड़ों के साथ बहुतों का गुजारा हो जाता है)
प्रयोग- सभी लड़के इस बात से परेशान थे कि संगोष्ठी में क्या बोलेंगे? तभी मैंने उन्हें समझाया कि चिंता क्यों करते हो। सुरेश भाई भी तो हमारे साथ चल रहे हैं कोई भी प्रश्न होगा सुरेश भाई सँभाल लेंगे क्योंकि हाथी के पाँव में सबका पाँव होता है।
हीरे की परख जौहरी जाने= (गुणी व्यक्ति का मूल्य, गुणवान व्यक्ति ही समझता है)
प्रयोग- मेरे बेटे ने पटना मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई पास की। दो साल तक वह अच्छे अस्पताल में नौकरी की कोशिश करता रहा, पर उसे अच्छी नौकरी नहीं मिली। हारकर उसने आस्ट्रेलिया में एप्लाई किया। उन लोगों ने उसे तुरंत बुला लिया। सच ही कहा गया है कि हीरे की परख जौहरी ही जानता है।
हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत= (बेमौका)
हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान= (नीच का सम्मान)
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