Sankshepan (संक्षेपण) (Precis-writing)

 संक्षेपण(Precis-writing)की परिभाषा

किसी विस्तृत विवरण, सविस्तार व्याख्या, वक्तव्य, पत्रव्यवहार या लेख के तथ्यों और निर्देशों के ऐसे संयोजन को 'संक्षेपण' कहते है, जिसमें अप्रासंगिक, असम्बद्ध, पुनरावृत्त, अनावश्यक बातों का त्याग और सभी अनिवार्य, उपयोगी तथा मूल तथ्यों का प्रवाहपूर्ण संक्षिप्त संकलन हो।

दूसरे शब्दों में- किसी अनुच्छेद, विवरण, वक्तव्य अथवा निबंधादि के मूल भावों को बचाते हुए उसे संक्षिप्त करना ही संक्षेपण कहलाता है।

इस परिभाषा के अनुसार, संक्षेपण एक स्वतःपूर्ण रचना है। उसे पढ़ लेने के बाद मूल सन्दर्भ को पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। सामान्यतः संक्षेपण में लम्बे-चौड़े विवरण, पत्राचार आदि की सारी बातों को अत्यन्त संक्षिप्त और क्रमबद्ध रूप में रखा जाता है।

इसके द्वारा विद्यार्थियों की योग्यता का आकलन किया जाता है कि वह किसी बात को संक्षेप में प्रकट करने की कहाँ तक क्षमता रखता है। जिस अवतरण का संक्षेपण करने कहा जाय, उसे दो-तीन बार पढ़ लें। इससे आपकी समझ में आ जाएगा कि इसका मूल भाव क्या है। इस भाव को समझ रखकर आप देखें कि कौन-सी ऐसी बात है जो उस भाव को पुष्ट करती है और कौन-सी ऐसी है, जिन्हें हटा देने पर भी मूल भाव का महत्त्व कम नहीं होगा।

इसमें हम कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक विचारों भावों और तथ्यों को प्रस्तुत करते है। वस्तुतः, संक्षेपण किसी बड़े ग्रन्थ का संक्षिप्त संस्करण बड़ी मूर्ति का लघु अंकन और बड़े चित्र का छोटा चित्रण है। इसमें मूल की कोई भी आवश्यक बात छूटने नहीं पाती। अनावश्यक बातें छाँटकर निकाल दी जाती है और मूल बातें रख ली जाती हैं। यह काम सरल नहीं। इसके लिए निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है।

संक्षेपण के गुण

संक्षेपण एक प्रकार का मानसिक प्रशिक्षण है, मानसिक व्यायाम भी। उत्कृष्ट संक्षेपण के निम्नलिखित गुण है-

(1) पूर्णता- संक्षेपण स्वतः पूर्ण होना चाहिए-

संक्षेपण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसमें कहीं कोई महत्त्वपूर्ण बात छूट तो नहीं गयी। आवश्यक और अनावश्यक अंशों का चुनाव खूब सोच-समझकर करना चाहिए। यह अभ्यास से ही सम्भव है। संक्षेपण में उतनी ही बातें लिखी जायँ, जो मूल अवतरण या सन्दर्भ में हों, न तो अपनी ओर से कहीं बढ़ाई जाय और न घटाई जाय तथा न मुख्य बात कम की जाय। मूल में जिस विषय या विचार पर जितना जोर दिया गया है, उसे उसी अनुपात में, संक्षिप्त रूप में लिखा जाना चाहिए। ऐसा न हो कि कुछ विस्तार से लिख दिया जाय और कुछ कम। संक्षेपण व्याख्या, आशय, भावार्थ, सारांश इत्यादि से बिलकुल भित्र है।

(2) संक्षिप्तता- 

संक्षिप्तता संक्षेपण का एक प्रधान गुण है। यद्यपि इसके आकार का निर्धारण और नियमन सम्भव नहीं, तथापि संक्षेपण को सामान्यतया मूल का तृतीयांश होना चाहिए। इसमें व्यर्थ विशेषण, दृष्टान्त, उद्धरण, व्याख्या और वर्णन नहीं होने चाहिए। लम्बे-लम्बे शब्दों और वाक्यों के स्थान पर सामासिक चिह्न लगाकर उन्हें छोटा बनाना चाहिए। यदि शब्दसंख्या निर्धारित हो, तो संक्षेपण उसी सीमा में होना चाहिए। किन्तु, इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाय कि मूल की कोई भी आवश्यक बात छूटने न पाय।

(3) स्पष्टता- संक्षेपण की अर्थव्यंजना स्पष्ट होनी चाहिए-

 मूल अवतरण का संक्षेपण ऐसा लिखा जाय, जिसके पढ़ने से मूल सन्दर्भ का अर्थ पूर्णता और सरलता से स्पष्ट हो जाय। ऐसा न हो कि संक्षेपण का अर्थ स्पष्ट करने के लिए मूल सन्दर्भ को ही पढ़ना पड़े। इसलिए, स्पष्टता के लिए पूरी सावधानी रखने की जरूरत होगी। संक्षेपक (precis writer) को यह बात याद रखनी चाहिए कि संक्षेपण के पाठक के सामने मूल सन्दर्भ नहीं रहता। इसलिए उसमें (संक्षेपण में) जो कुछ लिखा जाय, वह बिलकुल स्पष्ट हो।

(4) भाषा की सरलता- 

संक्षेपण के लिए यह बहुत जरूरी है कि उसकी भाषा सरल और परिष्कृत हो। क्लिष्ट और समासबहुल भाषा का प्रयोग नहीं होना चाहिए। भाषा को किसी भी हालत में अलंकृत नहीं होना चाहिए। जो कुछ लिखा जाय, वह साफ-साफ हो; उसमें किसी तरह का चमत्कार या घुमाव-फिराव लाने की कोशिश न की जाय। इसलिए, संक्षेपण की भाषा सुस्पष्ट और आडम्बरहीन होनी चाहिए। तभी उसमें सरलता आ सकेगी।

(5) शुद्धता- संक्षेपण में भाव और भाषा की शुद्धता होनी चाहिए-

 शुद्धता से हमारा मतलब यह है कि संक्षेपण में वे ही तथ्य तथा विषय लिखे जायँ, जो मूल सन्दर्भ में हो। कोई भी बात अशुद्ध, अस्पष्ट या ऐसी न हों, जिसके अलग-अलग अर्थ लगाये जा सकें। इसमें मूल के आशय को विकृत या परिवर्तित करने का अधिकार नहीं होता और न अपनी ओर से किसी तरह की टीका-टिप्पणी होना चाहिए। भाषा व्याकरणोचित होनी चाहिए, टेलीग्राफिक नहीं।

(6) प्रवाह और क्रमबद्धता- 

संक्षेपण में भाव और भाषा का प्रवाह एक आवश्यक गुण है। भाव क्रमबद्ध हों और भाषा प्रवाहपूर्ण। क्रम और प्रवाह के सन्तुलन से ही संक्षेपण का स्वरूप निखरता है। वाक्य सुसम्बद्ध और गठित हों प्रवाह बनाये रखने के लिए वाक्यरचना में जहाँ-तहाँ 'अतः', 'अतएव', 'तथापि' जैसे शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। एक भाव दूसरे भाव से सम्बद्ध हो। उनमे तार्किक क्रमबद्धता (logical sequence) रहनी चाहिए। सारांश यह कि संक्षेपण में तीन गुणों का होना बहुत जरूरी है-
(i) संक्षिप्तता (brevity), (ii) स्पष्टता (clearness), और (iii) क्रमबद्धता (coherence) ।

संक्षेपण के भेद

संक्षेपण दो प्रकार के होते है-
(1) किसी स्वतंत्र विषय (Continuous matter) का
(2) पत्र-व्यवहार (Correspondence) का।

किसी पत्र, लेख, वक़्तव्य, भाषण आदि स्वतंत्र विषय का संक्षेपण पत्र-व्यवहार के संक्षेपण से भिन्न होगा। पत्राचार या पत्र-व्यवहार के संक्षेपण के लिए प्रायः दो पद्धतियाँ चलती हैं-

(1) प्रवाह-संक्षेपण
(2) तालिका-संक्षेपण।

(1) प्रवाह-संक्षेपण- प्रवाह-संक्षेपण में समस्त पत्राचार का संक्षेप पत्रों के क्रमानुसार वर्णनात्मक रूप में दे दिया जाता हैं।

(2) तालिका-संक्षेपण- तालिका-संक्षेपण में एक तालिका बनायी जाती हैं और उसके स्तम्भों में प्रत्येक पत्र का विवरण दे दिया जाता हैं।

इस तालिका में सामान्यतः निम्र स्तम्भ होते हैं-

क्रम-संख्यापत्र-संख्यादिनांकप्रेषकप्रेषितीपत्र का विषय (संक्षिप्त रूप)
123456

पहले स्तम्भ में पत्रों की क्रम-संख्या क्रमानुसार अंकित करनी चाहिए, दूसरे में पत्र में दी गयी संख्या लिखी जाय, तीसरे में पत्र का दिनांक लिखा जाय, चौथे में प्रेषक अर्थात पत्र भेजने वाले का नाम और पता लिखना चाहिए, पाँचवें में जिसे पत्र भेजा जाय उसका नाम-पता और छठें में प्रत्येक पत्र का विषय संक्षेप में लिखा जाना चाहिए इस प्रकार के संक्षेपण की आवश्यकता तब पड़ती हैं जब अनेक लम्बे-लम्बे पत्रों अथवा पत्राचारों का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत करना होता हैं।

संक्षेपण के नियम

यधपि संक्षेपण के निश्र्चित नियम नहीं बनाये जा सकते, तथापि अभ्यास के लिए कुछ सामान्य नियमों का उल्लेख किया जा सकता है। वे इस प्रकार है-

संक्षेपण के विषयगत नियम

(1) मूल सन्दर्भ को ध्यानपूर्वक पढ़ें। जब तक उसका सम्पूर्ण भावार्थ (substance) स्पष्ट न हो जाय, तब तक संक्षेपण लिखना आरम्भ नहीं करना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि मूल अवतरण कम-से-कम तीन बार पढ़ा जाय।

(2) मूल के भावार्थ को समझ लेने के बाद आवश्यक शब्दों, वाक्यों अथवा वाक्यखण्डों को रेखांकित करें, जिनका मूल विषय से सीधा सम्बन्ध हो अथवा जिनका भावों या विचारों की अन्विति में विशेष महत्त्व हो। इस प्रकार, कोई भी तथ्य छूटने न पायेगा।

(3) संक्षेपण मूल सन्दर्भ का संक्षिप्त रूप है, इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसमें अपनी ओर से किसी तरह की टीका-टिप्पणी अथवा आलोचना-प्रत्यालोचना न हो। संक्षेपण के लेखक को न तो किसी मतवाद के खण्डन का अधिकार है और न अपनी ओर से मौलिक या स्वतन्त्र विचारों को जोड़ने की छूट है। उसे तो मूल के भावों अथवा विचारों के अधीन रहना है और उन्हें ही संक्षेप में लिखना है।

(4) संक्षेपण को अन्तिम रूप देने के पहले रेखांकित वाक्यों के आधार पर उसकी रुपरेखा तैयार करनी चाहिए, फिर उसमें उचित और आवश्यक संशोधन (जोड़-घटाव) करना चाहिए। यहाँ एक बात ध्यान रखने की यह है कि मूल सन्दर्भ के विचारों की क्रमव्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जा सकता है। यह कोई आवश्यक नहीं है कि जिस क्रम में मूल लिखा गया है, उसी क्रम में संक्षेपण भी लिखा जाय। लेकिन यह अत्यन्त आवश्यक है कि उसमें विचारों का तारतम्य बना रहे। ऐसा मालूम हो कि एक वाक्य का दूसरे वाक्य से सीधा सम्बन्ध बना हुआ है।

(5) उक्त आलेख्य (Draft) को अन्तिम रूप देने के पहले उसे एक-दो बार ध्यान से पढ़ना चाहिए, ताकि कोई भी आवश्यक विचार छूटने न पाय। जहाँ तक हो सके, वह अत्यन्त संक्षिप्त हो। यदि शब्द संख्या पहले से निर्धारित हो, तो यह प्रयत्न करना चाहिए कि संक्षेपण में उस निर्देश का पालन किया जाय। सामान्यतया उसे मूल सन्दर्भ का एक-तिहाई होना चाहिए।

(6) अन्त में, संक्षेपण को व्याकरण के सामान्य नियमों के अनुसार एक क्रम में लिखना चाहिए।

(7) उपर्युक्त सारी क्रियाओं के बाद संक्षेपण के भावों और विचारों के अनुकूल एक संक्षिप्त शीर्षक दे देना चाहिए। शीर्षक ऐसा हो, जो सभी तथ्यों को समेटने की क्षमता रखे। उसे सारी बातों का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। जहाँ तक संभव हो शीर्षक लघु और कम-से-कम शब्दों वाला होना चाहिए।

संक्षेपण के शैलीगत नियम

(1) संक्षेपण में विशेषणों और क्रियाविशेषणों के लिए स्थान नहीं है। इन्हें निकाल देना चाहिए। संक्षेपण की शैली अलंकृत नहीं होना चाहिए; उसे हर हालत में आडम्बरहीन होना चाहिए।

(2) संक्षेपण में मूल के उन्हीं शब्दों को रखना चाहिए, जो अर्थव्यंजना में सहायक हों। जहाँ तक सम्भव हो, मूल के शब्दों के बदले दूसरे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि मूल के भावों और विचारों में अर्थ का उलट-फेर न होने पाय।

(3) संक्षेपण में मूल अवतरण के वाक्यखण्डों के लिए एक-एक शब्द का प्रयोग होना चाहिए, जो मूल के भावोत्कर्ष में अधिक-से-अधिक सहायक सिद्ध हों।
कुछ उदाहरण इस प्रकार है-

वाक्यखण्डएक शब्द
एक से अधिक पति रखने की प्रथाबहुपतित्व
जिसका मन अपने काम में नहीं लगताअन्यमनस्क
जहाँ नदियों का मिलन होसंगम
किसी विषय का विशेष ज्ञान रखनेवालाविशेषज्ञ
कष्ट से होनेवाला कामकष्टसाध्य

जहाँ मुहावरों और कहावतों का प्रयोग हुआ हों, वहाँ उनके अर्थ को कम-से-कम शब्दों में लिखना चाहिए। मुहावरे के लिए मुहावरा रखना ठीक न होगा।

(4) संक्षेपण की शैली अलंकृत नहीं होनी चाहिए, इसलिए उपमा (simile), उत्प्रेक्षा (metaphor) या अन्य अलंकारों का प्रयोग नहीं होना चाहिए; अप्रासंगिक बातों, उद्धरणों और विचारों की पुनरावृत्ति भी हटा देनी चाहिए। संक्षेपण की भाषाशैली स्पष्ट और सरल होनी चाहिए, ताकि पढ़ते ही उसका मर्म समझ में आ जाय।

(5) संक्षेपण की भाषाशैली व्याकरण के नियमों से नियंत्रित होनी चाहिए, वह टेलिग्राफिक न हो।

(6) संक्षेपण में परोक्ष कथन (indirect narration) सर्वत्र अन्यपुरुष में होना चाहिए। जिस तरह किसी समाचारपत्र का संवाददाता अपने वाक्यों की रचना में परोक्ष कथन का प्रयोग करता है, उसी तरह संक्षेपण में उसका व्यवहार होना चाहिए। संवादों के संक्षेपण में इसका उपयोग सर्वथा अनिवार्य है। ऐसा करते समय एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हिन्दी में जब वाक्यों को परोक्ष ढंग से लिखना होता है, तब सर्वनाम, क्रिया या काल को बदलने की जरूरत नहीं होती, केवल कि जोड़ देने से काम चल जाता है। लेकिन अँगरेजी में ऐसा नहीं होता।
एक उदाहरण इस प्रकार है-
प्रत्यक्ष वाक्य (Direct narration)- राम ने कहा-'मैं जाता हूँ।'
परोक्ष वाक्य (Indirect narration)- राम ने कहा कि मैं जाता हूँ।

(7) संक्षेपण की वाक्यरचना में लम्बे-लम्बे वाक्यों और वाक्यखण्डों का व्यवहार नहीं होना चाहिए; क्योंकि उसे हर हालत में सरल और स्पष्ट होना चाहिए, ताकि एक ही पाठ में मूल के सारे भाव समझ में आ जायँ। अतः संक्षेपण में शब्द इकहरे, वाक्य छोटे, भाव सरल और शैली आडम्बरहीन होनी चाहिए।

(8) संक्षेपण में शब्दों के प्रयोग में काफी संयम और कृपणता से काम लेना चाहिए। कोई भी शब्द बेकार और बेजान न हो। उन्हीं शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जिनका प्रासंगिक महत्त्व है। मूल के उन्हीं शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जो भावव्यंजना और प्रसंगों के अनुकूल सार्थक है, जिनके बिना काम नहीं चल सकता। शब्दों को दुहराने की कोई आवश्यकता नहीं। अप्रचलित शब्दों के स्थान पर प्रचलित और सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

(9) संक्षेपण की भाषा शैली में साहित्यक चमत्कार और काव्यात्मक लालित्य लाने का प्रयत्न व्यर्थ है। इसलिए, यहाँ न तो भाषा को सजाने-सँवारने की आवश्यकता है और न उसके भावों को ललित-कलित बनाने की। जो कुछ लिखा जाय, वह साफ हो, स्पष्ट हो। कल्पना के पंख लगाकर उड़ना यहाँ नहीं हो सकता। संक्षेपण की कला तलवार की धार पर चलने की कला है। इसके लिए कुशाग्र बुद्धि, गहरी पैठ और तीव्र मनोयोग की आवश्यकता है। यह काम अभ्यास से ही सम्भव है। अतएव आवश्यक है कि संक्षेपण के लेखक की दृष्टि हर तरह वस्तुवादी हो, भावुक नहीं।

(10) संक्षेपण से समानार्थी शब्दों को हटा देना चाहिए। ये एक ही भाव या विचार को बार-बार दुहराते हैं। इसे पुनरुक्तिदोष कहते हैं। अँगरेजी में इसे Verbosity कहते हैं। उदाहरणार्थ- 'आजादी स्वतन्त्रता, स्वाधीनता, स्वच्छन्दता और मुक्ति को कहते हैं' । यहाँ 'आजादी' के लिए अनेक समानार्थी शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषण में प्रभाव जताने के लिए ही वक्ता इस प्रकार की शैली का सहारा लेता है। संक्षेपण में ऐसे शब्दों को हटाकर इतना ही लिखना चाहिए कि 'आजादी मुक्ति का दूसरा नाम है'। संक्षेपण की कला कम-से-कम शब्दों में निखरती है।

(11) पुनरुक्तिदोष शब्दों में ही नहीं, भावों अथवा विचारों में भी होता है। कभी-कभी एक ही वाक्य में एक ही बात को विभित्र रूपों में रख दिया जाता है। उदाहरण के लिए, एक वाक्य इस प्रकार है- 'रंगमंच पर कलाकार क्रमशः एक-एक कर आये' । इस वाक्य में क्रमशः शब्द एक-एक कर के भाव को दुहराता है। दोनों का एक ही अर्थ है, इसलिए ऐसे शब्दों को हटा देना चाहिए। अँगरेजी में इस दोष को Tautology कहते हैं।

(12) अन्त में, संक्षेपण में प्रयुक्त शब्दों की संख्या लिख देनी चाहिए ।

(13) पत्र-व्यवहार के संदर्भ में जहाँ किसी अधिकारी का नाम और पद दोनों दिये हों, वहाँ नाम हटा कर केवल पद का उल्लेख करना चाहिए।

निष्कर्ष

सारांश यह कि संक्षेपण की लेखनविधि अन्वय, सारांश, भावार्थ, आशय, मुख्यार्थ, आलेख (रुपरेखा) इत्यादि से बिलकुल भित्र है। जिस सन्दर्भ का संक्षेपण लिखना हों, उसे सावधानी से पढ़ लिया जाय और उसके भावार्थ तथा विषय को अच्छी तरह समझने की चेष्टा की जाय। सम्भव है कि एक बार पढ़ने से कुछ भाव स्पष्ट न हों। अतः उसे दुबारा-तिबारा पढ़ा जाय और उसके महत्त्वपूर्ण अंशों को रेखांकित किया जाय। अब इन महत्त्वपूर्ण अंशों के आधार पर एक संक्षिप्त प्रारूप (draft) तैयार किया जाय।

इसे सामान्यतया मूल सन्दर्भ की एक-तिहाई के बराबर होना चाहिए। यदि कहीं कुछ अस्पष्टता रह जाय, तो फिर तीसरी बार इस दृष्टि से मूल प्रारूप को पढ़ा जाय कि कहीं भूल से कोई आवश्यक बात छूट तो न गयी है। अन्तिम रूप से जब संक्षेपण तैयार हो जाय, तब उसका एक उपयुक्त, किन्तु छोटा-सा शीर्षक भी दे दिया जाय। अन्त में, समस्त संक्षेपण को इस दृष्टि से एक बार फिर पढ़ लिया जाय कि भाषा में प्रवाह कहीं विच्छित्र तो नहीं हुआ या क्रम तो भंग नहीं हुआ। यदि कहीं भाषा शिथिल हो गयी हो या कोई शब्द उपयुक्त नहीं जँचता हो, तो उसमें सुधार कर दिया जाय।

संक्षेपक की योग्यता (Qualifications of the precis-writer)

एक अच्छे संक्षेपक में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए। वे इस प्रकार हैं-

(1) सूक्ष्मभेदक दृष्टि (Power Discrimination)- एक संक्षेपक को मूल संदर्भ पढ़ते ही यह जान लेना चाहिए कि उसमें मुख्य और गौण बातें कितनी हैं और कहाँ हैं। इस कार्य में संक्षेपक की सूक्ष्म-भेदक दृष्टि ही सहायक होती हैं। जिस व्यक्ति में ध्यान की शक्ति जितनी ही अधिक गहरी होगी वह मुख्य और गौण का, सामान्य और विशेष का और आवश्यक तथा अनावश्यक का अन्तर आसानी से कर सकता हैं। संक्षेपक को इधर-उधर बहक कर अप्रासंगिक बातों का निर्देश नहीं करना चाहिए। उसे तो काम की बातें ही लिखनी होती हैं। यद्यपि सूक्ष्म-भेदक दृष्टि प्रकृति की देन होती हैं तथापि निरन्तर अभ्यास द्वारा अर्जित भी की जा सकती हैं।

(2) पर्याप्त शब्द-भाण्डार (Good Vocabulary)- एक अच्छे संक्षेपक के पास शब्दों का अच्छा भाण्डार होना चाहिए। जब तक पर्याप्त शब्दों पर उसका अधिकार न होगा तब तक उसकी अभिव्यक्ति में संक्षिप्तता, सरलता, क्रमिकता और स्पष्टता न आ सकेगी। उसे समानार्थी शब्दों, मुहावरे, कहावतों और व्याकरण का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। शब्दों के प्रयोग में उसे काफी सावधानी रखनी चाहिए। जहाँ तक हो उसे मूल संदर्भ में प्रयुक्त शब्दों के बदले दूसरे समानधर्मी शब्दों का व्यवहार करना चाहिए। कोश के द्वारा शब्द-भाण्डार बढ़ाया जा सकता हैं।

(3) संक्षिप्तता (Conciseness)- सूक्ष्म-भेदक दृष्टि और शब्द-भाण्डार की सहायता से जो भी संक्षिप्त रूप में लिखा जायेगा वह संक्षेपण होगा, चाहे वह वकील का संक्षिप्त नोट (brief) हो, किसी समाचार-पत्र के संवाददाता की संक्षिप्त टिप्पणी (Summary) हो या किसी शिक्षक का क्लास-नोट हो। पर संक्षेपण में संक्षिप्तता का होना बहुत जरूरी हैं। उच्च-कोटि का संक्षेपक लम्बी-चौड़ी बातों को अत्यन्त संक्षिप्त रूप में उपस्थित करने की कला अच्छी तरह जानता हैं।

(4) क्रमबद्धता (Coherence)- एक योग्य संक्षेपक संक्षेपण की रचना इस ढंग से करता हैं कि पढ़ने पर सभी तथ्य सामूहिकता और क्रमबद्धता में पिरोये मालूम हों। उसका कोई भी वाक्य दूसरे से खंडित या विच्छित्र नहीं होता। जिस तरह मशीन की कसावट के लिए सभी पुर्जों को ठीक जगह पर रख कर कसा जाता हैं, उसी तरह संक्षेपण में लेखक को सभी शब्दों और वाक्यों का संयोजन उसी चुस्ती के साथ करना होता हैं। भाषा में प्रवाह और विचारों में क्रमबद्धता का होना बहुत जरूरी हैं।

एक कुशल संक्षेपक में इन्हीं कुछ गुणों की योग्यता होनी चाहिए, तभी वह एक उत्कृष्ट संक्षेपण लिखने में समर्थ हो सकता हैं।

संक्षेपण : कुछ आवश्यक निर्देश

(1) संक्षेपण में मूल सन्दर्भ के उदाहरण, दृष्टान्त, उद्धरण और तुलनात्मक विचारों का समावेश नहीं होना चाहिए।
(2) सामान्यतः इसे भूतकाल और परोक्ष कथन में लिखा जाना चाहिए।
(3) अन्यपुरुष का प्रयोग होना चाहिए।
(4) भाषा सरल होनी चाहिए, मुहावरे और आलंकारिक नहीं।
(5) मूल तथ्य से असम्बद्ध और अनावश्यक बातों को छाँटकर निकाल देना चाहिए।
(6) आरम्भ अथवा प्रथम वाक्य ऐसा हो, जो मूल विषय को स्पष्ट कर दे। लेकिन इसका अपवाद भी हो सकता है।
(7) यह निर्दिष्ट शब्द-संख्या में लिखा जाना चाहिए। यदि कोई निर्देश न हो, तो इसे कम-से-कम मूल की एक-तिहाई होना आवश्यक है।
(8) समास, प्रत्यय और कृदन्त द्वारा वाक्यांश या वाक्य एक शब्द या पद के रूप में संक्षिप्त किये जायँ।

संक्षेपण का महत्त्व

विज्ञान-युग में, संक्षेपण का महत्त्व अधिक बढ़ गया हैं। व्यावहारिक दृष्टि से इसकी महत्ता इतनी अधिक हैं कि किसी भी कुशल वकील, वक्ता, सम्पादक, व्यापारी, संवाददाता, लेखक, सरकारी अफसर इत्यादि का काम इसके बिना पूरा नहीं होता। आज जीवन के हरेक काम-काज में इसकी आवश्यकता मानी गयी हैं। मान लीजिये कि आप तीन घंटों की कथा आधा घंटे में कह जाते हैं। यहाँ आपने उक्त फिल्मी कथावस्तु का संक्षेपण ही तो किया-आवश्यक बातें कह दीं, अप्रासंगिक बातें छोड़ दीं। शिक्षण की दृष्टि से भी इसका महत्त्व कम नहीं हैं।

दैनिक जीवन में संक्षेपण की आवश्यक माँग होने के कारण हमारे कॉलेजों में इसके शिक्षण और प्रशिक्षण पर आज पहले से कहीं अधिक जोर दिया जा रहा हैं। आजादी के पहले, जब कि देश में अँग्रेजी का बोलबाला था, छात्रों से इस भाषा में संक्षेपण का अभ्यास कराया जाता था और आज भी जहाँ अँग्रेजी का प्रचार अधिक हैं, वहाँ अँग्रेजी संक्षेपण का महत्त्व बना हुआ हैं। लेकिन हिन्दी के राष्ट्रभाषा घोषित हो जाने के बाद देश के हितैषियों, नेताओं और शिक्षा-विशारदों ने हिन्दी में भी संक्षेपण की आवश्यकता महसूस की। अतएव आज हमारे विश्वविद्यालयों में भी हिन्दी में संक्षेपण के अध्यापन की व्यवस्था की जा रही हैं।

संक्षेपण एक प्रकार का मानसिक प्रशिक्षण हैं। इसके द्वारा छात्रों के पठन-पाठन और लेखन में सरलता, स्वच्छ्ता, प्रभाव और स्पष्टता की क्षमता उत्पत्र होती हैं; छात्रों में मनोयोग, दृढ़ता और एकाग्रता की सामर्थ्य उद्दीप्त होती हैं। उनमें अस्पष्ट और गूढ़ विचारों तथा भावों को सुलझे रूप में रखने की शक्ति आती हैं। छोटी बात को बढ़ा-चढ़ा कर बोलना या लिखना उतना कठिन नहीं जितना बहुत-से तथ्यों को थोड़े में लिखना या बोलना। यह गागर में सागर रखने की कला हैं।

संक्षेपण से ही छात्रों में शब्द-संयम, भाव-संयम और चिंतन-संयम की क्षमता उत्पत्र हो सकती हैं। सारांश यह हैं कि संक्षेपण एक ओर हमारे व्यावहारिक दैनिक जीवन के लिए उपयोगी हैं और दूसरी ओर वह हमारे मानसिक चिंतन में स्पष्टता, सरलता, सुरुचि, व्यवस्था, दृढ़ता और एकाग्रता की सामर्थ्य जागृत करता हैं। निष्कर्ष यह हैं कि-

(1) उत्कृष्ट संक्षेपण हमारे श्रम और समय की रक्षा करता हैं।

(2) मूल संदर्भ में बिखरे तथ्यों में से आवश्यक और काम की बातों को अलग करता हैं।

(3) कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक विचारों को प्रकट करता हैं। यह हमारी भेदक दृष्टि को विकसित करता हैं। इसमें ध्यान लगाने की क्षमता उत्पत्र करता हैं और हमारी अभिव्यक्ति को यथार्थ बनाता हैं।

संक्षेपण का स्वरूप

अँग्रेजी में संक्षेपण को प्रेसी (Precis) के लिए संक्षेपण शब्द का व्यवहार किया हैं। इसके स्वरूप अथवा आत्मा को समझने के लिए हमें तुलनात्मक विधि का सहारा लेना होगा। संक्षेपण की प्रक्रिया (Precis) से मिलते-जुलते कुछ ऐसे शब्द हैं जिनका सामान्य प्रयोग रचना में प्रायः हुआ करता हैं, जैसे- Paraphrasing (अन्वय), Summary (सारांश), Substance (भावार्थ), Purport (आशय), Gist (मुख्यार्थ), Synopsis (रूपरेखा) इत्यादि। साधारण दृष्टि से ये शब्द समानार्थी हैं और इनके रूप एक जैसे मालूम होते हैं, किन्तु इनके स्वरूप में सूक्ष्म अन्तर हैं। इनके परस्पर भेदों आदि को जान कर ही हमें संक्षेपण के स्वरूप का सही ज्ञान हो सकता हैं। इनमें से कुछ के भेद इस प्रकार हैं :-

संक्षेपण और सारांश (Precis and Summary)

सारांश में केवल मुख्य तथ्य को अत्यन्त संक्षेप में लिख दिया जाता हैं, जब कि संक्षेपण में सामान्यतः मूल की सभी बातें क्रमबद्धता के साथ उपस्थित की जाती हैं। संक्षेपण और सारांश का अनुपात क्रमशः 3 : 1 और 10 : 1 हैं।

आशय और संक्षेपण (Purport and Precis)

'आशय' में या तो संपूर्ण कथन का अथवा गूढ़ वाक्यों या पदों का स्पष्टीकरण रहता हैं, जब कि संक्षेपण में स्पष्टीकरण की गुंजाइश तनिक भी नहीं होती।

अन्वय और संक्षेपण (Paraphrasing and Precis)

'अन्वय' में मूल के मुख्य और गौण भावों का समावेश होता हैं, जब कि संक्षेपण में केवल मुख्य भाव रहता हैं, गौण भावों को छाँट कर बाहर निकाल दिया जाता हैं।

भावार्थ और संक्षेपण (Substanceand and Precis)

दोनों में भावों अथवा विचारों की संक्षिप्तता रहती हैं, किन्तु भावार्थ में जहाँ लेखन की लम्बाई-चौड़ाई की अंतिम सीमा नहीं बाँधी जा सकती, वहाँ 'संक्षेपण' में यह आवश्यक हैं कि वह सामान्यतया मूल का एक-तिहाई हो। इसके अतिरिक्त 'भावार्थ' में जहाँ मूल के मुख्य और गौण भावों का स्थान सुरक्षित हैं, वहाँ 'संक्षेपण' में केवल मुख्य भाव ही रह सकता हैं। इसी तरह अन्य भेदों को भी समझना चाहिए।

इन भेदों से यह स्पष्ट है कि संक्षेपण वस्तुतः एक स्वतंत्र रचना-विधि हैं, जिसका उद्देश्य (1) मूल अवतरण (Passage) की सभी आवश्यक बातों को संक्षिप्त रूप में उपस्थित करना और (2) इन बातों को इस ढंग से सजा कर प्रस्तुत करना है ताकि पढ़ने में सरलता, स्पष्टता, मौलिकता और एकता का बोध हो।

संक्षेपण के उदाहरण

संक्षेपण : वर्णानात्मक शैली (Descriptive style)
उदाहरण 1-

ऋतुराज वसन्त के आगमन से ही शीत का भयंकर प्रकोप भाग गया। पतझड़ में पश्र्चिम-पवन ने जीर्ण-शीर्ण पत्रों को गिराकर लताकुंजों, पेड़-पौधों को स्वच्छ और निर्मल बना दिया। वृक्षों और लताओं के अंग में नूतन पत्तियों के प्रस्फुटन से यौवन की मादकता छा गयी। कनेर, करवीर, मदार, पाटल इत्यादि पुष्पों की सुगन्धि दिग्दिगन्त में अपनी मादकता का संचार करने लगी। न शीत की कठोरता, न ग्रीष्म का ताप। समशीतोष्ण वातावरण में प्रत्येक प्राणी की नस-नस में उत्फुल्लता और उमंग की लहरें उठ रही है। गेहूँ के सुनहले बालों से पवनस्पर्श के कारण रुनझुन का संगीत फूट रहा है। पतों के अधरों पर सोया हुआ संगीत मुखर हो गया है। पलाश-वन अपनी अरुणिमा में फूला नहीं समाता है। ऋतुराज वसन्त के सुशासन और सुव्यवस्था की छटा हर ओर दिखायी पड़ती हैं। कलियों के यौवन की अँगड़ाई भ्रमरों को आमन्त्रण दे रही है। अशोक के अग्निवर्ण कोमल एवं नवीन पत्ते वायु के स्पर्श से तरंगित हो रहे हैं। शीतकाल के ठिठुरे अंगों में नयी स्फूर्ति उमड़ रही है। वसन्त के आगमन के साथ ही जैसे जीर्णता और पुरातन का प्रभाव तिरोहित हो गया है। प्रकृति के कण-कण में नये जीवन का संचार हो गया है। आम्रमंजरियों की भीनी गन्ध और कोयल का पंचम आलाप, भ्रमरों का गुंजन और कलियों की चटक, वनों और उद्यानों के अंगों में शोभा का संचार- सब ऐसा लगता है जैसे जीवन में सुख ही सत्य है, आनन्द के एक क्षण का मूल्य पूरे जीवन को अर्पित करके भी नहीं चुकाया जा सकता है। प्रकृति ने वसन्त के आगमन पर अपने रूप को इतना सँवारा है, अंग-अंग को सजाया और रचा है कि उसकी शोभा का वर्णन असम्भव है, उसकी उपमा नहीं दी जा सकती।

संक्षेपण

वसन्तऋतु की शोभा

वसन्तऋतु के आते ही शीत की कठोरता जाती रही। पश्र्चिम के पवन ने वृक्षों के जीर्ण-शीर्ण पत्ते गिरा दिये। वृक्षों और लताओं में नये पत्ते और रंग-बिरंगे फूल निकल आये। उनकी सुगन्धि से दिशाएँ गमक उठीं। सुनहले बालों से युक्त गेहूँ के पौधे खेतों में हवा से झूमने लगे। प्राणियों की नस-नस में उमंग की नयी चेतना छा गयी। आम की मंजरियों से सुगन्ध आने लगी; कोयल कूकने लगी; फूलों पर भौरें मँडराने लगे और कलियाँ खिलने लगी। प्रकृति में सर्वत्र नवजीवन का संचार हो उठा। टिप्पणी- ऊपर मूल सन्दर्भ में वसन्तऋतु प्रकृति की शोभा का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन हुआ है, जिसमें साहित्यिक लालित्य भरने की चेष्टा की गयी है। संक्षेपण में हमने सभी व्यर्थ शब्दों और वाक्यों को हटा दिया है और काम की बातों का उल्लेख कर दिया है, सीधी-सादी भाषा में। मूल वर्तमानकाल में लिखा गया है, पर संक्षेपण में सारी बातें भूतकाल में लिखी गयी हैं।