यमक अलंकार | यमक अलंकार के 20 उदाहरण | यमक अलंकार की परिभाषा

यमक अलंकार | यमक अलंकार के 20 उदाहरण 

यमक अलंकार


यमक अलंकार(Repetition of same word) :-सार्थक होने पर भिन्न अर्थ वाले स्वर-व्यंजन समुदाय की क्रमशः आवृत्ति को यमक कहते हैं।

साहित्यदर्पणकार विश्र्वनाथ की परिभाषा है-
सत्यर्थे पृथगर्थाया:स्वरव्यंजनसंहते:।
क्रमेण तेनैवावृत्ति: यमकं विनिगद्यते।।''

दूसरे शब्दों में- जिस काव्य में समान शब्द के अलग-अलग अर्थों में आवृत्ति हो, उसे यमक अलंकार कहते हैं।
यानी जहाँ एक ही शब्द जितनी बार आए उतने ही अलग-अलग अर्थ दे।

जैसे-
कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय नर, वा पाये बौराय।।
यहाँ कनक शब्द की दो बार आवृत्ति हुई है जिसमे एक कनक का अर्थ है- धतूरा और दूसरे का स्वर्ण है।

दूसरा उदाहरण-
जिसकी समानता किसी ने कभी पाई नहीं;
पाई के नहीं हैं अब वे ही लाल माई के।

यहाँ 'पाई' शब्द दो बार आया है। दोनों के क्रमशः 'पाना' और 'पैसा' दो भिन्न अर्थ हैं।
अतएव एक ही शब्द को बार-बार दुहरा कर भिन्न-भिन्न अर्थ प्राप्त करना यमक द्वारा ही संभव है।

 यमक अलंकार के 20 उदाहरण :

  1. केकी रव की नुपुर ध्वनि सुन, जगती जगती की मूक प्यास।
  2. बरजीते सर मैन के, ऐसे देखे मैं न हरिनी के नैनान ते हरिनी के ये नैन।
  3. जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं।
  4. तोपर वारौं उर बसी, सुन राधिके सुजान। तू मोहन के उर बसी ह्वे उरबसी सामान।
  5. भर गया जी हनीफ़ जी जी कर, थक गए दिल के चाक सी सी कर।
  6. यों जिये जिस तरह उगे सब्ज़, रेग जारों में ओस पी पी कर।।
  7. सारंग ले सारंग उड्यो, सारंग पुग्यो आय।जे सारंग सारंग कहे, मुख को सारंग जाय।।

यमक अलंकार के भेद

यमक अलंकार के निम्न दो भेद माने जाते है –
(अ) अभंग यमक
(ब) सभंग यमक

यमक और लाटानुप्रास में भेद :- यमक में केवल शब्दों की आवृत्ति होती है, अर्थ बदलते जाते है;
पर लाटानुप्रास में शब्द और अर्थ दोनों की आवृत्ति होती है, अन्वय करने पर अर्थ बदल जाता है।
यही मूल अन्तर है।